Page 304 - E-Magazine 2016-17
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मौसम                                                           कठपुिली

          मौसम आए, मौसम िाए                                    है धागों से बाँधी मेरी जज़ंदगी

          ददल को हर मौसम सुहाए                                 बस ख्वाइि है थोड़ी आज़ादी की
                                                               िैसे तेरी उाँगशलयााँ दहलें
          हर मौसम की अपनी बातें
                                                               वैसे मेरा िीवन चले
          िलती दुपहरी िंडी रातें                                     है दुतनया बहत किोर
                                                                                ु
                गमी, सदी, वषाा में भी                                करती मैं सबको खुि हर रोज़
                                                                     है काम मेरा बूढ़े, बच्चे सभी को हाँसाना
                बच्चे खेलते हैं भर कर िी
                                                                     पर फकसी को नहीं मेरे दुख का अंदाज़ा
               गरमी में िब लू है चलती                                रोती भी मैं ही हाँ, थकती भी मैं ही हाँ
                                                                                    ू
                                                                                                      ू
               िंडी चीज़ें खाने को शमलतीं                             पर कोई नहीं हाथ थामने को
                                                                     ददल में चुभती है ये बात बहत
                                                                                               ु
               मााँ नानी के  घर ले िाती
                                                               है ददल में ये अरमान
               बच्चों की तो मौि हो िाती                        आएगा कोई इंसान
          सदी में िंड के  मारे                                 ददलाएगा हमें हमारी पहचान
                                                               हो गई हाँ मैं बड़ी
                                                                       ू
          दिि ु र हैं िाते बच्चे सारे
                                                               खोल दो ये हथकड़ी
          हलवा पूरी िम कर खाते                                 िीने दो मुझे मेरी जज़ंदगी
                                                                           ू
          ददन भर यूाँ ही मौि उड़ाते                                   बनी हाँ मैं काि की
                                                                     पर एहसास मुझमें भी हैं सबकी तरह, दबे
               वषाा में हम हाँसते-हाँसाते
                                                                     हाँसी खुिी से िीते हैं सब
               तरह-तरह की नाव बनाते                                  मुझे भी चादहए मेरा हक
               पानी में फफर उसे तैराते                               रोकना, टोकना बंद करो
                                                                     मुझे भी अपनी मंजज़ल पाने दो
               इसीशलए तो बच्चे कहलाते
                                                               आज़ादी है हर इंसान का हक
          मौसम का तो यही है कहना                               पर कै से शमलेगा हम किपुतशलयों को अपना हक
          बच्चों हर-पल हाँसते रहना                                                          आमरा फनािडिस 9-E

                लर्वत्रा क्षितिज मदान
                                                                            तनयति का खेल
                           किा-११वीिं ’बी’
                                                               िूतों की तो तनयतत है
                                                               बस पैरों में पड़े रहना
                 मोबाइल
                                                               चाहे बड़ा-सा-बड़ा ब्राण्ड हो
          सबके  हाथ में रहता हाँ                               वो पैरों की िोभा ज़ऱूर बढ़ाएगा
                           ू
          करते मुझको डायल                                      परंतु यह िूता तो पैरों में ही रह िाएगा
          हााँ मैं हाँ सबका अपना                               पर इन्हें बेचने के  शलए
                ू
          स्माटा फोन मोबाइल                                    बड़े-बड़े िोऱूम में रखा िाता है।

               मुझसे बातें हो िाती हैं                               फलों और सजब्ज़यों की तनयतत है पेट में िाना
               इंटरनेट भी चल िाता है                                 चाहे उसे फकतनी ही अच्छी तरह उगाया िाए
               घड़ी की िगह मैंने ले ली                                परंतु आखखर उसे पेट में ही िाना है

               अलामा की जज़म्मेदारी मेरी                              इस इतनी अहम चीज़ को बेचने के  शलए
          कै लक्यूलेटर मैं बन िाता                                   इन्हें सब्ज़ी मंडी में नीचे रखा िाता है
          बच्चों को मैं गेम खखलाता                                   आखखर यह तनयतत का कै सा खॆल है!

          देखो मुझसे बचके  रहना                                                             भमह र गुप्ता  9-J
          मैं हाँ रेड़डयो वेव का गहना।
             ू
                       आस्था खेरा 9-E
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