Page 31 - CHETNA January 2019 - March 2019FINAL_Neat FLIP
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बदली ने सुना तो सुनकर ही उसका जैसे हदल सा बैठ र्या. एक
        बार को उसको राजी की बात पर ववश्वास भी नहीिं हो सका. मर्र वह

        जानती थी कक राजी कभी भी उससे ऐसी बातों को लेकर मज़ाक नहीिं कर
        सकती थी.  सो सारी बात को सच मानकर उसको लर्ा कक भारत आने
        का उसका जैसे सारा उत्साह ही समाप्त हो चुका है. राजी ने जो बात

        कही थी उसका सीधा सा मतलब अिंबर से था. वह अिंबर कक जजसके  साथ
        उसने कभी अपने वववाह के  सपने देखे थे. जजसके  साथ-साथ कभी उसने
        एक साथ जीने-मरने की कसमें खाई थीिं. मर्र ये शायद उसकी ककस्मत

        की ट ू टी लकीरों का ही असर था कक जीवन के  सुिंदर सपनों की आस में
        उसने ि ू ल चुनने की कोशशश तो बहत की थी पर ककसे मालुम था कक न
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        जाने क्यों दामन में उसके  जैसे कै क्टस के  ि ू ल आकर भर र्ये थे?
             जीवन  की  भूली-त्रबसरी  यादें  बदली  को  उसके   अतीत  के   जजए  हए
                                                                        ु
        हदनों को दोबारा दोहराने के  शलए वववश करने लर्ीिं तो उसने राजी से
        कहा कक,

             'बुरा मत मानना. तू मुझे क ु छ देर के  शलए अके ला छोड़ दे.'
             'मैं तेरे मन की दशा को अच्छी  तरह से समझती हँ. ठीक है तू
                                                              ू
        अभी  जाकर  आराम  कर  ले.  वैसे  भी  हवाई  जहाज  के   लम्बे  सिर  की
        थकावट कम तो हई न होर्ी. मैं शाम को किर से आ जाऊिं र्ी.'
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             ये कहते हए राजी बदली को उसके  घर के  दरवाजे तक छोड़ने आई,
                      ु
        किर उससे ववदा लेकर अपने घर की तरि मुड़ र्ई.
             बदली  अपने  घर  में  आई  तो  स्वत:  ही  उसके   उम्मीहदयों  और

        लालसाओिं से थके -थके  से कदम अपने कमरे की तरि मुड़ र्ये. कमरे में
        आई  तो  अमरीका  से  लाया  हआ  तमाम  सामान  और  खुले  हए  सूटके स
                                   ु
                                                                ु
        देखकर उसे लर्ा कक जैसे सभी के  सभी उसको प्रश्नभरी नज़रों से ताक
        रहे हैं? ऐसे प्रश्नों के  भिंवरजाल में वह अपने को ििं सी हई महसूस करने
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        लर्ी कक जजसमें शसवा खुद के  एक अपराधबोध की भावना के  अततररक्त
        और क ु छ भी उसको शमलता प्रतीत नहीिं होता था.

             किर बदली जैसे ही अपने त्रबस्तर पर अधलेटी सी हई तो इतनी सी
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        देर  में  उसकी  मािं अपने  हाथ  में  चाय  का  प्याला  और  थोड़े  से स्नैक्स
                               31 |   चेतना जनवरी  2019 - माचच 2019
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