Page 67 - Akaksha (8th edition)_Final pdf
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ह, बिल म खुि क प्रनत हीि भाविा को िागृत "समत्वि ्ुमहाि ्िकश में
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करत ह। अपिी िमीि क प्रनत गद्ारी करि को ्ड़पन वाल ्वीक्ण ्वीि स े
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मिबूर करत ह। महाराष्ट् म कल सैंतालीस आदिवासी करूगा मैं रिांत् बनाऊगा रिांत् की मशाल
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िििानतया पाई िाती ह, िो आिािी क लगभग ्ुमहािे अंगू्ठे से बहे ि्् से सलखूंगा मृत्युलेख।”
नतहत्तर साल बाि भी अपिी आदिम अवसथा म िी
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समग्रता म यह दृपष्टगोिर होता ह दक
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रही ह। सह्यादद्र, सातपूडा, गोंरवािा म यह समाि
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आदिवासी सादहतय ि मदहलाओं को िूलहा और
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िखि को नमलता ह। नर्क्ा क प्रिार-प्रसार और
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पबसतर की पररनि स बाहर निकलि म प्ररक और
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सभय समाि की उपक्ा ि उनह अपि आप का
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माग्षिर््षक क रूप म काम दकया ह जिसस व अपि
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निरीक्ण और आदिवासी समाि का निंति करि को
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पररवार, समाि, गाव को एक ियी राह दिखाएगी।
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मिबूर दकया ह, जिसक िलत आि पवनभनि सतरों
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इसम कपवयों क मि की वििा और पवद्रोह बड
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पर आदिवासी सादहतय सममलि, िवोदित आदिवासी
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पैमाि पर वयक्त हुआ ह। उिकी कपवताए क्रानतिर्ती
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प्रनर्क्ण-नर्पवर और सादहजतयक मलों का आयोिि
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ह, अंि-पवविासों का पवरोि ह, जस्तयों क प्रनत
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दकया िा रहा ह। आदिवानसयों को सादहतय नलखि
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पुरुरों की मािनसकता म बिलाव लाि वाली ह
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की प्ररणा प्राकनतक संसाििों, पवनभनि कलाओं और
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िो आग िलकर आदिवानसयों की सामूदहक समाि
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ऐनतहानसक घटिाओं स नमली ह। आि महाराष्ट् म
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वयवसथा को भूमंरलीकरण क इस िौर म पववि की
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आदिवासी लखकों विारा वििा और पवद्रोह का सादहतय
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सबस खूबसूरत वयवसथा क रूप म मािी िाएगी।
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बड पैमाि पर नलखा िा रहा ह, जििम भुिंग
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एक ऐस ज्ािरूपी प्रकार् का निमा्षण करगी, िो
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मश्राम, वाहरू सोिवण, रॉ. पविायम तुमराम, बामि
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आदिवानसयों को स्ती मुपक्त, नर्क्ा, िानत, िम्ष
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र्रमाक, ितािी राि गरकर, उरा दकरण आत्राम का
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स मुक्त करक आदिम संसकनत का संरक्ण एव
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िाम प्रमुखता स नलया िाता ह। पविायक तूम राम
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निरूपण करगी। आि की तारीख म आदिवासी
म कपवता क माधयम स आर्ावािी दृपष्टकोण ििर
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सादहतय कई अथशों म पवर्र धयाि दिए िाि की
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आता ह। वह अपि कावय क माधयम स एकलवय स
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अपक्ा रखता ह।
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बातिीत करता ह और एकलवय क साथ हुए अनयाय
को वह अपिी कपवता म वाणी िता ह-
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हहंदी भाि्वष्ष क हृद्य-दश जस्थ् किोड़ों नि-नारि्यों क हृद्य औि
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मजस्षक को खुिाक दन वाली भाष ह।
-हजािी प्रसाद दवववदी
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