Page 77 - Akaksha (8th edition)_Final pdf
P. 77
कोलकाता: एक शहर क ु छ अपना सा
असभजवी् जाना,
े
वरिष्ठ लखापिीक्ा अधिकािी
े
े
कोलकाता र्हर को करीब स िािि क पूव्ष
े
ै
इसका इनतहास िाििा िरूरी ह। कोलकाता र्हर
ें
े
की सथापिा और कोलकाता को ही कद्र करक
े
पब्दटर् साम्राजय क पति का मुखय कारण दहिनल
का युद्ध और पलासी का युद्ध हुआ था। सि ् 1640
े
े
ं
े
ई. म अंग्रज उद्योग-िि क उद्शय स बंगाल आए
े
े
ें
ें
थ। दिलली क सुलताि को उपहार और बंगाल क
े
े
े
े
े
े
िवाब को इिाम िकर अंग्रजों ि अपि वाजणजय हाव़िा णब्ज
ं
ं
े
े
ु
क नलए उिस अिक सुपविाए प्राप्त की थी। कछ
े
ें
े
बागाि, तालाब हुआ करत थ। महामदहम कोलकाता
समय पचिात ् ईसट इदरया कमपिी क प्रर्ासक िॉब
ं
े
े
े
े
ें
े
उचि नयायलय ि 2003 म आिर् ित समय कहा
िाि्षक को समझ आया दक लगातार ररवित िकर
े
दक भल ही सभी िाि्षक को कोलकाता का संसथापक
े
े
और िापलूसी स मुगलों को बाधय करिा असंभव
ैं
े
े
े
माित ह लदकि मूल रूप स वह कोलकाता का
े
े
े
े
ह। अब अंग्रजों क पास मुगलों क साथ युद्ध करि
ै
संसथापक िही ह। उचि नयायलय का यह माििा
ं
ै
े
क अलावा िूसरा कोई उपाय िही बिा था। अंग्रजों
ं
े
े
था दक कोलकाता का अजसततव मौय्ष काल स ही
े
े
े
े
ि बंगाल क िवाब क साथ युद्ध करक हुगली को
था। मुगल, पुत्षगाली, फारसी, ईसट इदरया कपिी
ं
ं
े
तहस-िहस कर दिया था। परनतु िाि्षक ि महसूस
ु
े
ि आिनिक कोलकाता र्हर की सथापिा की थी।
े
दकया दक इस तरह युद्ध करक हुगली म बहुत दििों
ें
सि ् 1756 ई. म नसराििौला ि इस र्हर म
े
ें
ु
ें
तक वयवसाय करिा संभव िही था। 20 दिसंबर,
ं
आक्रमण कर उसक िुग्ष पर अनिकार कर नलया
े
े
1686 को िाि्षक वाजणजय क नलए िए सथाि की
था। सि ् 1757 ई. म रॉब्षर कलाइव ि नसराििौला
े
ु
ें
े
े
ें
तलार् म निकल पड और भागीरथी ििी क दकिार
े
क साथ युद्ध करक उस पराजित दकया और इस
े
े
े
े
ँ
े
बस सुतािटी गाव आ पहुँि। उस समय सुतािटी
र्हर पर पविय प्राप्त की थी। उस समय र्हर की
ें
ें
की सीमा उत्तर म बागबािार खाल, पूव्ष म लवि
पररजसथनत बहुत असत-वयसत थी। कॉलरा, काला
े
ें
हि (सालटलक), पजचिम म भागीरथी एवं िजक्ण म
े
ें
्ष
े
ं
जवर एवं ििक िैसी पबमाररया िारों तरफ वयाप्त
पुरािी टकसाल तक थी। इसक अलावा िजक्ण म
े
ें
थी। निदकतसीय सुपविाओ की भी वयवसथा िही थी।
ं
ं
ं
े
एक क बाि एक कोलकाता और गोपवनिपुर िामक
एक अिालत थी, परतु एक भी कारागार िही था।
ं
ं
ँ
े
े
िो गाव थ। िाि्षक का माििा था दक वयवसाय क
ें
िोरों को सिा हावडा म तडीपार करक िी िाती थी।
े
ै
े
नलए सुतािटी ही सबस उत्तम सथाि ह।
ें
े
े
अंग्रि िब कोलकाता म अपि वयवसाय की
ं
सि ् 1618 ई. म ईसट इदरया कपिी ि सथािीय
ं
ें
े
े
े
ें
्ष
र्ुरूआत कर रह थ, ठीक उसी समय उिक संपक
िमीिार सुव्षण रॉय िौिरी स 16 हजार रूपए म
े
ें
ं
े
म काय्ष करि वाल लोग रातों-रात ििी हो िात
ें
े
े
ं
सुतािटी, कोलकाता और गोपवनिपुर की िमीिारी
थ। दफर य लोग अपिा एक संप्रिाय बिात थ और
े
े
े
े
ें
ें
खरीि ली थी। उस समय कोलकता म बडी इमारत
े
इिको उस समय "बाबू समाि" क िाम स िािा
े
े
ं
ें
और घर बहुत कम थ। वहा नसफ िाि क खत,
्ष
े
77