Page 33 - karmyogi
P. 33
िहृदयता ि रिा ि गया,
े
धरा उिि चगरधारी का ऱूप,
े
और निकल पडी अविाद सर्टाि े
बिकर ईश्वर का प्रनतऱूप।
े
िुिौनतयों ि किा वि घबराता था,
ं
काँटों भरी रािों पर िलिा िी उि भाता था,
े
े
े
िो र्ि ि टट गए थ उन्िें वि िोडि लगा,
े
ू
खोए आत्र्पवश्वाि को पुिः
े
प्रकाि की ओर र्ोडि लगा,
िरणाचथमयों का बि गया वि िरणदाता,
आश्रय र्ें आए िए लोगों का
ु
बि गया भाग्य पवधाता।