Page 72 - Akaksha (8th edition)_Final pdf
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         िढ  पा  रहा  था,  कयोंदक  ट्ि  थोडी  सपीर  हो  गई  दकर्िगंि से ट्ेि में नसलीगुडी के  नलए रवािा होते
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         थी। समर ि िैस-तैस राि का हाथ पकडा। राि  हुए एक सुखि अिभव हो रहा था दक अब वे लोग
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         पलटफाम्ष पर ट्ि क साथ-साथ िौड रहा था। दफर  घर पहुँि िाएंगे। घर िािे दक खुर्ी उिके  भूख-
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         उसक हाथ को पकडकर तथा िोर स खीिकर िैस-          पयास पर भी कोई असर िही कर पा रही थी। करीब
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         तैस राि को ट्ि पर िढाया। व लोग अभी सास  तीि घंटे के  बाि वे लोग रात के  करीब 1.00 बिे
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         ही ल रह थ दक टीटी साहब आ पहुँि और दटकट  नसलीगुडी िंकर्ि पहुँि गए। वहाँ से पैिल ही तीिों
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         की माग कर िी। उनहोंि टीटी साहब को पवसतार  अपिे घर की तरफ बढे कयोंदक इतिी रात को कोई
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         स अपिी बात बताई। दफर उनहोंि कहा पैस िो मैं  गाडी भी उपलबि िहीं थी। वे लोग अपिे-अपिे घर
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                                                      े
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         दटकट बिा िता हूँ। र्मभू क पास पैस थ, उसि  पहुँि कर तथा कु छ खा-पीकर सो गए। सुबह उठिे
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         तीिों का दकराया दिया। टीटी साहब ि उनह दटकट  के  बाि समर को यह यकीि भी िहीं हो रहा था
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         बिाकर दिया। उसक बाि उनहोंि राहत की सास  दक अब वह अपिे घर पर है। उस यात्रा की बात
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         ली। भूख-पयास क कारण उिकी हालत खराब थी।  बार-बार उसे कई दििों तक परेर्ाि करती रही।
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                                               चित्रकार - रूपसा गायन
                                         पुत्री : श्ी काचतक िंद गायन, स. ल. प. अ.
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