Page 61 - Akaksha (8th edition)_Final pdf
P. 61

नई राह







                             ववीणा शमा्ष,
                             पतनवी- शवी ववज्य क ु माि शमा्ष, व.ल.प.अ.
                                                           े
                                                ें
             यह कहािी एक मधयमवगतीय पररवार म िनमी  बाि वह घर-गृहसथी में ऐसी वयसत हो गई दक िई
                                      ै
                                                      े
                                               े
         जयोनत िामक एक मदहला की ह। वह पढि-नलखि  सहेनलयाँ ि बिा सकी थी। उसे अके लापि महसूस
                          ें
           ें
         म अचछी थी। उस संगीत का भी बहुत र्ौक था।  होिे लगा था। वह उिास रहिे लगी थी और अंिर
                                               े
                               ू
                                           ें
                                       े
         वह अचछा गाती थी। सकल, कॉलि म उस संगीत  ही अंिर घुट रही थी। वह सोिती कया यही िीवि
                                              े
                        ें
                                                  े
                     ं
                                            े
         प्रनतयोनगताओ म कई बार पुरसकार नमल थ। लदकि  है! वह तो घर-पररवार में पूरी तरह से वयसत हो गई
                                         ें
                             ु
                        े
                          े
         बी.ए. पास करि क कछ ही दििों म उसका पववाह  थी। परनतु घर वालों को ि तो इस बात की परवाह
                                          ें
                   ँ
         हो गया। िूदक उसकी तीि-तीि बहि थी, इसनलए  थी  और  ि  ही  उसकी  कोई  कद्र।  वृद्ध  सास-ससुर
                े
                                           े
         पपता ि पववाह योगय अचछा लडका िखा तो पबिा  अपिी बीमारी, इलाि एवं िवाईयों के  बारे में ही
                                                     े
         पवलंब  दकए  उसका  पववाह  कर  दिया।  पववाह  क  जयािा सोिते थे।
                                               े
         उपरात  जयोनत  अपि  घर-पररवार  और  बूढ  सास-
             ं
                            े
                                                            एक  दिि  जयोनत  ि  समािार  पत्र  म  अपि
                                                                                               ें
                                                                                                     े
                                                                              े
                    े
                                             े
                         ें
         ससुर की सवा म वयसत हो गई। उसि िो बचिों
                                                        पवद्यालय की नमत्र सीमा की तसवीर िखी तो उतसुकता
                                                                                       े
                                                     े
                                                  े
         को भी िनम दिया। पनत अचछी िौकरी करत थ,
                                                                                      े
                                                          े
                                                        स समािार-पत्र मि लगाकर पढि लगी। पता िला
         अतीः वयसत ही रहत थ। जयोनत को घर-बाहर का
                           े
                              े
                                                                                                     ें
                                                        दक  उसकी  नमत्र  सीमा  एक  सरकारी  पवद्यालय  म
         सारा काम करिा पडता था। वह यही सोिती रहती
                                                                               े
                                                                          े
                                                        अधयापपका थी। उस जजल की सव्षश्रेष्ठ नर्जक्का का
                                                  े
         दक बचि पढ-नलख कर लायक बि िाए। लदकि
                 े
                                              ं
                                                        पुरसकार नमला था। जयोनत ि सीमा क पवद्यालय म
                                                                                                     ें
                                                                                  े
                                                                                          े
                               े
         बचिों का धयाि पढाई स जयािा मोबाईल फोि और
                                                                       े
                                                        फोि करक उसक घर का पता मालूम दकया और
                                                                 े
                   ें
         कमपयूटर म लगा रहता था। व अपिा सामाि कभी
                                    े
                                                        फस्षत निकाल कर उसस नमलि िली गई। िोिों
                                                         ु
                                                                               े
                                                                                     े
                              े
         भी ढग स िही रखत थ। बचि पूरी तरह स मा पर
                                                  ँ
                      ं
                                               े
                  े
                                    े
                           े
             ं
                                                                                                  े
                                                        िोसत नमलकर बहुत प्रसनि हुए और एक िूसर क
                                                                                                    े
                            े
                     े
                                                      ँ
                                                 ें
                                    े
                                        े
         ही आनश्रत थ। बचि निललात, ‘मरी दकताब कहा
                                                                े
                                                        गल नमल। सीमा बोली, 'जयोनत बैठो। िाय बिाती
                                                           े
         है?’, ‘मरी िूत कहा ह?’, ‘मरी ड्स कहा ह?’, ‘मरी   हूँ। िाय पीत-पीत बात करग।’
                      े
                                      े
                                            ँ
                े
                                              ै
                                                    े
                                  े
                            ै
                          ँ
                                                                                ें
                                                                   े
                                                                        े
                                                                                  े
         दटदफि कहा ह?’, ‘टूथब्स कहा ह?’
                      ै
                                    ँ
                    ँ
                                      ै
                                                                           े
                                                        जयोनत-  ‘िाय  बिात-बिात  भी  बात  कर  सकती
                                                                                 े
             जयोनत का सारा दिि इि सब म ही निकल          है।’
                                            ें
                                         ें
                            ्ष
         िाता था। बचि नसफ अपि बार म ही सोित थ
                                      े
                       े
                                                   े
                                                      े
                                  े
                                                                    े
                                                                े
                                                        िाय पीत-पीत सीमा ि पूछा- “तुम कसी हो”, “कया
                                                                            े
                                                                                         ै
         और  सवाथती  व  जजद्ी  थ।  जयोनत  उिस  बात  भी
                               े
                                             े
                                                        कर रही हो”?
                                े
                          े
                                              ै
         करिा िाहती तो व कहत, ‘हम पढ रह ह’, ‘िोसतों
                                            े
         स  पढाई  की  बात  कह  रह  ह’।  मा  मैं  कमपयूटर  जयोनत- कु छ िहीं। बस घर पररवार में वयसत हूँ।
                                 े
           े
                                    ैं
                                         ँ
         पर प्रोिकट का काम कर रहा हूँ। तुम अभी बोलों    सीमा- “तुम तो पढाई म अचछी थी। घर पररवार म
                े
                                                                                                     ें
                                                                             ें
                    ें
         मत। बाि म आिा। तुम आि-कल की पढाई कया           फसकर रह गई।”
                                                         ं
         िािो। आिकल पढाई कमपयूटर और मोबाइल पर
                                                                                ं
                                                            जयोनत- 'समय ही िही नमला, तुम तो नर्जक्का
         ही होती ह।
                  ै
                                                                                       ु
                                                                                              ं
                                                                                                    ं
                                                                  े
                                                        हो। र्ािी क पहल तो कहती थी कछ िही करूगी।
                                                                        े
                      े
                         ें
                 े
             बचि अपि म मगि और पनत काम म वयसत।           घर म ठाठ स रहूँगी।'
                                               ें
                                                                     े
                                                             ें
         जयोनत की सहनलया अब छ ू ट िुकी थी। र्ािी क
                                                     े
                      े
                           ँ
                                                                                                 61
   56   57   58   59   60   61   62   63   64   65   66