Page 302 - E-Magazine 2016-17
P. 302
बचपन
सवेरा
एक बचपन का ज़माना था,
सूरि तनकला शमटा अाँधेरा,
जिस में खुशियों का खिाना था...
देखो बच्चों हआ सवेरा !
ु
चाहत चााँद को पाने की थी,
आया मीिी हवा का फे रा,
पर ददल तततली का दीवाना था...
चचड़ड़यों ने फफर छोड़ा बसेरा !
खबर न थी क ु छ सुबह की, िागो बच्चो अब मत सोओ,
न िाम का दिकाना था... इतना सुन्दर समय न खोओ !
थक कर आना स्क ू ल से, ओम गौिम, III N
Monisha G. II—E
पर खेलने भी िाना था...
मााँ की कहानी थी,
पररयों का फसाना था...
पूरना को समर्पिि
बाररि में कागि की नाव थी,
एक शसतारा िो बना ही था
हर मौसम सुहाना था...
तारों के साथ चमकने के शलए I
ओम गौिम, III N
सौभाग्य हमारा
ह्म रोिन हए उसकी रोिनी से,
ु
खुि हए उसकी मुस्क ु राहट से
ु
मेरी मााँ और िी शलए िीवन उस
जिंदाददल के साथ I
घुटनो से रेंगते - रेंगते,
कब पैरों पर खड़ा हआ, Poorna Rajesh - VI
ु
तेरी ममता की छााँव में, मछली का बुखार
िाने कब बड़ा हआ, मछली ने खा शलया अचार,
ु
काला टीका दूध मलाई, चढ़ा उसे झट तेि बुखार!
आि भी सब क ु छ वैसा है | डॉक्टर बनकर मेंढक आया,
मैं ही मैं हाँ हर िगह, थमाामीटर तुरंत लगाया !
ू
प्यार ये तेरा कै सा है, फफर मेंढक इंिेक्िन लाया,
सीधा-साधा, भोला-भाला, झट मछली को उसे लगाया !
मैं ही सबसे अच्छा हाँ, फफर क ु छ कड़वी दवा पपलाई,
ू
फकतना भी हो िाऊाँ बड़ा, झटपट मछली उछल आयी !!
"मााँ " मैं आि भी तेरा बच्चा हाँ! ओम गौिम, III N Lakshita V—E
ू
ओम गौिम,III N
Nishka Manmay II—M