Page 110 - lokhastakshar
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एक 9खलंदड़ापन भी इन क?वताओं म लगातार टॉU
टाय, चेखव, रवींL और *ेमचंद सटे हुए बैठे
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िमलता रहता ह। ‘अ2ना करिनना: चैपमैन हQ। बड़े #दल से िलखती है कविय<ी – ‘घर के सब
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बहूयीय क2या ?वालय क पु
तकालय म’ कामकाज िनबटा कर / चल पु
तकालय चली आई/
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कविय<ी _स जान और _ठ जान को िमलाती ह- उन सब गृह9णय- के जीवन का/ पहला और अंितम
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याद करती हुई #क _सना #)या दरअसल _ठन क7 रोमांस / वह" थे।‘
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भी पया य ह और बताती ह #क 9~यां बार-बार _स
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तो सार" दुिनया को दखती, परपरा और
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जाती ह। और इस क2या ?वालय क पु
तकालय
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आधुिनकता को घोल कर फट कर, आती-जाती
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म बैठे-बैठे क7 जा रह" इस _स क7 *द9 णा म
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स यताओं को खंगाल कर, अपन #ह
स क7 क?वता
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,या िमलता ह? य पं?^यां बताती ह: ‘अ2ना
गढ़ती यह कविय<ी दरअसल एक नए जीवन का
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करिनना टहल रह" थी / वोUगा क #कनार / अपन
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संधान करती ह- क?वता छट तो छट जाए, यह
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बड़ गाऊन म5। / मQ उसस िलपट गई / एक पूर"
जीवन-}?y न छट, यह मािम क और मानवीय
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9ज़ंदगी / मQ घूमती ह" रह" मॉ
को क7 गिलय- म/
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खयाल जैस इस संह क7 कL"य धूर" ह। ‘टोकर"
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उसस बितयाती! / #फर वÁत चलन का आया,/
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म #दगंत’ िनzय ह" हमार समकालीन रचना समय
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चलत समय मQन दखा- बंद ह" नह"ं हो रहा था
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क7 एक उजली उपल9bध ह।
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मेरा सूटकस! / लगातार तब स तहा रह" हूं कपड़
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और
मृितयां’।‘ (टोकर" म #दगंत: अनािमका, राजमकल *काशन,
300 eपए)
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अनुभव और अrययन क7 यह जो संपदा ह, वह
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रोज़मरा क अनुभव- को भी, बड़ और सुंदर *तीक- लखक - ?*यदश न
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म बदल डालती ह। ‘चल पु
तकालय’ म वेद लेखक, प<कार, समी क आलोचक
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करआन क पड़ोस म िन9zंत सोए िमलत ह और
मई – जुलाई 110 लोक ह
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