Page 66 - Akaksha (8th edition)_Final pdf
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                                ं
         खुि  अपिी  संसकनत,  परपरा  और  आदिम  मूलयों  की मिोिर्ा को िेखकर हररराम मीणा का कपव
                             े
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                          े
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                                े
                                        ै
         को हय की दृपष्ट स िखि लगा ह। वहा क लोगों  मि कह उठता है-
                                                  ें
         का सादहतय िखा िाए तो उिकी कपवताओं म वह
                      े
                                                                       े
                                                               “समुद्रों स उ्ठ िही हैं आग की लप्ें
         पीडा एवं संकलप को अनभवयक्त करता ह। आि भी
                                            ै
                                                                    पृ्थववी की सािी सभ्य्ा
         वहा अपिी मूल संसकनत और भारा बिाकर रखि
            ँ
                            ृ
                                                      े
                                                               एक भवीमका्य िोड़ िोलक की मातनंद
         म कामयाब ह। पाचिातय संसकनत और भारा का
                      ै
           ें
                                     ृ
                                                                लुढ़क्वी आ िही ह हमािी जातनब
                                                                                ै
                        े
         प्रभाव एवं अपि ऊपर लाि गए संसकार को वह
                                  े
                                                                      औि हम- बदहवास”
            ं
                                       ै
                               े
         वयगय रूपी र्बि बाणों स भिता ह। कपव पॉलनलंग
                                  े
                                                            हररराम मीणा क र्ोिपरक आलखों स यह त्थय
                                                                         े
                                                                                       े
                                                                                            े
                                    ें
         िोह की ‘पबकाऊ ह’ कपवता म कपव अपि ऊपर ही
                                              े
                         ै
                                                                                   ें
                                                        सामि आया ह दक मािगढ म िनलयि वाला बाग
                                                                     ै
                                                             े
                          े
         आक्रोर् वयक्त करत हुए कहता ह-
                                      ै
                                                                     ं
                                                          े
                                                        स भी बडा कार घट िुका था। 1500 आदिवानसयों
                            ै
                   “त्बकाऊ ह हमािा सवासभमान             को अंग्रिों ि रािसथाि और गुिरात क रिवाडों
                                                                    े
                                                               े
                                                                                             े
                        हमािी मान्य्ाए ँ                को साथ लकर मािगढ की पहादडयों पर गोनलयों
                                                                   े
                      हमािी सामूहहक ि्ना                स भूि राला था। इस प्रकार हम कह सकत ह दक
                                      े
                                                                                               े
                                                          े
                                                                                                 ैं
           अत्रि्् बोनस; ्य सािी िवीजें लु्ान क भाव     आदिवासी सादहतय की कपवताओ म वह र्पक्त ह,
                             े
                                               े
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                                                                                         ें
                                                                                                    ै
                                                                                      ं
                          उपलबि हैं।                    िो मदहलाओं को िई राह दिखाएगी, उिको अपिी
                        े
                               े
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           ववशेष संपक क सलए ्लीफोन नंबि की ज़रूि्       अजसततव की लडाई म प्ररक और माग्षिर््षक क रूप
                                                                              े
                                                                           ें
                                                                                                 े
                              नहीं                      म काम आएगी। आि भी बिसतूर समाि म कई
                                                          ें
                                                                                                 ें
                     हमाि एजें् हि कहीं हैं।”           िगह िारी क साथ अमािवीय अतयािार हो रह ह।
                         े
                                                                    े
                                                                                                    ैं
                                                                                                  े
             अंरमाि  निकोबार  क  िीपों  का  इनतहास  उसिे अपिे अतयािारों का पवरोि समय-समय पर
                                 े
                             ं
         बहुत  पुरािा  ह।  यहा  की  िििानतया  आि  भी  दकया है, जिसके  नलए उसिे हाथ में हनथयार भी
                       ै
                                            ं
                                 ें
         अपिी आदिम अवसथा म िीवि यापि कर रही  उठाया है। उिाहरण के  रूप में प्रथम मदहला सेिापनत
          ैं
                                                      ें
                                  ें
         ह।  पब्दटर्  र्ासि  काल  म  सवतंत्रता  संग्राम  म  र्ूप्षिखा, ताडका, पत्रिटा, रािी िुगा्षवती, कानलबाई,
         सिानियों को आपरानिक िर िि क उद्शय स इि  क्रांनतकारी  वीर  बाला  रािी  अवंतीबाई,  िीमी  और
                                             े
                                         े
                                                  े
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                                   े
         विीपों का उपयोग दकया, जिस हम ‘काल पािी की  साव्षती बाई िैसी कई मदहलाएँ हैं, जिनहोंिे अपिे
                                                      े
                     ैं
                          े
         सिा’ कहत ह। ऐस समुद्र विीप पर निवास कर रह  अनिकार, इजित, आतमसममाि को बिािे के  नलए,
                   े
         िि समूहों का मीलों िूर अनय समाि स दकसी  समाि और िेर् को बिािे के  नलए पवद्रोह दकया।
                                                े
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                             ं
         प्रकार  का  संपक  िही  था।  काल  पािी  की  सिा  अपिे प्राणों की आहुनत िी। अवंतीबाई के  पवद्रोही
                              ें
                                         े
         पाि हतु माि्ष 1558 म सबस पहल वहा पर लोग  रूप िे क्रांनतकाररयों में िोर् भरिे का काय्ष दकया
                                    े
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                                  ं
         पहुँि।  तब  स  वहा  पर  दहिी  भारा  का  वयवहार  है, िो समाि के  सभी लोगों में क्रांनत का बीि बोिे
                                               े
         र्ुरू हुआ। ऐस विीप खर पर सादहतय लखि की  का काय्ष करती है। 1857 की क्रांनत में निमिनलजखत
                      े
                              ं
                 ें
         बात  कर  तो  र्ायि  यह  पागलपि  हो,  लदकि  गीत आतम पवभोर होकर गाया गया-
                                                  े
         सि ् 1979 ई. म ‘िवपररमल’ विारा प्रकानर्त एक
                        ें
                                                                                    ं
                                                                 “दुगा्ष मय्या खडग खवीि आओ,
                                              ं
                                 ं
         कनत  नमली  ह  जिसम  दहिी  और  अदहिी  भारी
                      ै
          ृ
                              ें
                                                                     बैिी को माि भगाओ।
         22 कपवयों की कपवताए ह। उिकी कपवताओं म
                                  ैं
                               ँ
                                                      ें
                                                                   बह् हदनन स ्ड़प िह हैं,
                                                                               े
                                                                                        े
                                                                     ु
         सुख-िुख,  आर्ा-निरार्ा,  संघर्ष,  आक्रोर्  मौिूि
                                                                   अब आकि लाज बिाओ।”
                                        े
         ह।  रििाकारों  की  संवििा  को  िखा  िा  सकता
                              े
          ै
                                                                                   ृ
                                                                ृ
                                                            संसकनत का ह्ास और पवकनत आि पर पूवमोत्तर
                                                                                           े
         ह।  ऐनतहानसक  समृनतया,  समकालीि  यथाथ्षबोि,
          ै
                               ँ
                                                                                                े
                                                        कपवयों का मि नतलनमला उठता ह। पडोसी िर् क
                                                                                                    े
                                                                                       ै
         वैजविक निंताओं का सवर, पया्षवरण संरक्ण उिकी
                                                        लोग उिको संरक्ण ित ह। उिकी सहायता करत
                                                                            े
                                                                                                     े
                                                                                ैं
                                                                              े
         कपवता क मुखय सरोकार ह। अंरमाि क आदिवासी
                                 ैं
                                            े
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