Page 28 - KV Pragati Vihar (Emagazine)
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इंसान हो.....                                  मेरे सपनों का भारत


                 सुना है ररश्ते तनभाने में मादहर हो  ....                मेरे सपनों का भारत वो नहीं ,
                       क्रफर मेरे मलये ही क्यों ?                            जो ग्लोब में दीखता है
                   हर ररश्ता समेट कर बैठ जाते हो                      वो तो में बसता है    "  मन    "  यहााँ मेरे .....

                 सारी अनुभूततयााँ लपेट कर बैठ जाते हो
                                                                            तीन रंगों में उभरता ह ु आ
             क्रकतना क ु छ पनपा लेने का फख्र हामसल है मुझे
                                                                            संस्क ृ तत से तनखरता ह ु आ
           पर खुद क े  मलए तुमसे इक शून्य ही पनपा पायी ह ू ाँ
                                                                           स्वखणाम भपवष्य रचता ह ु आ
             अपना ही दुःख आज तलक नहीं समझा पायी ह ू ाँ
                                                                           सबक े  ददलों में बसता ह ु आ
                             पृथ्वी र्रा ....
                                                                          हर ददन इततहास रचता ह ु आ
                           भूममवत्सला  ....
                                                                          उन्नतत क े  प्रयास करता ह ु आ
                बसनाम ही तो ददया है तुमने मुझे  ......
                                                                            राग द्वेष से बचता ह ु आ
                           इस मलए शायद
                                                                            हररयाली से संवरता ह ु आ
                 नाम भर का ही ररश्ता रखते आये हो
                                                                          अनेकता में एकता र्रता ह ु आ
             भाई होते तो संजो क े  रखते अपने हाथों पर    ....,
                                                                           बस सूरज सा चमकता ह ु आ
            पपता होते तो उठाये  क्रफरते अपने कााँर्ों पर   ......  ,
                                                                            सब क े  साथ चलता ह ु आ
               मााँ होते तो  उढ़ाते जाते र्ातन चुनररया   ....,
                                                                            आगे ही आगे बढ़ता ह ु आ
                बहन होते हो बढ़ाते जाते मेरी उमररया ....
                                                                       सपनों का भारत आाँखों से नहीं  .....
                              जां.....
                                                                               मन से दीखता है
                  मेरे मलए भी कोई ररश्ता गढ़वा लां
                                                                            और मन में ही बसता है
                       येक े  अलावा  " लेने    -  देने  "
               मेरे मलए भी कोई ख़ास वजह मढ़वा लां                                                  कल्पना पाण्डेय
                       सुना हैतुम इंसान हो  .....

                      सुना है .....काफी महान हो
                                            कल्पना पाण्डेय
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