Page 307 - E-Magazine 2016-17
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फै शन का र्वद्यार्थियों पर प्रभाव
फै िन िब्द का अथा फकसी भी काया को करने का ढंग होता है। पवद्याचथायों के शलए इसका मतलब नए ड़डज़ाइनर
कपड़े पहनना, अलग-अलग ढंग से अपने बाल बनाना आदद होता है। पपछले क ु छ सालों से फकिोर फै िन पर
अचधक ध्यान देने लगे हैं। यह उनके िीवन का अत्यंत महत्त्वपूर्ा दहस्सा बन गया है। अगर पवद्याथी ऐसे कपड़े
पहने िो उनके शलए आरामदायक हों और वे समाि में अदब से पेि आ सकें तो इससे फकसी को एतराज़ नहीं।
कपड़े मौके , उम्र और माहौल के दहसाब से पहनने चादहए। पाििालाओं में अलग-अलग पृष्ठभूशम से लोग आते हैं।
अमीर छात्र स्क ू ली वदी में भी फै िन करने के तरीके ढ ूाँढ लेते हैं। दूसरी ओर मध्यमवगीय पररवारों से आने वाले
बच्चे िो ब्रैंड़डड कपड़े नहीं खरीद सकते वो ड़डप्रैिन का शिकार हो िाते हैं। फकिोर पवद्याथी सोिल मीड़डया पर
अपने ब्रैंड़डड कपड़ों वाली तसवीरें पोस्ट करते हैं और अपने सहपादियों तथा अन्य दोस्तों के साथ ’ड़डजिटल युधॎध’
का दहस्सा बन िाते हैं। इस कारर् फकिोरों द्वारा होने वाले अपराधों में भी वृपधॎध हई है। फै िन पवद्याचथायों को पढ़ाई
ु
से दूर ले िा रहा है। अपनी पढ़ाई करने का समय पवद्याथी फै िन मैगज़ीन पढ़कर या यू ट्यूब पर मेकअप
ट्युटोररयल्स देखकर व्यथा कर देते हैं। यह उनके परीक्षाओं में कम अंक आने का कारर् बन गया है। मेरा यह
मानना है फक यदद पवद्याथी अपने फै िन पर तनयंत्रर् रखें और अपनी मयाादा में रहें तो अपने आत्मपवश्वास के बल
पर समाि में अपनी छाप छोड़ सकते हैं।
प्रत्यिा 10-A
ये क ााँ आ गए म
कभी-कभी सोचता हाँ फक ये कहााँ आ गए हम? खुद को साँवारने, तनखारने और गौरवाजन्वत करने की चाहत में। कभी
ू
आधुतनकता की आड़ में तो कभी सफलता की चाहत में, फकतना बदल गए हैं हम। बदलना तो प्रक ृ तत का तनयम है
और इंसान की प्रक ृ तत। बदलाव यदद स्वंय को श्रेष्ठ बनाने के शलए हो या क ु छ अनूिी उपलजब्धयााँ हाशसल करने के
शलए हो तो अच्छी बात है, परंतु आि की युवा पीढ़ी तो बबना अपने पववेक का प्रयोग फकए अंधाधुंध अपने रहन-
सहन को, अपनी आदतों को और अपनी िीवन—िैली को बदल रही है। ऐसे संस्कार ग्रहर् कर रही है िो उन्हें पतन
की ओर ले िा रहे हैं। ये संस्कार न तो उनके माता-पपता उन्हें दे रहे हैं और न ही शिक्षक। ये तो पररर्ाम है गलत
संगतत, गलत सोच और गलत धारर्ाओं का। आि का नौिवान खुद को सवोत्तम और प्रभाविाली समझने लगा है।
माना फक आि हमारे आसपास बहत क ु छ बदल रहा है, चाहे वो शिक्षा व्यवस्था हो या सामाजिक व्यवस्था। युवाओं
ु
को चादहए फक वे बदलती पररजस्थततयों में खुद को ढालने से पहले अपने बड़ों से पवचार-पवमिा कर अपनी दुपवधाओं
का हल तनकालें और उनके मागादिान में ही महत्त्वपूर्ा तनर्ाय लें। वे भूल कर भी न भूलें फक देि का उज्जज्जवल
भपवष्ट्य उनके हाथों में हैं, और ये जज़म्मेदारी उन्हें पूरी तन्मयता से तनभानी है।
लर्वत्रा क्षितिज मदान किा-११वीिं ’बी’