Page 310 - E-Magazine 2016-17
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क्ज़िंदगी


          जज़ंदगी बार-बार नहीं शमलती है, यह क ु दरत का सबसे बड़ा तोह्फा है। हमें जज़ंदगी से प्यार करना चादहए और
          इसका सम्मान भी करना चादहए। जज़ंदगी में सुख-दुख तथा खुिी और गम ज़ऱूर आते हैं, फक ं तु हमें कदाचचत
          पवचशलत नहीं होना है । प्रत्येक कदिनाई का सामना धैयापूवाक करना है तथा मन में िांतत रखनी है। फफर परम

          पपता परमेश्वर से िड़ि मााँगनी है फक हमें उसका समाधान शमले। नविात शििु जज़ंदगी के  बारे में क ु छ भी नहीं
          िानता, वह रोते-हाँसते बड़ा हो िाता है और जज़ंदगी का सार िानने लगता है। िीक उसी तरह हमें भी सीख लेनी
          चादहए फक जज़ंदगी में हमारे चाहने से क ु छ नहीं होता। हमें जज़ंदगी में मेहनत, अच्छे कमा तथा प्यार बााँटना है।
          जज़ंदगी का कोई भी बीता हआ पल लौट कर नहीं आता है, अतः सोच-समझकर और अच्छे-बुरे का पवचार करके
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          ही कदम आगे बढ़ाना चादहए।
             जज़ंदगी में क ु दरत से शिक्षा लेनी चादहए- फ ू लों के  साथ कााँटे भी होते हैं फक ंतु कााँटों से बचकर हम फ ू लों को

          चुनते हैं। िीक उसी प्रकार से जज़ंदगी को महकाने के  शलए अच्छी सोच और स्वस्थ िरीर की बहत आवश्यकता है
                                                                                                ु
          क्योंफक स्वस्थ, तनरोगी काया हमारी जज़ंदगी का मूल्यवान वरदान है, िरीर ही जज़ंदगी को सफल और उज्जज्जवल
          बनाता है।
           जज़ंदगी बहत हसीन है, इसके  हर कर् का इस्तेमाल करना तथा खुशियााँ देना और लेना ही हमारा उद्देश्य होना
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          चादहए। हमारी जज़ंदगी अनुिासन बबना अधूरी है और अनुिासन ही सफलता की पूाँिी है, यही हमें जज़ंदगी की
          ऊाँ चाइयों पर ले िाता है। जज़ंदगी बहत ही सरल और व्यवहाररक है। अगर हम इसे सच्ची लगन और ईमानदारी
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          से  जियें  तो  यह  हमारी  सच्ची  हमसफर  बनकर  अनोखा  अहसास  कराती  है।  जज़ंदगी  को  एक  खूबसूरत  उपहार

          मानकर िी भरकर जियो।
                                                                                               अनिंि शमाि 9-E

                                               म और  मारे भशशु


          हम अपने माता-पपता की सवोत्तम संपपत्त हैं। उन्हें नवचेतना, भरपूर खुशियााँ नव आिा प्रदान करना हमारा परम
          कताव्य है। परंतु अक्सर हम अपने अशभभावकों की इन अपेक्षाओं को पूरा नहीं कर पाते। इसका साथाक उत्तर प्राप्त
          करने के  शलए सवाप्रथम हम अपनी दृपि िहरी जज़ंदगी पर डालें। आि के  भौततकवादी युग में आचथाक दौड़ बढ़ती

          िा  रही  है।  पररर्ामस्वऱूप  माता-पपता अपने  होि  खो  कर  अपने  पररवार  को  ऎश्वया  प्रदान  करने  के   शलए  पैसा

          कमाने की दौड़ में िाशमल हो गए हैं और इसे ही उन्होंने अपने िीवन का मकसद मान शलया है। वह अपने
          शििुओं को माँहगी शिक्षा ददलवाना चाहते हैं। इसे ही ’स्टेटस शसंबल’ मान लेते हैं। स्क ू ल िाने वाले शििुओं के

          बस्ते उनके  नौकरों के  हाथ में होते हैं या अशभभावकों के  हाथ में। िबफक ग्रामीर् बच्चा धूप में पसीने से लथपथ
          अपने गााँव से पवद्यालय िाता है और ऱूखा-सूखा खाना खाता है। उसकी शिक्षा के  प्रतत जिज्ञासा, अट ू ट श्रधॎधा उसमें
          स्वाशभमान की भावना िागृत करती है। नगरीय सभ्यता यह समझती है फक अपने बच्चों को अचधक से अचधक

          सुपवधाएाँ प्रदान करना गौरव का पवषय है। तथ्य तो यह है फक यह उनके  बच्चों को स्वाशभमानी , आत्मतनभार और
          पररश्रमी बनाने में सबसे बड़ी रुकावट है। शििु को उस आत्मीयता की आवश्यकता है जिसमें वह आराम नहीं
          िड़ि पाए, पराधीनता नहीं पहचान पाए।
            लोग कहते हैं फक ज़माना बदल गया है। पर क्या ईमानदारी, प्रेम, पररश्रम आदद िाश्वत मूल्य बदल सकते हैं?

          यह मूल्य हर देि, हर काल में एक िैसे रहते हैं। प्रततस्पधाा की भावना, िानदार िीवन व्यतीत करने की चाह
          उन्हें उस चक्रव्यूह में ले िाती हैं, िहााँ से वो तनकलना नहीं िानते। वह अपने माता-पपता की उपेक्षा करता है
          और अज्ञानता वि अपनी मातृभूशम छोड़ने पर पववि हो िाता है। पररर्ाम हमारे सामने है। वृधॎधावस्था में माता-

          पपता गृह कलह और वृधॎधाश्रमों का शिकार बनते हैं और इन सब के  जज़म्मेदार के वल हम हैं।
                                                                                               विंश परनामी 9-J
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