Page 42 - Rich Dad Poor Dad (Hindi)
P. 42

“तुम दोन  ऐसे पहले लोग हो िज ह ने मुझसे पैसा बनाने क  कला सीखने का आ ह

               िकया। मेरे पास 150 से भी  यादा कम चारी ह  पर उनम  से एक ने भी मुझसे पैसा कमाने क
               कला क े  बारे म  कभी नह  पूछा। वे मुझसे नौकरी माँगते ह , तन वाह माँगते ह  परंतु पैसा बनाने
               क  कला नह  सीखना चाहते। तो  यादातर लोग इसी तरह अपनी िज़ंदगी क े  सबसे बेहतरीन
               साल पैसे क े  िलए काम करने म  बबा द कर द गे, और आिख़र तक यह कभी समझ ही नह  पाएँगे
               िक दरअसल वे िकसक े  िलए काम कर रहे ह ।”

                     म  पूरा  यान लगाकर उनक  बात सुनता रहा। “तो जब माइक ने मुझसे कहा िक तुम पैसा
               कमाने क  कला सीखना चाहते हो, तो म ने एक ऐसा कोस  तैयार िकया जो असली िज़ंदगी क े

               क़रीब था। म  बोलते-बोलते थक जाता, परंतु तुम कभी मेरी बात का मतलब नह  समझ पाते।
               इसिलए म ने यह फ़ ै सला िकया िक तु ह  िज़ंदगी क े  थपेड़  का  वाद चखा िदया जाए तािक तुम
               मेरी बात सुन भी सको और समझ भी सको। इसी कारण म ने तु ह  एक घंटे क े  10 स ट िदए थे।”

                     “तो 10 स ट  ित घंटे काम करने क े  बाद म ने  या सबक सीखा?” म ने पूछा। “यही िक
               आप घिटया ह  और अपने कम चा रय  का शोषण करते ह ।”

                     अमीर डैडी अपनी क ु स  पर पीछे क  तरफ़ झुकते ह ए ज़ोर से हँसने लगे। जब उनक  हँसी
               बंद ह ई तो उ ह ने कहा, “अ छा होगा अगर तुम अपना सोचने का नज़ रया बदल लो। मुझे
               सम या मत मानो। मुझे दोष देना छोड़ दो। अगर तुम सोचते हो िक तु हारी सम या म  ह ँ, तो तु ह

               मुझे बदलना होगा। इसक े  बजाय अगर तु ह  यह लगता है िक तु हारी सम या तुम ख़ुद हो, तो
               तुम ख़ुद को बदल सकते हो, सीख सकते हो और  यादा समझदार बन सकते हो।  यादातर
               लोग चाहते ह  िक दुिनया का हर आदमी बदल जाए, बस हम ख़ुद ही न बदल । म  तु ह  यह बता दूँ
               िक िकसी दूसरे को बदलने से  यादा आसान यह है िक हम ख़ुद को बदल ल ।”

                     “म  आपक  बात ठीक से समझ नह  पाया,” म ने कहा।

                     “अपनी सम याओं क े  िलए मुझे दोष देना छोड़ दो,” अमीर डैडी ने अधीरता से कहा।

                     “पर आपने मुझे िसफ़    10 स ट का ही वेतन िदया।”


                     “तो तुमने  या सीखा?” अमीर डैडी ने मु कराकर पूछा।

                     “यही िक आप घिटया ह ।” म ने शरारत भरी मु कान क े  साथ कहा।

                     “अ छा, तो तुम यह सोचते हो िक सम या म  ह ँ,” अमीर डैडी ने कहा।

                     “वो तो आप ह  ही।”

                     “ख़ैर, इसी तरीक़ े  से सोचते रहो और तुम िज़ंदगी भर क ु छ नह  सीख पाओगे। अगर
               तु हारा नज़ रया यही है िक सम या म  ह ँ तो तु हारे पास  या िवक प रह जाते ह ?”

                     “अगर आप मेरी तन वाह नह  बढ़ाते या मुझे  यादा इ ज़त नह  देते ह  तो म  काम
               छोड़कर चला जाऊ ँ गा।”
   37   38   39   40   41   42   43   44   45   46   47