Page 61 - Akaksha (8th edition)_Final pdf
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नई राह
ववीणा शमा्ष,
पतनवी- शवी ववज्य क ु माि शमा्ष, व.ल.प.अ.
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यह कहािी एक मधयमवगतीय पररवार म िनमी बाि वह घर-गृहसथी में ऐसी वयसत हो गई दक िई
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जयोनत िामक एक मदहला की ह। वह पढि-नलखि सहेनलयाँ ि बिा सकी थी। उसे अके लापि महसूस
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म अचछी थी। उस संगीत का भी बहुत र्ौक था। होिे लगा था। वह उिास रहिे लगी थी और अंिर
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वह अचछा गाती थी। सकल, कॉलि म उस संगीत ही अंिर घुट रही थी। वह सोिती कया यही िीवि
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प्रनतयोनगताओ म कई बार पुरसकार नमल थ। लदकि है! वह तो घर-पररवार में पूरी तरह से वयसत हो गई
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बी.ए. पास करि क कछ ही दििों म उसका पववाह थी। परनतु घर वालों को ि तो इस बात की परवाह
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हो गया। िूदक उसकी तीि-तीि बहि थी, इसनलए थी और ि ही उसकी कोई कद्र। वृद्ध सास-ससुर
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पपता ि पववाह योगय अचछा लडका िखा तो पबिा अपिी बीमारी, इलाि एवं िवाईयों के बारे में ही
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पवलंब दकए उसका पववाह कर दिया। पववाह क जयािा सोिते थे।
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उपरात जयोनत अपि घर-पररवार और बूढ सास-
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एक दिि जयोनत ि समािार पत्र म अपि
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ससुर की सवा म वयसत हो गई। उसि िो बचिों
पवद्यालय की नमत्र सीमा की तसवीर िखी तो उतसुकता
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को भी िनम दिया। पनत अचछी िौकरी करत थ,
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स समािार-पत्र मि लगाकर पढि लगी। पता िला
अतीः वयसत ही रहत थ। जयोनत को घर-बाहर का
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दक उसकी नमत्र सीमा एक सरकारी पवद्यालय म
सारा काम करिा पडता था। वह यही सोिती रहती
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अधयापपका थी। उस जजल की सव्षश्रेष्ठ नर्जक्का का
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दक बचि पढ-नलख कर लायक बि िाए। लदकि
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पुरसकार नमला था। जयोनत ि सीमा क पवद्यालय म
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बचिों का धयाि पढाई स जयािा मोबाईल फोि और
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फोि करक उसक घर का पता मालूम दकया और
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कमपयूटर म लगा रहता था। व अपिा सामाि कभी
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फस्षत निकाल कर उसस नमलि िली गई। िोिों
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भी ढग स िही रखत थ। बचि पूरी तरह स मा पर
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िोसत नमलकर बहुत प्रसनि हुए और एक िूसर क
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ही आनश्रत थ। बचि निललात, ‘मरी दकताब कहा
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गल नमल। सीमा बोली, 'जयोनत बैठो। िाय बिाती
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है?’, ‘मरी िूत कहा ह?’, ‘मरी ड्स कहा ह?’, ‘मरी हूँ। िाय पीत-पीत बात करग।’
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दटदफि कहा ह?’, ‘टूथब्स कहा ह?’
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जयोनत- ‘िाय बिात-बिात भी बात कर सकती
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जयोनत का सारा दिि इि सब म ही निकल है।’
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िाता था। बचि नसफ अपि बार म ही सोित थ
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िाय पीत-पीत सीमा ि पूछा- “तुम कसी हो”, “कया
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और सवाथती व जजद्ी थ। जयोनत उिस बात भी
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कर रही हो”?
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करिा िाहती तो व कहत, ‘हम पढ रह ह’, ‘िोसतों
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स पढाई की बात कह रह ह’। मा मैं कमपयूटर जयोनत- कु छ िहीं। बस घर पररवार में वयसत हूँ।
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पर प्रोिकट का काम कर रहा हूँ। तुम अभी बोलों सीमा- “तुम तो पढाई म अचछी थी। घर पररवार म
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मत। बाि म आिा। तुम आि-कल की पढाई कया फसकर रह गई।”
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िािो। आिकल पढाई कमपयूटर और मोबाइल पर
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जयोनत- 'समय ही िही नमला, तुम तो नर्जक्का
ही होती ह।
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हो। र्ािी क पहल तो कहती थी कछ िही करूगी।
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बचि अपि म मगि और पनत काम म वयसत। घर म ठाठ स रहूँगी।'
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जयोनत की सहनलया अब छ ू ट िुकी थी। र्ािी क
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