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ि्ाओ, फूलो-फलो. यानी कि उसे ्ालू् था कि औरतें ि्ािर
            अपने नेता को चुनने ्में औरत                   ही फल-फूल सिती हैं. कजसिे पास अपने पांव पर खड़े होने और
            की भी कोई भूव्मका हो सकती                     ि्ाने िी शशकत नहीं वह िुछ नहीं िर सिता.  कफर एि कदन उसने
                                                          रिजभाषा ्ें िहा कजसिा अथ्ण था कि दुकनया ्ें सबसे अचछी बात
            है, यह उसका िोट ही तय करता                    अपने पांवों पर खड़ा होना है. अगर खुद ि्ाते हों तो किसी और िे

            है और यह ताकत ह्मारे देश की                   आगे हाथ फैलाना कयों पड़े. ्ां अिसर तुलसी िी औरतों िे संदभ्ण ्ें
                                                          िही गई वह चौपाई भी सुनाती - ‘पराधीन सपनेहु सुख नाहीं.’   ्ां
            हर औरत के पास है. यही नहीं                    िो इस बात िा बहुत अफसोस था कि उसिे ज्ाने ्ें लड़कियों िो
                                                          जयादा नहीं पढ़ाया जाता था, बचपन ्ें ही शादी िर दी जाती थी.
            अब तो वकसी पाटटी का घोरणा                     अगर ्ौिा क्ला होता तो वह जरूर पढ़ती और अपने पांव पर खड़ी
            पत्र वबना औरतों के अवधकारों                   हो जाती.
                                                            ्ां आज होती तो सौ साल िी होती. उसने किसी से फेक्कनज् िा
            की बातें वकए पूरा नहीं होता. यही              पाठ नहीं पढ़ा था ्गर अपने पांवों पर खड़े होने िी खुशी कया होती
            तो औरतों की असली ताकत है,                     है, हाथ ्ें पैसा हो तो कितनी ताित होती है और आत्कनभ्णरता ही
                                                          औरत िी असली आजादी होती है, इसे वह अचछी तरह जानती थी.
            आजादी का असली हावसल है.                       वह औरतों िी नौिरी िी इतनी प्रबल स्थ्णि थी कि उसिी पीढ़ी िी
                                                          औरतें अिसर उसिा ्जाि उड़ाती थीं. दो भाकभयां, कजन्ें से एि
                                                          आठवीं पास थीं और दूसरी दसवीं, उनिो ्ां ने अपने प्रयासों और
         खास सुधार नहीं हुआ. इसीकलए उसिे बहुत से लीडरान ने इसे असली   ्ेहनत से उच्च कशक्षा कदलवाई. उनहें कजद िरिे िालेज ्ें एड्ीशन
         आजादी नहीं ्ाना था.
                                                          कदलवाया और बड़े पररवार िे िा्-धंधे िे साथ उनिे बच्चों िो भी
                                                          पाला. एि भाभी जो गांव ्ें रहती थीं, जब उनहोंने नौिरी िरनी चाही
           सबसे पहले ्ुझे औरतों िे कलए आजादी िा ्तलब तब पता   तो ्ां ने  उस स्य िे गांव िे वातावरण िी भी िोई परवाह नहीं िी.
         चला  जब             ्ैंने नौिरी शुरू िी और अपनी पहली   अिसर औरतें पललू ्ुंह ्ें खोंसिर खी-खी िरिे उसिा ्जाि
                                तनखवाह ्ां िे हाथ ्ें लािर दी.   उड़ाती थीं कि इत्ा पैसा पोटली ्ें बांधिर िहां जाओगी. बेटे तो बेटे,
                                     ्ां ने उन िुछ सौ रुपयों        अब तो बहू और बेकटयों िी ि्ाई भी खा रही हो.
                                       िो ्ाथे से लगाया. कफर   ्ां कजसे आज िा ज्ाना िहती थी कजसिे िारण औरतें पढ़-
                                           वापस  िरते  हुए   कलख सिीं, आगे बढ़ सिीं, अपने पांवों पर खड़ी हो सिीं,वह ्ेरी
                                              ि हा-खूब
                                                          नजर ्ें आजादी िे बाद िा ज्ाना ही है और आजादी िा असली
                                                          हाकसल भी है. औरतों िो पढ़ने –कलखने, नौिरी िा अकधिार ह्ारे
                                                          लोितंत् ने कदया. ह्ारे यहां तो औरतों िो वोट देने िा अकधिार
                                                          पाने िे कलए िोई संघष्ण नहीं िरना पड़ा. जबकि अ्ेररिा जैसे देश
                                                          ्ें औरतों िो वोट िा हि पाने िे कलए सत्र साल ति िड़ा संघष्ण
                                                          िरना पड़ा था. अपने यहां तो आ् तौर पर ्ीकडया िा साथ औरतों
                                                          िो क्ला है, ्गर अ्ेररिा ्ें तो वोट िा अकधिार पाने िा जब संघष्ण
                                                           चल रहा था तो औरतों िा खासा ्जाि उड़ाया जाता था. उनिे
                                                                  ऊपर ्जाि उड़ाते लेख और िाटू्डन बनाए जाते थे. िहा
                                                                     जाता था कि ये औरतें चौिे-चूलहे से अलग हटिर
                                                                       वोट देिर कया िरेंगी.
                                                                         अपने नेता िो चुनने ्ें औरत िी भी िोई
                                                                       भूक्िा हो सिती है, यह उसिा वोट ही तय िरता
                                                                       है और यह ताित ह्ारे देश िी हर औरत िे पास
                                                                       है. यही नहीं अब तो किसी पाटटी िा घोषणा पत्
                                                                       कबना औरतों िे अकधिारों िी बातें किए पूरा नहीं
                                                                       होता. यही तो औरतों िी असली ताित है, आजादी
                                                                     िा असली हाकसल है. और देखा जाए तो औरतों िी
                                                                   ताित बढ़ती ही जा रही है. संकवधान और लोितंत् ने
                                                                 उनहें बराबरी िे अकधिार कदए हैं. िानून ने सत्ी-पुरुष िा
                                                               िोई भेदभाव नहीं किया है. n


                                                                        w1-15 अगस्त, 2017w I गंभीर समाचार I  19
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