Page 60 - Akaksha (8th edition)_Final pdf
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की भानत आकार, धवनि और र्पक्त भरी हुई ह।
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हमारा संसार धवनि स उतपनि आकार का पररणाम
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ह। धवनि निराकार ह पर सभी आकनतया इसी
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धवनि स उतपनि हुए ह। मंत्र उस निराकार परम
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का द्योतक ह िो निराकार होत हुए बी सभी साकारों
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का ििक ह।
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यह सव्षपवदित ह दक सभी िककर खाती
वसतुए धवनि उतपनि करती ह। अपिी िुररयों
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पर घुमत ग्रह, आकार्गंगाओं क िककर लगात
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सौरमंरल, 20000 मील प्रनत सकर की गनत स
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िलती आकार्गंगाए एक अद्ुत धवनि का सृिि
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करती ह। यह धवनि सामानय मिषय क कािों को
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सुिाई िही िती पर ऋपर इस सुि सकत थ। उिका
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कहिा था दक य ओम की धवनि थी, ऋष्टा की
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ब्हारीय गुिि, वह मूल र्बि जिसस ब्हाणर
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साथ बिलता ह। आिुनिक तकिीक ि िो हमार
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की रििा हुई। संसकत परपरा म इस "अिाहत
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ऋपर हमर्ा कहत थ उस प्रभापवत कर दिया ह दक
िाि" कहत ह। इसका अथ्ष ऐसी धवनि ह िो िो
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हर आकार जिस हम िखत ह उिका उतस एक क्त्र
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िीिों क टकराि स उतपनि िही हुई ह। इस पवर्र
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म ह जिस हमारी भौनतकी आँख िख िही पाती ह।
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इसनलए मािा िाता ह कयोंदक दकसी भी उतपनि
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धवनि कपि एक रििाओं का मूल, क आकारों को
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धवनि म िो ततवों का योग होता ह िैस ििर और
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हमारी आँख िख िही पाती ह। दहनिू या सिाति
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प्रतयंिा, िगाडा और ररा, िो सवर रजिु, पत्तों स
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िम्ष क पवनभनि िवता इस धवनि स आकार की
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टकराती पवि। हमारी श्रवण सीमा म आि वाली
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उतपपत्त क महाि पवज्ाि की पररणाम ह। एक मंत्र
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हर धवनि दृशय या अदृशय क टकराि या कापि
वासतव म ब्हाणर की असली िडकि का एक
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स उतपनि होती ह, िो वृिा म वायु अणुओं की
पवर्र कपि ह िो हमारी ितिा म दकसी पवर्र
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िडकती लहर बिाती ह जिस हमार काि धवनि रूप
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िवता क धवनि गाि का प्रनतनिनितव करता ह।
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म ग्रहण करत ह। अतीः िो धवनि िो वसतुओं क
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िब दकसी पवर्र िवता क मंत्र का लगातार िाप
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टकराि स उतपनि िही होती, वह आदि र्पक्त की
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होता ह, तो प्रनतधवनि नसद्धात क अिुसार मंत्र
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धवनि ह, सृििहार की आवाज ह।
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िाप करि वाल को उस पवर्र िवता की र्पक्त
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मोबाइल फोि का "सीम कार" कवल एक ताब
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प्राप्त होती ह। सिाति िम्ष म बहुत सार मंत्र ह
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का पतला टुकडा ह। इस कार पर पवद्युत आवर्
िो प्राकनतक ताक़तों की घिातमक और ऋणातमक
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का प्रयोग कर दृशय और श्रवय राटा का संग्रह कर
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प्रवृनतयों को संतुनलत करत ह जििका हमार ऊपर
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सकत ह। अतीः आिुनिक पवज्ाि ि यह खोि
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प्रतयक् एवं अप्रतयक् प्रभाव पडता ह। इस प्रािीि
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निकाला दक हम अक्रों र्बिों व निनहों को तरगो
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पवज्ाि क अिसार उनित मंत्रों का िाप करि हम
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म बिल सकत ह और इि आवृनतयों को हम दफर
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वयवसाय म सफलता, िि प्रानप्त, र्ानत प्रानप्त,
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अक्रों और र्बिों म बिल सकत ह। टोिोसकोप की
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सौभागय प्रानप्त, तिाव मुपक्त, रोग मुपक्त और
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सहायता स मिुषय की वाणी को हम अपवविसिीय
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आधयाजतमक पवकास म प्रगनत प्राप्त होती ह।
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बिलत िख सकता ह जििका रुप सवर-माि क
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