Page 61 - Darshika 2020
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भगवान जो



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               - मुहम्मद ईसाक, अ. श्र. र्ल.






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               एक  राजा  क  दरबार  म  एक  मंिी  था।  उसकी  एक  ववधचि  आदत  थी।  जो  क ु छ  भी  होता  वह  यह
                                                                                       े
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               कहता  "भगवान जो भी करता ह, अच्छा ह  करता ह ।" कभी-कभी वह यह बात बेमौक भी कहता।

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                                                                                                         े
               लोग उससे नाराज होते,  परन्तु बाद म माफी मांगते जब उसकी बात सच्ची होती। उसकी इसी आदत क
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               कारण लोग उसे 'भगवान जोÓ  कहने लगे थे। एक बार वह मंिी बीमार पड़ गया। सब जाकर सांत्वना क
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               र्ब्द बोल आए,  पर बीमार मंिी ने कहा  "भगवान जो करता ह,  अच्छा ह  करता ह ।"  सभी मत्रियों को बहत
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               दु:ख लगा। राजा ने ककसी काम पर बीमार मिी क स्थान पर दूसर मिी को भजा। काम ऐसा खतरनाक
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               सात्रबत हआ कक दूसरा मिी मारा गया। एक बार एक कार गर दरबार म अपनी बनाई हई एक तलवार
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                                                                                             ु
               राजा क भलए लकर आया। तलवार मखमल म लपेट  हई थी। कार गर का कहना था कक ऐसी तेज तलवार
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               आज तक नह ं बनी होगी।

               राजा ने  मखमल  हटाकर  अपनी  अंगुल   स  तलवार की  िार  परखनी चाह ।  सचमुच  तलवार  इतनी तेज
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               तनकल  कक राजा की अंगुल  कटकर नीचे जा धगर । दरबाररयों ने   'ओह-ओह का र्ोर मचाया। एक दरबार
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               वैद्य को बुलाने दौड़ पड़ा। राजा की अंगुल  स खून टपक रहा था और उस पीड़ा भी बहत हो रह  थी।
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               एक मंिी बोला  "गजब हो गया।"  दूसर ने कहा  "घोर अनथष।"  तीसरा बोल उठा  "बहत बुरा हआ।"  परतु भगवान
                                                                                          ु
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               जो ने अपना वह  वाटय दोहराया  "भगवान जो करता ह,  अच्छा ह  करता ह।"  राजा उसकी बात से क्रोधित
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               हो गया। भला अंगुल  कटने म टया भलाई हो सकती उसने भगवान जो को तुरत दरबार स तनकल जाने
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               का आदर् हदया।
                                                                    े
               भगवान जो ने जाते समय वह  वाटय दोहराया। इस घटना क एक मह ने पश्चात कह ं अंगुल  का जख्म
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               पूरा होने पर राजा भर्कार खलने जंगल गया। वहां राजा दुभाषग्य स अपने सतनकों स त्रबछ ु ड़ गया। वह
               काफी दर अकला भटकता रहा।
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               उसी जंगल म एक दुदािंत डाक ू  ककाषणभसंह रहता था। वह काल  मां का उपासक था। डाक ु ओ ने राजा को
                                                                                               ं
               अकल घूमते पाया तो उस पकड़कर अपने सरदार क पास ल गए। राजा क आभूर्ण वगरह उतार हदए
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               गए। डाक ू  ककाषणभसंह ने घोर्णा की "मैं कई हदनों से काल  मां को मनुष्य की बभल दना चाहता था।
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