Page 181 - BEATS Secondary School
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कहािी

         कहािी
                                          माँ का ख्याल
         माँ का ख्याल

         इमरो  इिाम, कक्षा 9              इमरो  इिाम, कक्षा 9


         आजकल के  शोरगुल में हर तरफ लड़ ई-झगड़  होत  न र आत  है। सड़क पर चलते हए भी हर तरफ से
                                                                                        ु
                                          आजकल के  शोरगुल में हर तरफ लड़ ई-झगड़  होत  न र आत  है। सड़क पर चलते हए भी हर तरफ से
         कोई न कोई लड़ जरूर रह  होत  है। कभी कोई पुशलस अफसर पर चीख रह  होत  है तो कभी ककसी के                                                                        ु
         म त -पपत  अपने बच्चों को ड ांि रहे होते हैं। इसी शोरगुल में मैं भी अपने म त -पपत  के  ब रे में सोचने
                                          कोई न कोई लड़ जरूर रह  होत  है। कभी कोई पुशलस अफसर पर चीख रह  होत  है तो कभी ककसी के
         लग । मैं अभी-अभी ऑकफस से छ ू ि  थ  जब म ाँ क  फोन आय । बहत थक गय  थ  तो फोन क ि टदय ।
                                                                       ु
                                          म त -पपत  अपने बच्चों को ड ांि रहे होते हैं। इसी शोरगुल में मैं भी अपने म त -पपत  के  ब रे में सोचने
         तभी मैंने एक छोिे बच्चे को रोते हए सुन । मुझे अपन  बचपन य द आ गय  जब मैं म ाँ क  पल्लू खीांचकर
                                         ु
         उन्हें रांगीन खखलौने व ली दुक न की तरफ खीांचत  और म ाँ मुझे कोई खखलौन  टदलव कर घर पर अपने ह थ
                                          लग । मैं अभी-अभी ऑकफस से छ ू ि  थ  जब म ाँ क  फोन आय । बहत थक गय  थ  तो फोन क ि टदय ।
         से बन ई गोल-गोल रोटिय ाँ खखल य  करती थी।                                                                                          ु
         अब अपने ख्य लों से अपने वतफम न में आ गय  और ऑकफस से ननकलते ही मैंने ऑिो पकड़ । ऑिो लेकर
                                          तभी मैंने एक छोिे बच्चे को रोते हए सुन । मुझे अपन  बचपन य द आ गय  जब मैं म ाँ क  पल्लू खीांचकर
                                                                                             ु
         मैं घर की ओर चल टदय । ब हर वही रोज-रोज की घर-घर की आव ज! मैंने घर पहाँचकर देख  कक म ाँ एक
                                                                                     ु
                                          उन्हें रांगीन खखलौने व ली दुक न की तरफ खीांचत  और म ाँ मुझे कोई खखलौन  टदलव कर घर पर अपने ह थ
         कमरे में बेहोश पड़ी है और उसके  ह थ में फोन की घांिी टरांग-टरांग कर रही थी। मुझे समझ में नहीां आ रह

         थ  कक पपत जी क  फोन उठ ऊाँ  य  क्य  करूाँ । मैंने म ाँ को उठ ने की कोशशश की और पपत जी से ब त करत
                                          से बन ई गोल-गोल रोटिय ाँ खखल य  करती थी।
         रह । फोन पर मेर  टदल जोर-जोर से धड़कने लग । जैसे-तैसे मैं म ाँ को अस्पत ल लेकर पहाँची। वह ाँ पहाँचकर
                                                                                            ु
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                                          अब अपने ख्य लों से अपने वतफम न में आ गय  और ऑकफस से ननकलते ही मैंने ऑिो पकड़ । ऑिो लेकर
         डॉक्िर ने म ाँ क  इल ज ककय । डॉक्िर ने बत य  कक म ाँ क  बीपी बहत कम हो गय  थ । जब म ाँ को होश
                                                                        ु
         आय  तो उन्होंने मुझे अपने प स बुल  कर बड़े प्य र से मेरे शसर पर ह थ फे रते हए कह , ‘बेि ! तुम्हें पत
                                                                                    ु
                                          मैं घर की ओर चल टदय । ब हर वही रोज-रोज की घर-घर की आव ज! मैंने घर पहाँचकर देख  कक म ाँ एक
                                                                                                                                                                 ु
         है जब मैंने तुम्हें फोन ककय  थ , तब मैं जमीन पर गगर गई थी। मेर  बीपी बहत लो हो चुक  थ । अगर तू
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                                          कमरे में बेहोश पड़ी है और उसके  ह थ में फोन की घांिी टरांग-टरांग कर रही थी। मुझे समझ में नहीां आ रह
         आज समय पर न आय  होत  तो श यद आज यह मेर  आखखरी टदन होत । अस्पत ल में च रों तरफ मरीज
         ही मरीज टदख ई दे रहे थे। कोई रो रह  थ , कोई इल ज कर  रह  थ । च रों तरफ भ गमभ ग मची हई थी।
                                                                                                     ु
                                          थ  कक पपत जी क  फोन उठ ऊाँ  य  क्य  करूाँ । मैंने म ाँ को उठ ने की कोशशश की और पपत जी से ब त करत
         म ाँ की ब तें सुनकर मुझे समझ में आय  कक आज की इस भ गदौड़ भरी ज़जांदगी में क ु छ भी हो ज ए लेककन
                                          रह । फोन पर मेर  टदल जोर-जोर से धड़कने लग । जैसे-तैसे मैं म ाँ को अस्पत ल लेकर पहाँची। वह ाँ पहाँचकर
         हमें अपनों क  ख्य ल जरूर रखन  च टहए। म त -पपत  अपने बच्चों की बहत परव ह करते हैं और वही उनक                                                                       ु                 ु
                                                                             ु
         स थ देते हैं। म त -पपत  हमेश  अपने बच्चों क  स थ देते हैं और उनके  स थ रहते हैं। अगर कभी म त -पपत
                                          डॉक्िर ने म ाँ क  इल ज ककय । डॉक्िर ने बत य  कक म ाँ क  बीपी बहत कम हो गय  थ । जब म ाँ को होश
                                                                                                                                             ु
         गुस्से में बच्चों को ड ांि भी देते हैं तो इसक  अथफ यह नहीां होत  कक म त -पपत  अपने बच्चों से प्रेम नहीां
         करते। उनकी ड ांि में भी उनक  प्रेम छ ु प  होत  है। इस घिन  को आज दो स ल पूरे हो गए। आज लगत  है                                                       ु
                                          आय  तो उन्होंने मुझे अपने प स बुल  कर बड़े प्य र से मेरे शसर पर ह थ फे रते हए कह , ‘बेि ! तुम्हें पत
         कक इतन  स र  क म करते हए अपने घरव लों व दोस्तों के  प्य र को हमें कभी नहीां भूलन  च टहए ।
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                                          है जब मैंने तुम्हें फोन ककय  थ , तब मैं जमीन पर गगर गई थी। मेर  बीपी बहत लो हो चुक  थ । अगर तू
                                                                                                                                                           ु

                                          आज समय पर न आय  होत  तो श यद आज यह मेर  आखखरी टदन होत । अस्पत ल में च रों तरफ मरीज

                                          ही मरीज टदख ई दे रहे थे। कोई रो रह  थ , कोई इल ज कर  रह  थ । च रों तरफ भ गमभ ग मची हई थी।
                                                                                                                                                                                         ु

                                          म ाँ की ब तें सुनकर मुझे समझ में आय  कक आज की इस भ गदौड़ भरी ज़जांदगी में क ु छ भी हो ज ए लेककन


                                                                                                   page - 181
                                          हमें अपनों क  ख्य ल जरूर रखन  च टहए। म त -पपत  अपने बच्चों की बहत परव ह करते हैं और वही उनक
                                                                                                                                                    ु
                                          स थ देते हैं। म त -पपत  हमेश  अपने बच्चों क  स थ देते हैं और उनके  स थ रहते हैं। अगर कभी म त -पपत



                                          गुस्से में बच्चों को ड ांि भी देते हैं तो इसक  अथफ यह नहीां होत  कक म त -पपत  अपने बच्चों से प्रेम नहीां


                                          करते। उनकी ड ांि में भी उनक  प्रेम छ ु प  होत  है। इस घिन  को आज दो स ल पूरे हो गए। आज लगत  है


                                          कक इतन  स र  क म करते हए अपने घरव लों व दोस्तों के  प्य र को हमें कभी नहीां भूलन  च टहए ।
                                                                                   ु
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