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ल ही ीवन
इक बात पते की बताऊूँ िैं अपनी किानी सुनाऊूँ ,
स्जसका राजा िैं पानी और ये धरा सुिानी |
सुबि िई तो बबस्तर छोड़ा , ब्रश पे िंजन थोड़ा-थोड़ा
ु
िलो गरि पानी से निाएूँ ,साबुन क े बुलबुले बनाएूँ
साबुन क े गुब्बारे देखो, इनपे बैठो उड़ना सीखो
हदन िें सपने कै से देखे, आकर इन बच्िो से सीखो
कफर आूँगन िें िाल आया, बाग िें पौधो को निलाया
नन्िें-नन्िें फ ू ल णखलेगे, पंछी बागों िें ििके गें
बन क े िैं िररयाल छाऊूँ , िैं अपनी किानी सुनाऊूँ ||
णखला भोर िें बाग -बगीिा, िाूँ ने उठकर आूँगन सींिा
पानी उबला िाय बनाई ,सबको गरिा गिा वपलाई
िटके िें पानी भर लाई , पूजा की कफर थाल सजाई
पानी से ि िो गई ,पूर बतान और कपड़ो की सफाई
और रसोई िें पानी ने कफर ,हदनभर अपना रौब जिाया
भूख मिटाई,प्यास बुझाई ,खुमशयों का िािौल सजाया
इक बात पते की बताऊूँ िैं अपनी किानी सुनाऊूँ ,
स्जसका राजा िैं पानी और ये धरा सुिानी ||
नहदयाूँ ,झरने और सरोिर ,पानी क े ि ऱूप िै न्यारे
िानो अपनी धरती िाूँ क े िैं कीिती गिने सारे
पानी ि िैं सबका जीिन ,पानी को िर पल भरना था
पानी से ि सार दुननया , पानी से ि िानि जानत
खुश िै सारे धरती िासी ,लेककन िैं एक बात जरा सी
पानी का सतिान करो तुि ,कफर न छाए कभी उदासी
सबका जीिन िैं बन जाऊूँ , िैं अपनी किानी सुनाऊूँ | |
डॉ. दीप ली पोहरे
हहिंदी पवभ ग प्रमुख