Page 57 - Akaksha (8th edition)_Final pdf
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हो, मििूर हो, स्ती हो या दकसाि हो, सभी क महामारी के िौर में यत्र-तत्र दिखाई िे रहा है। आिािी
अनिकारों क प्रनत निषपक्ता उिका िम्ष ह। इसक से पूव्ष कथा सम्राट प्रेमिंि िे नलखा था- "सादहतय
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नलए िाह वयवसथा की पोल खोलिी पड या िताओं का उद्ेशय ििता में वयाप्त रूदढयों, अंिपवविासों,
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क िोहरा िररत्र का पिा्षफार्, वह पीछ िही हटती िडताओं से मुक्त कर, प्रिातांपत्रक िीवि मूलयों की
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और तटसथ रहती ह। बहरहाल आजािी क सात िर्क सथापिा करिा है।" आिािी के पचिात ् भी, इककीसवीं
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क बाि भी मििूरों-दकसािों क दहत म बात करि सिी के िूसरे िर्क में भी हमारे समाि िे इि तमाम
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वाली वयवसथा और मंिों स िहाडि वाल तथाकनथत कम्षकांरों से नििात िहीं पाई। ताजिुब की बात
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ितागण आि भी अपि लक्य की पूनत्ष करि म यह है दक अनर्जक्त वयपक्तयों के साथ-साथ नर्जक्त
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असफल दिखाई ित ह। य दकसाि, य मििूर िो वयपक्त भी इससे अपिे को पृथक िहीं कर पा रहे हैं।
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दिि-रात कदठि पररश्रम करक िर् को संतुनलत दकए पववि सवासथ संगठि (WHO) िे हाल ही में पववि
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हुए ह। लोगों क क 195 िर्ों म
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िीवि म हररयाली स 180 स भी
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और वसंत लात अनिक िर्ों म
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ह, आि उनही क कोरोिा वाइरस
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िीवि स वसंत की पुपष्ट की ह।
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गायब है। िुनिया क सभी
र्पक्तर्ाली िर्
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स म काल ी ि
कोरोिा वैजकसि
कपवताए िि-
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या िवा बिाि
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िीवि की समसया,
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हतु एडी-िोटी
संघर्ष, समकानलि
का िोर लगा रह
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पररवर्, तुककबािी
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ह, वैज्ानिकता
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तथा िारबािी की
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को महत्व ि रह
ओर भी हमारा
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ह। लदकि भारत
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धयाि आकपर्षत
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म ही अिक गाव
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करती ह। कोरोिा
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और र्हर ऐस
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महामारी क इस
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िािक और दिल चित्रकार - िचषत क ु मार साि ह िो वैज्ानिक
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िहला िि वाल पुत्र: श्ी चवनोद क ु मार साि, चल./टं. ितिा की अपक्ा
अंिपवविास और
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क्ण म, लोगों
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कम्षकार म िकड हुए ह। कही गोमूत्र और गोबर
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तक रार्ि पहुँिाि म सरकार भी अपिा उतसाह
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पाटटी हो रही ह तो कही पर्ओं क साथ-साथ मिुषयों
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और आतमीयता दिखा रही थी। अपि कत्त्षवयों का
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की भी बनल िी िा रही है। कहीं गो-कोरोिा-गो,
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निवा्षहि कर रही थी। ऐसा तथाकनथत मीदरया वालों
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कोरोिा र्ात हो-कोरोिा र्ात हो क िार लगाए िा
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और पत्रकारों का कहिा ह। मसलि रार्ि क िाम
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रह ह, तो कही कोरोिा को माई की संज्ा प्रिाि की
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पर िो कालाबािारी, मुिाफाखोरी और भष्टता का
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िा रही ह। इस प्रकार क अंिपवविास क साथ-साथ
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नघिौिी या िंगा िृतय इस महामारी म हुआ, उसस
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तंत्र-मंत्र, िािू-टोिा और अनय कम्षकारों क माधयम
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िागरूक पाठक रू-ब-रू ह। ऐसी िािक जसथनत म
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स अंिपवविास की आड म एक बडा बािार या पाखर
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इस तरह का घपला अमािवीयता को िर्ा्षता है।
की बडी फजकट्या कोरोिा क िाम पर िलाई िा रही
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अंिपवविास, कम्षकार तथा पोंगापंथी क भायावह
हैं।
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रूप का िर््षि इस वैज्ानिक युग म भी कोरोिा
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