Page 44 - Akaksha (8th edition)_Final pdf
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एक प्रि...ऐसा भी





                            संज्य क ु माि झा, महातनदशक
                                                   े
                                                  े
                                            े
                            का्या्षल्य महातनदशक लखापिीक्ा,
                            प्या्षविण एवं वैज्ातनक ववभाग, नई हदलली
                                                                                   े
                  कभी-कभी र्ूनय म निहारता हूँ                    एक प्रखयात कपव क र्बिों म  ें
                                   ें
                                                                                ं
                            ें
                      िरा म जक्नति तक,                           यह िोहा िब गुिायमाि हुआ
                 एक अकलपिीय भय स आकल,
                                      े
                                           ु
                                                        “उदवसल् कि अशु िासश्याँ, ह्रद्य धि्ाए ििकाकि
                                                             े
                                                                                            ँ
                  िब मािवता क अजसततव पर,
                                े
                                                            महामािी प्रिंड हो, फल िही ्थवी इिि-उिि”
                                                                              ै
                एक प्रश्नवािक निनह िखता हूँ मैं...
                                    े
                                                                  मािवता की इस एक िूक ि,   े
                 उस सुिूर प्रागैनतहानसक काल म, ें
                                                                 वैजविक वयवसथा को दहला दिया
                िब ममा्षनतक िीतकार गूँिती थी,
                                                            ं
                                                           इसाि को एक-िूि स, पर रहिा नसखा दिया
                                                                                  े
                                                                              े
                                                                           े
             असतो मा सद्गमय, तमसो मा जयोनतग्षमय
                                                                                            े
                                                               आरोपण प्रतयारोप तो िलता रहगा
                      मृतयोमा्ष अमृतं गमय
                                                                            े
                                                                पर कोरोिा स युद्ध को िीतिा ह ै
                  तभी एक ‘िकमक’ पाराण स,    े
                                                                       ें
                                                             वसतुतीः हम सवयं को, पवियी बिािा ह।
                                                                                               ै
                     अजगि का प्रािुभा्षव हुआ
                                  े
                   मािव सभयता क उद्व की                    ह मािव तुम उठो दृढप्रनतज् होकर िल िलों,
                                                                                             े
                                                            े
                   एक क्राजनत का आगाज हुआ।                          हम एक ह और एक रह,    ें
                                                                             ैं
                                                                                    ृ
                                                                  ईविर की सवमोतम कनत बि,
                                          े
                                   ें
                 आि वही अजगि हम ताप िती ह     ै
                                                                प्रिानत, िम्ष व राििीनत स उठ
                                                                                         े
                               ै
                          े
                   संताप िती ह, संर्य िती ह ै
                                       े
                                                                          ु
                                                                                          ें
                                                                  एक िवयग का निमा्षण कर।
          अजगि का रूप कभी नमसाइल बि तो कभी अणुबम
                                                               िब पंनछयों क कलरव गाि को सुि
                                                                           े
                              बि
                                                               कलमरहीि मिु क पदिाप को सुि
                                                                               े
                                             ै
                                         े
                   ं
                 प्रिर एवं भीरण रूप िर लती ह।
                                                                                      ु
                                                                ै
                                                                                             ें
                                                               िसनग्षक अजसततव की अिभूनत कर।
               िरा सोिो उस युद्ध की पवभीपरका को
                िो िानभकीय र्ीत को लाएगा और                    आओ हम सब नमलकर यह प्रण ल       ें
                          े
                      ं
             समपूण्ष ब्हार म दहमयुग सा प्रलयंकारी पविार्          संपूण्ष प्रकनत का संरक्ण कर ें
                                                                          ृ
                            मिाएगा।                                मैं तुझम हूँ, तुम मुझम हो
                                                                                        ें
                                                                          ें
                                                                   ऐसा संकलप कर आग बढ।
                                                                                         ें
                                                                                      े
                   े
                            ै
            अगर य पवज्ाि ह, तो अज्ािी सही थ हम
                                               े
                                                                  गर और कोई साथ ि भी ि     े
                                               े
                   े
            अगर य सभयता ह, तो असभय सही थ हम
                             ै
                                                                   तो गुरूिव का समरण कर,
                                                                          े
                कया लाभ इस पवज्ाि स, र्पक्त स  े
                                      े
                                                                  े
                                                                 य गाि तू कर, य गाि तू कर।
                                                                                े
               िो पुिीः हम पुराति काल म ल िाए
                          ें
                                           े
                                        ें
          कया लाभ आिुनिकीकरण का, िो महि इनतहास               “जोदी ्ोि डाक सुन कउ ना आस ्ोब     े
                                                                                           े
                                                                               े
                                                                                 े
                         बिक रह िाए।                         एकला िलो ि एकला िलो, एकला िलो,
                             े
                                                                         े
                                                                  एकला िलो, एकला िलो ि”
                                                                                          े
                    इस कोपवर-19 ि हम पुिीः
                                       ें
                                   े
                   उसी मुकाम पर पहुँिा दिया
          44
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