Page 308 - E-Magazine 2016-17
P. 308
दीवार
हो गई है पीर पवात सी पपघलनी चादहए,
इस दहमालय से कोई गंगा तनकलनी चादहए।
आि यह दीवार, परदों की तरह दहलने लगी,
िता लेफकन थी फक यह बुतनयाद दहलनी चादहए।
हर सड़क पर, हर गली में, हर नगर में, हर गााँव में,
हाथ लहराते हए हर लाि चलनी चादहए।
ु
शसफा हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं,
मेरी कोशिि है फक ये सूरत बदलनी चादहए।
मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही,
Nandika Mudra IV– H
हो कहीं भी आग लेफकन आग िलनी चादहए।
(पढ़ी गई कपवता)भलखखिा एन 9-E
सु ावने हदन.....वापस लौट आ
90 की पीढ़ी का बचपन
था सबसे खास सबसे मज़ेदार
हर वक्त फोन पर नहीं होते
और करते सबसे खेल-क ू द में वार
हे सुहावने ददन...... वापस लौट आ
Manmay II—M
खाना था हमें बौबोन पर शमल िाती शसफा पाले-िी
बुदढ़या के बाल एक रुपए के , अब शमलते हैं पचास में
स्क ू ल में दू सरों का लंच खा कर,घर में मााँ के हाथों से खाना
हे सुहावने ददन...... वापस लौट आ
स्क ू ल में टीचर से डााँट खाना और पीि पर डंडे पड़वाना
दू सरों से परीक्षा में उत्तर पूछना और चाक से िूते सफे द कर लाना
हे सुहावने ददन...... वापस लौट आ
ऐसा बचपन अब कहााँ शमलता है
सब हैं अपने आप में
िाग उिाओ इस संसार को
बनाओ इसे 90 की तरह
Pradhyumna II—B
हे सुहावने ददन...... वापस लौट आ
अक्न्विा बेलावल 9-E
Neha Ganesh IV—F