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बहता द1रया
मै3यी पु4पा से मीना ी चौधर6 क+ बातचीत
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एक $नभ7क लखक य9द वह म9हला हो तो अपने साथ पूर समाज को लकर चलती ह। उसक
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पास वह >ि4ट ह िजससे वह न कवल वत'मान अAपतु भAव4य को भी पढ़ सकने का सामCय'
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रखती ह। वह 3ी होते हए भी सबसे पहल ि 3यD क+ आलोचक ह।
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(सामा"य तौर पर होता Hया ह, जब हमारा प$त, हमारा पु3, हमारा भाई, हमारा Aपता, चाह वह
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-कतना ह6 गलत कर आए, हम ि 3या उसी का प लती ह। तुमने दखा भी होगा -क
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बलाLकार, हLया तजैसे जघ"य अपराधD म NलOत पुPषD क समथ'न म उनक घर क+ ि 3या ह6
बोलती ह।)
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नव लखकD क बार म बेबाक+ से अपनी राय रखती ह।
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सृजन क+ क9ठनाइया उनक सामने ह ह6 नह6, TबUक ु ल भी नह6 ह। आज क लखक बड़े आराम
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से Nलखते ह। उ"ह बीहड़D म भी रहने क+ जWरत नह6ं। मानो सारा भारतवष' हमार नगरD या
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महानगरD म ह6 बस रहा हो, ऐसा लगता ह तो नव लखकD को Hया 9दHकत ह? सब सुAवधाएं
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ह? मेरा यह कहना ह -क हम लखक सुAवधा भोगी हो गए ह। हम पानी चा9हए। Tबजल6 चा9हए।
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ए.सी. चा9हए, Hया-Hया नह6 चा9हए और जब यह सब होता ह, तब हमार6 Nलखावट होती ह।
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ल-कन जब हम इन सब को छोड़कर चलते ह तो सृजन क+ राह बनती ह।
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3ी Aवमश' म वह उस 3ी क+ बात करती ह जो शहर क+ प1र]ध से बाहर गांव क आंगन म
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बैठ^ प पात और अ"याय क+ धूप म नंग पांव चूUहा ल6पती ह और उ_फ तक नह6 करतीं।
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उनक लखन क बार म राज"` यादव कहते ह :“तुम गांव क+ 3ी लाई हो। उ"हDने -फर कह6ं
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Nलखा भी -क ेमचंद और रणू गांव क+ ि 3या लाए ह ल-कन मै3यी ि 3यD का गांव ल आई
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जी हा, लोक-ह ता र म बहता द1रया म तुत ह 9हंद6 भाषा क+ सशHत लcखका मै3यी पु4पा
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से मीना ी चौधर6 क+ अ"तरग बातचीत जो कई अथd म समाज क हाNशय से बाहर क+ दु$नया
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से आपको Nमलवाती ह। मै3यी पु4पा जी और मीना ी चौधर6 जी का इस बातचीत को लोक
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ह ता र का 9ह सा बनाने क Nलए आभार :
मई – जुलाई 9 लोक ह ता र