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P. 110

क त                                                                                         आओ कसम खात ह
             ृ
                                                                                                                              े
          सरज  नकला गगन म
           ू
                                                                                                                                   े
                                                                                                        मलकर आज य कसम खात ह ।
                                                                                                                       े
                    ँ
          दर हआ अ धयारा                                                                                पया वरण को  व छ बनत ह ।
           ू
              ु
                                                                                                                                े
           ं
          ठडी-ठडी हवा चलाई
               ं
                                                                                                                       े
                                                                                                                                   े
                                                                                                        मलकर आज य कसम खात ह ,
           च ड़या भी पंख फलाए
                           ै
                                                                                                        दषण को दर भगात ह ।
                                                                                                                            े
                                                                                                                    ू
                                                                                                          ू
          आसमान म  उड़ चल ।
                                                                                                       मानव तमने अपनी ज़ रतो क  लए.
                                                                                                                                    े
                                                                                                               ु
                             ं
                                  ं
                                    े
                े
            े
          हर-भर बागान  म  रग- बरग फल  खल       े
                                       ू
                                                                                                       वातावरण को  कतना द षत  कया ह       ै
                                                                                                                              ू
          फलो ने अपनी मोहक महक फलाई
                                       ै
           ू
                                                                                                                                                 ै
                                                                                                        फर भी पया वरण ने तझ सब कछ  दया ह।
                                                                                                                                      ु
                                                                                                                               े ु
          महक स मो हत  ततल  खींची चल  आई
                 े
                                                                                                        ाण दायनी त व  जल, वाय और  म ी स,       े
                                                                                                                                  ु
          रसपान कर फल  का उसने खब मौज उड़ाई।
                                       ू
                       ू
                                                                                                                                     ै
                                                                                                            े
                                                                                                       हमार जीवन का उ ार  कया ह।
          दख संदरता  क त क
           े
                ु
                         ृ
                        े
          कोयल भी धीर स गनगनाई।                                                                         फर मी मानव पड़ काटता ह
                                                                                                                                   ै
                           े
                                                                                                                        े
                                 ु
                             ु
                                                                                                       अपने जीवन को संकट म  डालता ह      ै
                                                                                                                                                 े
                                                                                                       पया वरण न होता तो जीवन म रग कहां स होते
                                                                                                                                       ं
                                                                                                                                     े
                                 े
           ं
          रग बदलती  क त सबक मन को भाए
                        ृ
                                                                                                                                 े

                                                                                                       पया वरण को  व छ बनाय हमारा  थम कत य ह           ै
                                          े
          नील गगन पर कभी मघ  क  सफद चादर पड़ जाए।
                                े
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                                 े
                              े
                     े
            य  नराल  क त क दखकर
                         ृ
                                                                                                       आओ  मलकर कसम खात ह ।
                                                                                                                                 े
          हर मन मो हत हो जाए।
                                                                                                       पया वरण को  व छ बनात ह
                                                                                                                                 े
          पवत मघ  स ऊचे उठ,
                               े

                      े
                 े
                        ँ
                                                                                                       आज  मलकर कसम खात ह ,
                                                                                                                                े
          झील न दयाँ झरने जग को अमत  पलाए।
                                        ृ
                                                                                                        दषण दर भगात ह ।
                                                                                                                        े
                                                                                                                ू
                                                                                                          ू
                                       ै
           क त अपने  प अनेक हम  ह  दखलाती
            ृ
          एक-दसर स  म करना हम  यह  सखाती
                     े
                        े
                  े
               ू
                                  ं
          यह  हम  जीवन का हर रग ह बतलाती।
                                      ै
                                                यि त खतान ९
                                                                ै
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                                                                                                                                                                               108
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