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                   आग ही आग बढ़ना
                                              े
          एक बार और उठ कर िलन की कोशिि करनी है।
                                               े
          एक बार और धगरिे कर संिलना हैं।

          क्जंिगी की परख अिी बाकी हैं ,
          अिी िो हमें अपनी ककस्मि को िी बिलना हैं।

          बांध कर होंसल अपन िलिे िलो,
                                       े
                               े
          इस राह पर
          एक ठोकर पर र्मना नहीं है

          जीिन में शमली हर मुसीबि से ,आग बढ़ जीिन निी बन बहना..
                                                          े
          आग ही आग बढ़ना ।।
                 े
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          मयंक
          आठिीं A












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                                                                      ै
               जीिन में बस िही िास्िविक असिलिा ह क्जसस आपन सीख नहीं ली.
                                                                                े
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