Page 154 - Gyananda YearBook 2022-23
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152 र त वाल (महावर स कहानी)
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·साल 2022 क बात कर तो अब नया बदल गई ह समाज बदल गया ह और लोग भी बदल गए। आइए एक नजर
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डालत ह शमा जी क घर पर । घर क बट कमला, कमर तोड़ प र म कर बन गई थी वक ल | अब उसक माता- पता
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उस स अनरोध कर रह थ क वह ज द स ज द ववाह कर ल । कई र त आए | एक दन एक सप प रवार स र ता
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आया | र ता होन क व प रवार क सभी सद य एकजट होकर उप त थ | लड़क वाल क आन पर कमला क े
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घरवाल न उनका वागत कया | लड़क क पता अपन मह मया म बन रह थ और लड़क वाल को बोलन का अवसर
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ही नह द रह थ । परत जब लड़क क पता न दहज क बात क तो यह सन कमला क दाद मा, लड़क क पता को
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ग स स दखन लगी और आग बबला हो गई । कमला न दाद को सभाला । अगर दाद शर ह, तो पोती सवा शर । बात
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तो तब श ई जब कमला न पछन श कए , मानो उस न उ ह न र कर दया । बट अपन पता क आख
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का तारा थी इस लए पता न उस बोलन स नह रोका । लड़का कमला क सनकर अगर-मगर करन लगा और उसन े
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अपन ही पर पर क हाड़ी मार द थी। लड़क क श णक यो यता तो अ थी परत अ ल स पदल नकला । चाचा जी
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भी टाग अड़ान म मा हर थ | उ ह न भी आग म घी डालन का भी काम कर दया | और बात –बात म लड़क क मह स े
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नकलवा ही दया क वह जआ खलता ह | यह बात प रवार वाल को अ न लगी और लड़क क सहम त भी नह
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मली। इसस पहल क लड़क वाल घी का दया जला सकत लड़क वाल न अगठा दखा दया और नराशा क साथ
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लड़क वाल को वापस लौटना पड़ा ।
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अ णमा मनराल, क ा-9
हर सद म ास गक ह कबीर
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सत कबीरदास जी हद सा ह य क भ काल क नगण शाखा क क व थ | उ ह न अपना परा जीवन मानव
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म य क र ा और मानव सवा म तीत कया | व नगण नराकार ई र म व ास रखत थ और उनका
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मनना था क ई र कण-कण म व मान ह | इनक का म समाज सधार क भावना साफ़-साफ़ दखाई
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दती ह | कबीर न सामा जक बराइय का खडन तो कया ही साथ ही साथ आदश जीवन क लए नी तपण
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सदश भी दया |
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कहत ह, कबीर दास जी का ज म 1398 म आ और दहात 1518 म | उनका ज म बनकर क प रवार म
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आ और उ ह न कोई औपचा रक श ा नह पाई , फर भी उनका लखन ब त भावशाली था | कबीरदास
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जी न अपनी रचना म सध कड़ी भाषा का योग कया | कबीर क वाणी को साखी, सबद और रमनी तीन
प म लया ह |
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कबीर क वचार न मर जीवन जीन क तरीक म बदलाव लाया | उनक व ास उनक समय स अ य धक
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आग थ | उनक समय क सामा जक, आ थक और धा मक त क झलक उनक दोह स मलती ह जस े
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" ह मआ राम कही, मसलमान ख़दाई,
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कह कबीर स जीवता, जो दो क नकट ना जाई |"
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अथात, राम रहीम म ना पड़कर हम स ी भ अपन मन म रखकर जीवन जीना चा हए |
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कबीर सरल भाषा म बात करत थ , जस स सभी जा त, धम और ह सयत क लोग उनक उपदश को समझ
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पाएँ | उनक स य न ा एव न प ता न उनक व को इतना भावशाली बना दया क जो भी उनक े
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पास गया उनका ही होकर रह गया |
शर या राजमोहन अ यर ,क ा-9