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"बधी रिी स्र्नतयाँ"
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                                                                                                            ृ



             छट रिा था पिावर िब,
                                         े
                ू
               फट पडा था चगरधारी क
                                                            े
                  ू
               िज्बातों का िैलाब तब,


                      उिकी ििरों र्ें

        ििीं था र्ाि वि एक स्थाि ,


       उिक िर िरे - िरे ि सर्ली थी
                                                   े
                े
     उिक िीवि को एक िई पििाि।
              े
                       े
      यि रुतब का असभर्ाि ििीं था,

                   उि चगरधारी को तो

                                                              ं
      िुख ऐश्वयम का भी भाि ििी था,

                  े
               पिावर तो चगरधारी क
                                                          े
          ह्रदय स्थल की वि भूसर् थी

                    ििाँ अपवरल बिती


               उिक भावों की िदी थी,
                        े
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