Page 46 - Akaksha (8th edition)_Final pdf
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         की िािकारी स मथुर ि रािी को अवगत कराया।  आगमि के  साथ ही मथुर िे गिािर के  पूिा करिे
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         इसी घटिा क बाि एक िय िौर की र्ुरूआत हुई।  के  पवनियों को अवाक होकर िेखा था। माँ के  प्रनत
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         उसक बाि ही िोिों (मथुर और गिािर) म काफी  गिािर की मगिता को वह निहारते रहे िब तक
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         घनिष्ठता बढ गई। गिािर की आसथा, साििा एव  पूिा खतम िहीं हुआ था। वह वहीं उपजसथत रहे
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         पवविास को िखकर मथुर काफी प्रभापवत हुए थ। कई  तादक पूिा में कोई पवघि उतपनि ि हो सके । मथुर
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         क्त्रों म मथुर क मि म अपवविास एवं संिह की  यह समझ गए थे दक ठाकु र की मां के  प्रनत िो
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         भाविा थी, परतु गिािर क प्रनत िही बजलक ईविर क  भपक्त भाविा एवं वयाकु लता है इसके  कारण मंदिर
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         अजसततव क प्रनत। गिािर क ईविर क प्रनत भाविा  की प्रनतमा निनमयी रूप िारण कर िुकीं हैं। इस
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         म र्ायि कही िूक ह और इसस मथुर ि गिािर को  पूणय भूनम की लीला-सथलों और भी पूण्षता से माँ
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                                                                         ें
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         इसस रूबरू करवाि का प्रयत्न भी दकया था।         की मदहमा प्राप्त कर इसकी जिममवारी आजखर मथुर
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                                                        की भी तो थी। ं
             गिािर मंदिर म मा भावताररणी स बात दकया
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         करत थ, मा क थुथूि को सपर््ष कर मा क प्रनत          िीर-िीर ठाकर और मथुर क बीि एक नमत्रता
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         अपिा आिर एवं प्रम भी ितात थ, िब-तब मा  का ररशता कायम हो िुका था। ठाकु र के  प्रयोििीय
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                                                     े
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         का िर््षि भी करत थ और यहा तक दक मा क  वसतुओं  एवं  उिकी  इचछाओं  को  मथुर  हृिय  के
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         िर््षि िही होि पर वयाकल होकर रोि भी लगत  साथ पूरा भी करिे लगे थें। दफर भी, समय-समय
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         थ। माटी म अपिी मुंह नघसकर लहुलुहाि भी हो  पर मथुर तक्ष  भी दकया करते थें। उिका यह िावा
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         िात थ। उिका सारा र्रीर तप िाता था एवं िि  था दक ईविर विारा बिाए गए इस नियम को सवंय
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         क मार छट-पट भी करि लगता था। इस तरह क  ईविर भी िहीं तोड सकते हैं। परंतु इसके  पवपरीत
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         लक्ण िखकर मथुर को यह संिह था दक कठोर  भोले-भाले ठाकु र इस तक्ष  को माििे से इंकार करते
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         ब्हिय्ष र्ायि इसका कारण ह। मा क िर््षि तो एक  थें। उिका यह माििा था दक िो नियम बिाते हैं
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         िुीःसवपि मात्र ह। मथुर ि रािी मा स परामर््ष लकर  उिके  पास अवशय इसे तोडिे की क्मता है, वरिा वे
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         गिािर को इि लक्णों स नििात दिलाि क उद्शय  नियम सृििकता्ष कै से कहलायेंगे? लेदकि मथुर का
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         स वारागिाओं क पास ल गए। वहा भी, गिािर  यह कहिा था दक ईविर के  नियम से जिस पौिे में
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         को वारागिाओं म मा ििर आई और मा-मा करत  लाल फू ल उगते हैं उस पौिे में सफे ि फू ल कभी भी
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         हुए वयाकल हो गए थ। लजिा क कारण वारागिाए  िहीं उग सकते हैं। यह सुिकर ठाकु र र्ंका में पड
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         अपिा-अपिा मुंह छ ु पात हुए मथुर को बुरा-भला भी  गए दक उिकी िारणा कया गलत है? माँ िे तो मुझे
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         कहा दक कयों ऐस एक िक सािक वयपक्त स ककम्ष  इसके  बारे में कभी िहीं बताया। लेदकि अगले ही
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         क आिर् दिए गए। इसक बाि वारागिाए ि ठाकर  दिि एक अद्ूत घटिा ठाकु र िे िेखा। उनहोंिे िेखा
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         को िखकर अपि-आप को िनय माित हुए वहा स  दक एक िवा फू ल के  पौिे की एक र्ाखा में लाल
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                                                                   ें
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         िली गई।                                        तथा िूसर म सफि फल उग थ। इसस पहल उनहोंि
                                                                                                     े
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             रािी  रासमजण  क  िहात  क  उपरात  मथुर  ि   ऐसा कभी िही िखा था। उसक बाि उस िवा फल
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         ही िमीिारी की कमाि संभाल ली थी। तब उनह         की राल तोडकर ठाकर ि मथुर को दिखाया। यह
                                                                                                 े
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         बार-बार िजक्णविर आिा पडता था। कवल मंदिर        एक अद्ूत घटिा को िखकर आजखरकार मथुर ि हार
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                                                                          े
         क काय्ष िखि भर ही िही बजलक उिका गिािर          माि ली थी। उनहोंि यह माि नलया दक ईविर पर
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         क प्रनत लगाव ही उनह यहा खीि लाता था। कभी-      पवविास रखि वालों क पवविास की मया्षिा को बिाि
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                                                                                                    ैं
                                                                            े
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         कभी पूिा की गनतपवनियों म छडछाड क भी आरोप       क नलए ईविर भी अपि बिाए नियम तोड सकत ह।
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         गिािर पर लगत रहत थ। इनही आरोपों क निवारण           िमीिारी स मथुर की आय बढती िली िा रही
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         एवं  मंदिर  का  हाल-खबर  िािि  क  नलए  मथुर  थी। मथुर को यह पवविास हो गया था दक ठाकु र के
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         को  एक  दिि  अिािक  िजक्णविर  आिा  पडा  था।  ही आसथा, माँ की अराििा एवं ईविर की कृ पा से
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