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धवणनयों का रहसय







                            रिजतवक िंदा,
                            लखापिीक्क
                              े
                                                      े
                                     ्ष
             प्रनसद्ध  वैज्ानिक  अलबट  आइसटाइि  ि  है तथा धवनि िल में सहर्ष यात्रा करती है, अतीः
                                           ं
         उललखिीय रूप स अिमाि लगाया था दक ऊिा्ष  हम धवनि के  अचछे संवाहक हैं। एक वयपक्त धवनि
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                                   े
         और पिाथ्ष एक ही नसकक क िो पहलू ह। 1948  को अपिे र्रीर के  हर नछद्र से सुिता है। यह पूरे
                                े
                                             े
         की एक दफलम स आणपवक भौनतकी क उिाहरण  र्रीर  में  वयाप्त  होती  है  तथा  अपिे  पवर्ेर  प्रभाव
                         े
                                                  ै
         सापक्ता क पवर्र नसद्धात स पता िलता ह दक  के  अिसार रक्त प्रवाह की लय को िीमा या तेि
                                ं
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         पिाथ्ष और ऊिा्ष िोिों एक वसतु को ही अलग-       कर सकती ह। धवनि तंपत्रका तंत्र को उत्तजित कर
                                                                                             े
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         अलग अनभवयपक्त ह। यह सािारण िि-मािस क  सकती है या र्ांत कर सकती है। र्ोिकता्षओं िे
               ु
         नलए  कछ  अपररनित  िारणा  थी।  इसी  अनभयुपक्त  ियिातमक  रूप  से  मजसतषक,  हृिय,  माँसपेनर्यों
         पर पवलक्ण प्रनतभार्ाली निकोला टसला ि कहा  और  अनय  कोनर्काओं  को  सदक्रय  करिे  के   नलए
                                                 े
                                          े
         "अगर आपको ब्हाणर क रहसय को पािा ह तो  धवनि  तरंगों  का  उपयोग  करिे  की  प्रणाली  का
                                                  ै
                                े
         ऊिा्ष,  आवृनत  और  कपि  क  दहसाब  स  सोििा  पवकास दकया है। वैज्ानिक अिसंिािों से पता िला
                                                                                   ु
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         होगा।"                                         ह दक हर अंग की अपिी धवनि आवृनत ह और इस
                                                                                             ै
                                                         ै
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                                                   ु
             धवनि  कया  ह?  आिुनिक  पवज्ाि  क  अिसार    मूल आवृनत म पररवत्षि रोग या र्राबी क पहल
                                             े
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                                       ँ
         यह कपि ह। िहा कपि ह वहा धवनि ह। इसक            लक्णों म स एक ह। इसनलए बीमार कोनर्काओं
                                  ै
                    ै
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                                                                                              ै
         पवपरीत  एक  धवनि  उतपनि  करि  क  नलए  उसक      की आवृनत सवसथ कोर्ों स अलग होती ह। हमार
                                        े
                                          े
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                                                                                                   ं
                                                                                           ु
                     ं
         समाि एक कपि उतपनि करिा होगा। अनिकतर            कोनर्काओं और उत्तकों का संतुलि अििाि नसद्धात
                                                                                          े
                                                         े
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                            ैं
         वैज्ानिक यह माित ह दक ब्हाणर की उतपपत्त पबग-   क अिुसार उनित धवनियों क प्रभाव स लौटाया िा
                                                                ै
         बैंग िामक एक घटिा स हुई थी। सहि र्बिों म       सकता ह।
                                े
                                                      ें
         कह तो पबग का अथ्ष एक अकसमात ्  टककर ह और           सिाति िम्ष क ऋपर अनतमािव और बहुज्ािी
                                                 ै
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                                                                         े
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                                           ं
                          ै
         यह इनगत करता ह दक सृपष्ट का आरभ धवनि स  प्राणी थे। वे बुपद्धमाि वयपक्त, संत, खगोलपवि दृष्टा
                                                   े
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         हुआ था। भारत क ऋपर धवनि पवज्ाि क पवर्रज्  थे। ऋपर र्बि संसकृ त िातु ‘समीक्ा’ से आया है
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                                                      े
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         थ। सृपष्ट ि अपिा रहसय इि ऋपरयों को बताया। व  कयोंदक वे वेि की ऋिाओं या मंत्रो के  दृष्टा थे। ऋपर
                                         े
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                                               ै
         िाित थ दक संसार पचिीस ततवों स बिा ह। प्रथम  सवंय को मंत्र दृष्टा कहते थे ि दक मंत्र रिनयता।
                               ु
           ँ
         पाि ततव आकार्, वाय, अजगि, िल और पृ्थवी  िब  हम  कहते  है  दक  नयूटि  िे  गुरूतवाकर्षण  के
                                      े
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                                         ैं
         महा-ततव क िाम स िाि िात ह। धवनि पहली  नसद्धांत  का  आपवषकार  दकया  तो  इसका  अथ्ष  यह
                             ँ
                ै
                                     ै
         र्पक्त ह िो पचिीसवा ततव ह और बाकी िौबीस  िहीं है दक उसिे इसको बिाया बजलक इस बात को
                    े
         ततव उसी स उतपनि हुए ह।                         िुनिया की िािकारी म लाया। इसी तरह ऋपरयों ि
                                 ैं
                                                                                                     े
                                                                            ें
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                                  े
             धवनि ब्हाणर की सबस मृिु लदकि सवा्षनिक      आकार्ीय वातावरण म पहल स उपजसथत मंत्रो को
                                                                         े
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         र्पक्तर्ाली ऊिा्ष का रूप ह। अतीः धवनि का हम पर   पहिािा और हमार ज्ाि म दिया। यह मंत्र नयूटि
                                ै
                                                         े
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                                                               ं
         बहुत  अनिक  प्रभाव  पडता  ह।  यह  हम  र्ारीररक,   क नसद्धातो की तरह सव्षथा पवद्यमाि ह।
                                            ें
                                   ै
                                                                                ै
                                                      े
         मािनसक,  संज्ािातमक  और  वयवहाररक  रूप  स          मंत्र एक ऐसी धवनि ह जिसका एक बहुत बडा
                        ै
         प्रभापवत करता ह। हमार र्रीर का 70% भाग िल  वैज्ानिक आिार है। मंत्र के  अक्रों में एक कै पसूल
                              े
                                                                                                 59
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