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क त आओ कसम खात ह
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सरज नकला गगन म
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मलकर आज य कसम खात ह ।
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दर हआ अ धयारा पया वरण को व छ बनत ह ।
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ठडी-ठडी हवा चलाई
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मलकर आज य कसम खात ह ,
च ड़या भी पंख फलाए
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दषण को दर भगात ह ।
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आसमान म उड़ चल ।
मानव तमने अपनी ज़ रतो क लए.
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हर-भर बागान म रग- बरग फल खल े
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वातावरण को कतना द षत कया ह ै
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फलो ने अपनी मोहक महक फलाई
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फर भी पया वरण ने तझ सब कछ दया ह।
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महक स मो हत ततल खींची चल आई
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ाण दायनी त व जल, वाय और म ी स, े
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रसपान कर फल का उसने खब मौज उड़ाई।
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हमार जीवन का उ ार कया ह।
दख संदरता क त क
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कोयल भी धीर स गनगनाई। फर मी मानव पड़ काटता ह
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अपने जीवन को संकट म डालता ह ै
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पया वरण न होता तो जीवन म रग कहां स होते
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रग बदलती क त सबक मन को भाए
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पया वरण को व छ बनाय हमारा थम कत य ह ै
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नील गगन पर कभी मघ क सफद चादर पड़ जाए।
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य नराल क त क दखकर
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आओ मलकर कसम खात ह ।
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हर मन मो हत हो जाए।
पया वरण को व छ बनात ह
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पवत मघ स ऊचे उठ,
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आज मलकर कसम खात ह ,
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झील न दयाँ झरने जग को अमत पलाए।
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दषण दर भगात ह ।
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क त अपने प अनेक हम ह दखलाती
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एक-दसर स म करना हम यह सखाती
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यह हम जीवन का हर रग ह बतलाती।
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यि त खतान ९
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अि वना अ वाल
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