Page 41 - Akaksha (8th edition)_Final pdf
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‘Who are you?’ मैंि अपिा पररिय ित हुए कहा मैिे एक अिभुत दृशय िेखा। एक सफे ि कपडा हवा
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दक मैं पजक्यों की फोटो खीिि आया हूँ। वह बोली में तैरता हुआ प्रतीत हो रहा था। क्मा करें मै यह
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दक मैं बंगला भारा अचछी तरह स िही बोल पाती बोलिा भूल गया था दक उसिे सफे ि रंग का एक
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परतु समझ सकती हूँ और बडी ही िम्रता स अपिा आफगािी गाउि (आलखलला) पहिा हुआ था। मैं
पररिय दिया। उसि कहा दक वह भी पजक्यों को भयभीत होकर झटपट िौडते हुए िमींिार के बाडी
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िखि ही आईं ह। इसक बाि उनहोंि एक पवर्र की तरफ भागा। दफर हाँफते-हाँफते बैठक खािे में
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िगह पर िाि का आग्रह दकया। उसक प्रसताव िाकर बैठ गया। वहां थोडा आराम दकया दफर पािी
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माित हुए हम िंगल क उत्तर दिर्ा की ओर एक पीया। मलय बाबू िे पूछा कया हुआ? ऐसी हालत
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पवर्र सथाि पर पहुँि। वहा बड-बड पडों क अलावा का कया कारण है? िब िौकर ििलाल को मैं उस
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झाडीिार पडों की बहुलता थी। अिािक उस मदहला मदहला की कहािी बता रहा था तब ििर बाबू भी
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ि बासुरी की िुि बिाई। िुि बित ही िंगल का बैठक खािे में पहुंि गए और सुिकर िौंक गए।
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पररवर् पबलकल ही बिल गया। एक प्रकार क फल उसके बाि उनहोंिे िो कहा उसे सुिकर मेरे होर् उड
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की सुगनि स मरा मि तरोतािा हो गया। उसक गए। ििर बाबू िे कहा दक- 'वह मदहला उिकी 35
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बाि ही दकसी पक्ी क रिों क फर-फर की आवाज वरतीय की पक्ी पवर्ेरज् बेटी थी। वह िो साल पहले
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सुिाई िी। मैं अपि सामि एक सुिहर ओररयल एक दिि बाररर् की रात में एक िुल्षभ प्रिाती के
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पक्ी को िखकर मंत्रमुगि हो गया और कमर का ऊललू की तलार् में िंगल में गई थी एवं वज्रपात
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र्टर खोलकर बार-बार उसकी फोटो खीिि लगा। के कारण उसकी मौत हो गई। वह बहुत बदढया
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उसक बाि मैंि एक हर रग क पक्ी को िखा। गूगल बाँसुरी बिाती थी। उसकी बाँसुरी की िुि सुिकर
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लनस की सहायता स िाि पाया दक उस पक्ी का पक्ी उसकी बालकिी में आ िाते थे।' कभी-कभी
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िाम 'ग्र हुरर व्बलर' ह। वह इस तरह बासुरी बिाए उसे उत्तरी िंगल में िेखा िाता रहा है परंतु उसिे
िा रही थी मािों उसकी िुि सभी दहमालयी पजक्यों कभी भी दकसी का िकसाि िहीं दकया। मैिें ररते
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को उसस साक्ातकार करि क नलए आमंपत्रत कर हुए मलय िा से कहा- 'मलय िा, अभी र्ाम के पांि
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रही हो। मैं भी पागलों की तरह फोटो खीिि क बि रहे हैं, िनलए, अभी यहाँ से निकल िलते हैं।
नलए कमरा का र्टर िबाए िा रहा था। उस दिि आठ बिे के भीतर नयू िलपाईगुडी पहुँिकर दकसी
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दहमालयी पजक्यों एवं सािारण पजक्यों क फोटो भी ट्ेि में ततकाल दटकट काटकर घर के नलए
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खीिि का नसलनसला ही िही थमता यदि म उस रवािा हो िाएंगे।’ अतीः हम घर के नलए निकल
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मदहला क होठों पर रक्त िही िखता। मैंि तुरनत पडे। गाडी में बैठकर सटेर्ि की तरफ बढते हुए
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अपि बैग स पािी का बोतल निकालकर उस दिया। मैिे मलय िा को िंगल में खींिी हुई फोटो दिखाई।
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उसि पािी पीकर थोडा आराम महसूस दकया तो लेदकि मैंिे जिस सफे ि बक की फोटो खींिी थी वह
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मुझ राहत की अिुभूनत हुई। उसक बाि मैंि उसकी कै मरे की मेमोरी में मौिूि ही िहीं था।
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फोटो खीिि का अिुरोि दकया। यह सुिकर वह
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आि इति वरशों बाि भी मैं उस बासुरी की िुि
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बोली, 'पबलकल िही' और िाराि हो गई। दफर मैंि
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को िही भूल पाया हूँ। िोिों आँखों को बंि करत ही
उसस क्मा-याििा की। भला कौि दकसकी बात
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मैं उस बासुरी की िुि को सुि पाता हूँ और महसूस
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सुिता ह! वह अपिी मिती स वहा स िली गई। इस
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करता हूँ दक उसकी मिुर आवाज क साथ ही एक
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बार मैं एक सफि बगुला की फोटो खीिि क नलए
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िया पक्ी िंगल म आया ह। ऐसा प्रतीत होता ह
आग बढा। िखा दक वह मदहला कमर क रि म
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मािो वह मिुर आवाि मुसकरात हुए बार-बार कह
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आ गई। कमर क वयू फाईनरर पर ििर रखत ही
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रही हो, ‘आइए, कया फोटो िही खीिग?’
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