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य: छाात्र: आलस्यं त्यक ् त्वा िररश्रमि षवद्याध्ययिं कराषत स एव साफल्यं लभत ||
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अर्ात् : िररश्रमी छात्र आलस्य त्याग ते हैं और सफलता प्राप्त करत हैं |
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तत: प्रषतषिवृत्य स्िािसि्ध्योिासिाषदक ं षवधाय अध्ययिं कत्तव्यम ||
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अर्ात् : सभी छात्र स्िाि करि क े बाद प्रषतषदि अध्ययि उिका प्रर्म कतव्य है |
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कस्मषचत कालाय भ्रमिाय अषिवायम ||
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अर्ात् : शाम क े समय र्ूमिा अषिवाय है |
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तत्र गत्वा गुऱूि ित्वा अध्ययिं कत्तव्यम ||
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अर्ात् : सभी छात्र अध्ययि क े दौराि गुरु को प्रिाम करत हैं |
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तदि्तरं च लर्ुसात्षवक ं भोजिं दुग्ध च गृषहत्वा षवद्यालय एि्तव्यम ||
अर्ात् : लर्ु साषत्वक भोजि दुग्नध ग्रहि करत हैं |
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छात्रजीविं िुित: अिुशासिबद्धं भवषत षवद्यार्ी जीवि एव समस्तािाां मािवोषचतगुिांिां षवकास:
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भवषत ||
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अर्ात् : छात्र जीवि िूरी तरह से अिुशासि का जीवि है षवद्यार्ी जीवि में यहीं से मािषसक
षवकास होता है |
तनपुणिा एक सिि प्रकक्रया ह,कोई िुघथिना नहीं।
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