Page 66 - Not Equal to Love
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सूरज ूकाश
                                        स5दय* से चली आ रह+ बंद कमरे म खुलने वाली Oझरˆ
                                        बहुत बड़+ रौशनी का पैगाम ले कर आयी थी, ले5कन
                                        मोबाइल ने घर के  भीतर रहते हुए भी, बेशक लोकल ह+

                                        सह+, बाहर क दुिनया से संवाद करने, अपनी बात कहने,
                                        अपने ूेम का इज़हार करने का एक नायाब तोहफा तो
                                        5दया था। बेशक इसे गुy त रखने, मैसेज 5डिलट करने या
                                        इसका अित=र_ त खचा< उठाने के  िलए उT ह दस तरह के
                                        जतन करने पड़ते थे। झूठ बोलने पड़ते थे और कई बार
                                        मोबाइल =रचाज< करवाने के  िलए अपने पुƒष िमऽ के  आगे
                                        ह+ हाथ फै लाना पड़ता था। बेशक ये िसलिसला आज भी
                                        थमा नह+ं है। पहले मायके  म और 5फर ससुराल म यह
                                        िसलिसला अनवरत चलता ह+ रहता था। जो लड़5कयां

                                        वाब म भी 5कसी अनजान आदमी से, यहां तक 5क भाई
                                        के  या पित के  दोः त से अके ले म बात तक करने क
                                        5हd मत नह+ं जुटा पाती थीं, कम से कम अपने िमऽ से,
                                        चाहे वो जैसा भी हो, अपने मन क बात कहने के  मौके
                                        पा कर जैसे आसमान को छ ू  लेने लगी थीं। मोबाइल ऐसी
                                        लाख* लड़5कय* और म5हलाओं के  िलए आज़ाद+ क तरफ
                                        उठाये गये पहला कदम रखने का न के वल हमराज़ था

                                        बOY क मददगार भी था।
                                        फे सबुक और वह भी मोबाइल पर फे सबुक उन सबके  िलए
                                        आज़ाद+ क एक ऊं ची छलांग क तरह आया। वे बहुत
                                        कम खच< म, अब कह+ं भी 5कसी से भी दोः ती कर सकती


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