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माता- पता एक कदम व छता क ओर मरा साया- मरा दो त
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रह हमशा हमार साथ
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मरा साया, कहने क लए एक काल परछाई
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दखा ह पर दश ने जो सपना,
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कभी न छोड हमारा हाथ िजसस कोई डर।
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उस बनाकर हम अपना।
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ह हम उनक राजदलार पर मर लए मरा दो त ह मरै ा साया।
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चल पड़ ह लकर छोट-छोट कदम
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ह हम उनक सबस यार।
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मंिजल तक पँहचे बना, न क गे हम। म जहाँ चलँ मेरे साथ चले मेरा साया
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इस दो ती ना कह तो या?
ह हम उनक राजकमार
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त हारा - हमारा हर एक का ह
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हमस करत ह वे बहत सारा यार बचपन म आ चय होता था क यह काल चीज या
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यह कत य हर भारतीय का ह।
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हमशा हमारा यान वे रखत ह?
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पर दश को ह व छ बनाना मझ छोडना ह नह ं चाह
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या हम उनस यार नह ं कर सकत?
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चमकाएँग हम हर कोना - कोना। तो चलो इसक साथ म खल ह लँू
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अ छा बरा सब दलाया
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अपने दश को चमकाने का यास अपनी उदोसी को हँसी बनाने वाला
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बराई स हम लड़ना सखाया
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हर एक भारतीय क मन म होनी चा हए यह ऐसा मरा दो त, मरा साया।
ह हम एक फल
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आस। िजंदगी भर का साथ नभाने वाला
िजसक ह वे वनमाल । ऐसा दो त कहां मल?
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आज ह स अगर कर गे श आत
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तो हर जगह होगी व छता क बात। जस म बड़ा होने लगा मरा साया मर साथ बढ़ने
रखत-रखत यान हमारा
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लगा।
उ ह ने हमारा जीवन ह सँवारा
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बढ़ाकर एक कदम व छता क ओर बचपन गया, जवानी जा रह ह
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करत ह रखवाल हमार
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लाना ह जीवन म अ छा बदलाव घरवाल का साथ छट गया।
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य क हमस ह उनक द नया सार ।
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पया वरण भी हम देगा दआ। अब िजंदगी क उस मोड़ पर
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आने वाल पी ढ़यो क लय छोड गे अ छ े े
आस बहाकर हम हँसाया अपने आपको शीश म दख न सक ँू
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सौगात। कछ ठ कछ बछड़।
नींद उड़ाकर हम सलाया
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डाँटकर हँसाया बनकर वधाता
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पर मर साए ने मरा साथ न छोड़ा,
मधरा पोटफोड ९
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द नया कहती उ ह माता- पता।
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अ तम ण तक मरा साथ नभाया
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मरा दो त, मरा साया।
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अ वत रामनाथ ९
आजव जन ९ ै
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