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ए.क.-47 भी उसक> पहच से बाहर ह। उसे उUचत था यह +~ पर बfच' ने पूछा नह!ं।
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तो चा1हए होमगाड क ड2डे जैसी कोई शय... बस शायद इस#लए 9क कह!ं घूमने और आई $>म
9कसी तरह काम चल जाए। पर आजकल तो खाने का अवसर न हाथ स %नकल जाए।
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होमगाड वाले भी बंदूक #लए घूमते ह... शु$ अदा बfचे भी 9कतने +ैि&टकल हो गए ह,
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करते ह'गे #म#लटसी का, उनका भी ठाठ बना सोचते हए उसने अपने मन को टटोला।
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1दया ह, डंडा छ ु ड़वा कर हUथयार थमा 1दया ह!
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होल! क अवसर पर टल!Pवजन पर भी खूब
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व&त क साथ सब क ु छ कसे कदमताल रग बरस रहा था। 9फnम' और ट!.वी. सीKरयल
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#मला कर चलता ह। बfचे होल! भी खेलगे तो कलाकार खूब नाच गा रह थे, हड़दग मचा रह थे।
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हUथयार' क साथ... ए.क.-47 क> Pपचकार!... तरह- रात को समाचार क बाद ट!.वी. ने कहा, ‘होल!
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तरह क> PपचकाKरय' पर नजर गई... बfच' क> आई ह, माला डी क> गोल! यह रग लाई ह...’
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ओर भी zयान गया और बीवी क> थमाई सामान
‘‘पापा, माला डी &या होता ह?’’ संजू न
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क> #ल ट को भी टटोला।
अजीब टढा सवाल खड़ा कर 1दया।
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जेब को टटोलते हए सोचा, बfचे तो एक
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दूसर पर पानी डालकर भी +सSन हो लगे पर... ‘‘बुWू कह!ं का, माला डी नह!ं जानता...?’’
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बेबी ने सब क> अ&ल को जैसे छtंक म टांग 1दया
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बीते सyताह ह! तो खांसी जुकाम... अर नह!ं, नह!ं
हो। मनक' क> माला?
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पूर बजट क> पहले ह! चूल 1हल! हई हg। अगर
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9फर से बीमार पड़ गए तो? और 5बना +?यु?तर क ह! यह +`न न
जाने कहां आलोप हो गया। बfचे अUधक गहराई
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उSह सब समझा दूंगा... आजकल
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म नह!ं उतर और खा-पीकर जnद! सो गए।
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#मलावट! रग बहत आन लगे हg। तरह-तरह क
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क#मकल से बन, ?वचा खराब हो जाती ह िजनसे। +ातः काल क +सारण म माला डी वाल!
अगर बात बहत Vयादा बढ़ गई तो इSफ&शन बात को आगे बढ़ाया गया। कहानी क ु छ इस +कार
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का भय 1दखाऊगा। वयं सोचते रह जाएगे 9क ह 9क हर वष संतान पैदा करने क च&कर म बह
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इSफ&शन &या होता ह? हर बार होल! से वंUचत रह जाती ह। अंत म
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उसक> ननद उसको ‘माला डी’ का पैकट दती ह।
‘‘पर दो छ ु 1¹यां हg पापा, घर बैठ बैठ बोर
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िजसक> बदौलत वह इस वष होल! खेलन का5बल
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हो जाएंग?’’
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हो पाई ह।
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जानता ह वह, यह +~ उठ खड़ा होगा।
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&या हम समझ चुक ह 9क बढती हई
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इस#लए वह पहले से ह! तैयार था, ‘‘अपन 1दन
आबाद! एक भयानक सम या का dप धारण कर
भर ट!.वी. दखगे। शाम को पाक म घूमने जाएंगे
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चुक> ह? अपने बfच' और अपने सहक#म य' क
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और आई $>म भी...’’
पKरवार' को zयान म रख कर 1दल!प सोचन
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‘‘आप ह! तो कहा करते हो, अUधक ट!.वी. लगा... महगाई क चलते जीना दुभर होता जा रहा
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नह!ं दखना चा1हए?’’ ह... महगाई भ?ता कोई राहत नह!ं दता। उnटा
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मई – जुलाई 57 लोक ह ता र