Page 51 - Akaksha (8th edition)_Final pdf
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             हमि मुनिार र्हर स कछ दकलोमीटर िूर एक  आँखों से िहीं िेखा होता तो मैं पवविास िहीं कर
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         िंगल क बीि म एक झरि क पास ‘ओयो होटल’  सकती थी दक प्रकृ नत के  इतिे सारे आयाम भी हो
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         बुक  दकया  था  िहा  हमि  बिरों  को  खलत  हुए,  सकते थे। कु छ िगहों पर यह गहरे हरे रंग का था,
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         पजक्यों को िहकत हुए िखा और झरि की कल-          कही हलका िीला और कही यह हररत मजण िैसा
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         कल िीमी आवाज सुिी। मुनिार िाि क रासत म  था।  यह  ऐसा  था  मािो  दकसी  िे  नित्रफलक  पर
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         हम पहादडयों और घादटयों क िीि कई छोट-छोट  बडे ही धयािपूव्षक कोई तसवीर बिा िी हो। अतीः
         झरि दिखाई दिए। हर इलाक म बहुत हररयाली  मुनिार की प्राकृ नतक सुंिरता आि मेरे मजसतषक
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         थी। सडक कहा स र्ुरू होती थी और कहा खतम  की  फोटो  फे म  में  एक  तसवीर  की  तरह  छप  सी
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         यह  समझ  म  िही  आता  था।  अगर  मैंि  अपिी  गई है।
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                           हहंदी  उन  सभवी  गुणों  स  अलंक ृ ्  ह  जजनक  बल  पि  वह  ववशव  की
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                           साहहजत्यक भाषाओ की अगली शणवी में सभासवीन हो सक्वी ह।
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                                                                    - मैध्थलीशिण गुप्





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