Page 23 - E-Book 22.09.2020
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डॉ. स या
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एक कली बिगया क कब कसे फल बनी।
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या बतलाऊ कसे एक न वो शूल बनी ।।
थी मुि क़ल से अंजान, और खुद से बेखबर।
शायद इसी िलए वो राह क धूल बनी।।
बदली सारी फजाय और बदल गया रग प ।
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एक हवा क झ क से वो हो गई ब त क प।।
और अपने ही जीवन क जीवन क भूल बनी।
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या बतलाऊ कसे एक न वो शूल बनी ।।
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उड़ी उड़ी या है और सूनी सारी फ़ज़ाए।
म रात रात भर "स या" करती खुद से बात ।।
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तुम जान सको तो जानो कसे वो बबूल बनी ।
या बतलाऊ कसे एक न वो शूल बनी ।
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एक काली बिगया क कब कसे फल बनी ।।
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