Page 52 - Akaksha (8th edition)_Final pdf
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सुख का रहसय
सवव्ा िानवी, तनजवी सधिव
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का्या्षल्य महातनदशक लखापिीक्ा
प्या्षविण एवं वैज्ातनक ववभाग, नई हदलली
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ऐ सुख तू कहा नमलता ह, कया तरा कोई पकका पता ह ै
कयों बि बठा ह अििािा, आजखर कया ह तरा दठकािा।
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कहा कहा ढूंढा तुझको, पर तू ि नमला कही मुझको
ढूंढा ऊि मकािों म, बडी बडी िुकािों म, सवादिष्ट पकवािों म, ें
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वो भी तुझको ही ढूंढ रह थ, बजलक मुझस ही पूछ रह थ ें
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कया आपको कछ पता ह, य सुख रहता कहा ह ै
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मर पास तो िुीःख का पता था, िो सुबह र्ाम अकसर नमलता था
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परर्ाि होकर नर्कायत नलखवाई, पर य कोनर्र् भी काम ि आई
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उम्र अब ढलाि प ह, हौसला अब थकाि प ह ै
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हा उसकी तसवीर ह मर पास, अब भी बिी हुई ह आस
मैं भी हार िही मािंगा, सुख क रहसय को िािंगा
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बिपि म नमला करता था, मर साथ रहा करता था।
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पर िब स मैं बडा हो गया, मरा सुख मुझस िुिा हो गया
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मैं दफर भी िही हुआ हतार्, िारी रखी उसकी तलार्
एक दिि िब आवाज य आई, कया मुझको ढूंढ रहा ह भाई
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मैं तर अंिर छ ु पा हुआ हूँ, तर ही घर म बसा हुआ हूँ।
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मरा िही ह कछ भी मोल, नसककों म मुझको ि तोल
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मैं हूँ बचिों की मुसकािों म, मा बाप क आनर्वा्षि म ें
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हर पल तर संग रहता हूँ, और अकसर तुझस य कहता हूँ
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मैं तो हूँ बस एक अहसास, बंि कर ि तू मरी तलार्
िो नमला उसी म कर संतोर, आि को िी ल कल की ि सोि
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कल क नलए आि को ि खोिा, मर नलए कभी िुीःखी ि होिा
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मर नलए कभी िुीःखी ि होिा.........
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