Page 50 - Akaksha (8th edition)_Final pdf
P. 50

मुननार: दणक्ि भारत का कशमीर







                            निधगस पिववीन,
                            पतनवी- शवी िबवीउल हक, स.ल.प.अ.
                                                     े
             सभयता की र्ुरूआत स ही लोग एक खािाबिोर्         मुनिार म मौसम काफी मिमौिी ह - कभी सुबह
                                े
                                                                    ें
                                                                                         ै
                        े
                             ैं
                                           े
                           े
         समुिाय प्रवृनत क रह ह। यदि दकसी क पास समय,  में अतयनिक ठंर हो िाती है, तो कभी िोपहर को
         अवसर और पैसा हो, तो यात्रा का पयासा मािव  बािल छा िाते है, कभी तेि िूप आ िाती है तो कभी
         मि सहि ही पहादडयों, पव्षतों और समुद्रों की गोि  िोपहर में अिािक बाररर् होिे लगती है। बाररर् के
                             ृ
           ें
                        ै
                                  े
         म िला िाता ह। प्रकनत क अज्ात रहसय आि  रूकते ही तारे और िाँि की िािुई िाँििी बािलों के
                ें
                                                  े
                                                     ैं
         भी  हम  बार-बार  अपिी  ओर  आकपर्षत  करत  ह।  पीछे से झांकते हुए मालुम होते हैं। सथािीय लोगों के
                         े
         इसनलए, िब मुझ दकसी दकर्ोर वैज्ानिक की तरह  नलए बाररर् का मौसम सभी मौसमों में सबसे सुंिर
                          ै
                                        े
         अवकार्  नमलता  ह,  तो  मैं  अपि  मजसतषक  रूपी  है। बाररर् के  मौसम में िब पहाड की िोदटयाँ बािलों
             े
          ै
                    ृ
                े
                                                े
                                       ै
                             ं
                                              े
         कमर स प्रकनत की सुिरता को कि करि क नलए  में अपिा िेहरा नछपा लेती हैं तो ऐसा प्रतीत होता है
                                          े
         निकलती  हूं।  सुसत  र्हरी  िीवि  स  हटकर  हम  मािो आप सवपि-िगरी में पहुँि गए हों।
                                           े
                                                 े
         अकटूबर 2017 म ईविर की िरती, करल क एक
                         ें
                                                                    ें
                                                                         े
                                                            कतारो म लग ओक क पड सुिहर आभूरणों
                                                                                 े
                                                                                            े
                                                                                    े
                               े
                                         ें
                                   े
         िगर  मुनिार  गए  जिस  अंग्रिी  म  "गॉडस  ओि
                                                               े
                                                                                                    े
                                                          े
                                                        स सि हुए ह। यदि आपको अभी भी बाररर् क
                                                                     ैं
                          ै
                              े
          ं
         कट्ी" कहा िाता ह। करल राजय को ‘भगवाि का        पािी स भीग हुए िायबागाि क बगीि का र्ाििार
                                                                                          े
                                                                                   े
                                                               े
                                                                    े
                                                                  ं
         पप्रय घर’ भी कहा िा सकता ह। सवयं भगवाि         दृशय समरण ह, तो आपका मि अतीत की यािों
                                       ै
                                                                     ै
         ि  अपिी  इचछा  स  भारत  क  इस  िजक्णी  राजय    म  सवतीः  ही  खो  सकता  ह।  िायबागाि  का  हरा
                                   े
           े
                           े
                                                                                 ै
                                                          ें
                               े
         का  निमा्षण  दकया  ह।  करल  की  अद्ुत  प्राकनतक   कालीि पय्षटकों का सवागत करता हुआ प्रतीत होता
                                                 ृ
                            ै
                           े
         सुिरता िुनियाभर क पय्षटकों को आकपर्षत करती     ह। िाय की पपत्तयों को कस तोडा िाता ह? इस
           ं
                                                                                                     े
                                                                                ै
                                                                                               ै
                                                                                  े
                                                         ै
         ह। हमारा गंतवय करल का छोटा-सा पहाडी र्हर       कस पररषकत दकया िाता ह? मैंि य सबकछ टाटा
          ै
                           े
                                                                                 ै
                                                                                         े
                                                                                      े
                                                            े
                                                         ै
                                                                                              ु
                                                                  ृ
         मुनिार था जिस "िजक्ण भारत का कशमीर" क          टी संग्रहालय म िखा। मैंि अंग्रिों की कई िीण्ष
                        े
                                                     े
                                                                                 े
                                                                                     े
                                                                         े
                                                                      ें
                             ै
         िाम स िािा िाता ह।                             समानियों और कब्गाहों को भी िखा। पब्दटर्राि
                े
                                                                                       े
             मुनिार एक कम आबािी वाला और र्ात क़सबा  के  िौराि मुनिार की ग्रीषमकालीि आश्रय के  रूप में
                                              ं
                                                     ै
         ह िो िारों ओर स िौडी पहादडयों स नघरा हुआ ह।  एक अलग पहिाि थी।
          ै
                                         े
                         े
                                                 ैं
         र्हर की ओर िाि वाली सडक बहुत सुिर ह और
                          े
                                             ं
                                    े
                                                                                          े
                                                            मुनिार की सडकों पर गम्ष मसालिार िाय का
         हर घर की छत स पहादडयों का ििारा अद्ुत ह।
                          े
                                                     ै
                                                                                             े
                                                                        े
                                                                                     ै
                                                                                          ं
                                                                                                    े
                                                        सवाि आि भी मरी जिह्ा पर ह। यहा क िाय क
         इस पहाडी क कद्र म कवल ग्रीि टी की खती क
                            ें
                                                     े
                               े
                     े
                                                 े
                        ें
                                                                ें
                                                                                                     े
                                                                                  े
                                                                             ु
                                                                                            ु
                                                        सटॉल म हम िो पबसकट, कक और ककीज पात
                                  े
                                     ू
                 ैं
         बागाि ह। लाल, बैंगिी, पील फल पहाडी की िरारों
                                                        ह  उसम  हम  इलायिी,  लौंग,  िालिीिी,  तिपत्ता
                                                                    ें
                                                         ैं
                                                               ें
                                                                                                े
                    ं
                       े
                                                      े
                                                ें
                                       ैं
                                              े
                                     े
         स बाहर झाकत हुए प्रतीत होत ह। रासत म हमि
           े
                                                                             ें
                                                        और अनय मसाल नमलग। मुनिार की सडकों पर
                                                                               े
                                                                        े
          े
         िखा दक हवाए िविार, ओक, रबर और अनय पडों
                        े
                      ँ
                                                    े
                                                              े
                                                        टहलि  क  िौराि  सडक  क  दकिार  जसथत  िुकािों
                                                                                       े
                                                                े
                                                                                े
         की पपत्तयों को मािो िूम रही हो। कभी-कभी बािल
                                                        स  अलग-अलग  मसालों  की  खुर्बू  आ  रही  थी।
                                                          े
         उनह गल लगा रहा था। इस पहाडी क्त्र की प्रकनत
                                                   ृ
                                           े
             ें
                 े
                                                                  े
                                                                                ें
                                                                                   ु
                                                        हमलोगों क नलए मुनिार म कल नमलाकर यह एक
                       ृ
                              ं
         की असीम प्राकनतक सुिरता मुझ याि दिलाती ह
                                       े
                                                      ै
                                                        अचछा अिुभव रहा। इसनलए, हम खुि को बहुत सार
                                                                                                     े
         दक हम दकसी दिवय निवास म थ।    े
                                    ें
                                                                            ं
                                                                        े
                                                                     े
                                                              े
                                                        मसाल खरीिि स िही रोक पाए।
          50
   45   46   47   48   49   50   51   52   53   54   55