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इमरो  इिाम की कविता                                   पूजा यादि की कविता

                      कक्षा 9                                               कक्षा 9



                                                                            ढूाँढ़ती रही हाँ मैं
                                                                                        ू
                      क्य  खूब है न यह तन्ह ई
                                                                            वो दोस्त, वो बचपन
                      जो एक ब तूनी इांस न के  होठों पर भी त ल  लग
                                                                            छोिी-छोिी खुशशयों में हाँसन ,
                      दे,
                      हमेश  से खखलखखल ती फ ू ल सी मुस्क न को सुख            रो देन  चोि जो लगे

                      दे                                                    कोई थे भैय , कोई थे च च
                      एक हौंसले देने व ले की उम्मीद भी छीन ले               हर कोई जैसे हो अपने

                      हमेश  शसर ऊाँ च  रखने व ले की भी नजरें झुक  दे
                                                                            प प  से डरन  पर म ाँ से वो लड़न
                      यही है तन्ह ई
                                                                            करके  च ल की कफर उलझन में पड़न
                      पर क्य  च हती है यह तन्ह ई
                                                                            न कोई गम थ  न कोई डर थ
                      पीछ  क्यों नहीां छोड़ती यह तन्ह ई

                      क्य  ये दोस्तों की खोज में है                         बस खेल-खखलौनों की कफक्र थी
                      य  ककसी न र   अपने की खोज में है                      बचपन क  हर पल होत  है अनोख
                      ये तनह ई                                              ...

                      ...





                                                                            तिीशा की कविता
                        ध्रुि फ़रासी की कविता
                                                                            कक्षा 9
                      कक्षा 9



                                                                            क्य  कभी सोच  है
                        बचपन आत  है
                                                                            मृत्यु के  ब द कह ाँ ज ओगे तुम?
                      कफर चल  ज त  है

                                                                            क्य  ज ओगे स्वगफ में?
                      मौज-मस्ती के  वो टदन
                        पूरी ज़जांदगी स थ रहते हैं
                                                                            य  हो ज ओगे धरती पर ही खत्म?
                      बुढ़ पे के  समय कफर वही टदन तो य द आते हैं


                      क श! कोई लौि  दे वही
                                                                            डर है मुझे
                        बचपन के  टदन
                                                                            क्य  होग  मेरे स थ
                      ...
                                                                            करेग  क्य  कोई मुझे भी य द


                                                                            य  बन कर रह ज ऊाँ गी मैं कोई फररय द

                                                                            जीवन के  इस चक्रव्यूह में जो आय  है

                                                                            वह कभी तो ज एग

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