Page 34 - Darshika 2020
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जहरील फल
- ए. सौम्र्नारार्णन, कार्शक्रम ननष्पादक
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यह बात काफी पुरानी ह। एक गांव क बाहर स मुख्य मागष गुजरता था। मागष क साथ ह एक ववर्ाल पेड़
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था। उस पेड़ पर बड़े मनमोहक फल लगते थे। लाल, गुलाबी और पील रग वाल।
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उन्ह दखते ह खाने को मन ललचाने लगता। फल ऐसे हदखते थे जैसे मीठ रस क भर कटोर हों। वे खाने
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म भी मीठ थे। पर थे वे जहर ले। उनको खाने वाला एक घंट म ह स्वगष भसिार जाता था। इसभलए गांव
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वाले तो उस पेड़ क तनकट भी नह ं जाते थे।
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गांव म तीन-चार ठग भी थे। यह पेड़ उनक भलए वरदान सात्रबत हो रहा था। वे एक पत्थर क पीछ
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तछपकर पेड़ की तनगरानी करते थे। जैस ह मागष स गुजरने वाला कोई राहगीर उसक फल खाता, वे उसक
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पीछ हो लेते। जैसे ह राहगीर धगर जाता, वे उसका मालमत्ता लेकर चंपत हो जाते।
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एक हदन उसी मागष स एक बड़ चतुर व्यापार की गाडड़यों का काकफला गुजरा। गाडड़यां माल स लद थीं।
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क ु ल तीस-चाल स गाडड़यों का काकफला था वह। पहल गाड़ी म बैठ चालक और कमषचार ने उस फलों से
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लदे पेड़ को दखा तो उछल पड़े। इतने तयार रसीले फल।
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कमषचार ने एक फल तोड़कर चखा। उसक मुह स 'आह तनकल गया । फल बड़े स्वाहदष्ट थे। रास्ते म
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खाने क भलए उन्होंने क ु छ फल तोड़कर गाड़ी म रख भलए। उसक बाद की गाड़ी वालों ने भी ऐसा ह
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ककया। बीच म वह बैलगाड़ी भी थी, श्जसम स्वयं व्यापार सफर कर रहा था।
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उसकी गाड़ी क साथ-साथ उसका अंगरक्षक भी घोड़े पर सवार बैलगाड़ी क बाईं ओर चल रहा था। व्यापार
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ने अपने से दो-तीन आग की बैलगाड़ी वालों को दूर स वृक्ष स फल तोड़ते दखा तो धचल्लाया "ठहरो ! ये
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फल मत खाओ। य जहर ले ह।"
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उसने अपने साथ चल रह अंगरक्षक को कहा कक तुम दौड़ क आग जाकर दखो कक ककस-ककसने फल खाए
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ह। श्जसने फल खाए ह, उन्ह तुरत मुह म अंगुभलयां डालकर उल्ट करने क भलए कहो। श्जन्होंने नह ं खाए
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हैं, उन्ह फलों को फक दने का आदर् दो।
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अंगरक्षक दौड़ा हआ आगे गया। उसने सबको फल न खाने व तोड़े फल फकने का व्यापार का आदर्
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सुनाना। श्जन चार-पांच आग की बैलगाड़ी वालों ने फल खा भलया था, उनस तुरत उल्ट करने क भलए कहा
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गया ।
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