Page 36 - Akaksha (8th edition)_Final pdf
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         काफी िूरी पर था इसनलए उस घर म अधययि का  वह  एक  सममानित  िागररक  बि  िुका  है।  वह
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         समय िही नमल पाता था। इनही सभी समसयाओं  आि अपिे मुहलले तथा आस-पास के  इलाकों में
         तथा  पररजसथनतयों  को  अपिा  साथी  बिाकर  वह  सभी की मिि भी करता है। उसके  घर पर बहुत
         पढाई करता िला गया। उसक दृढ निचिय एवं हार  सारे लोग अपिी-अपिी समसयाओं के  समािाि के
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         ि मािि वाली मािनसकता ि उस इस बार भी  नलए आते हैं।
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         सफलता स िूर िही रखा। उसक िोसत-बिु तथा
                                                            आकार् आि बहुत गव्ष का अिुभव करता ह।
                                                                                                    ै
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         पडोसी उसकी इस सफलता को भी िख कर िग
                                                        वह तो कभी-कभी अपि ही मुंह स अपिी तारीफ
                                                                              े
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         रह गए थ।
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                                                        करत हुए कहता ह दक वह एक रािपपत्रत अनिकारी
             आकार्  अब  रािपपत्रत  अनिकारी  बि  िुका  है। हाँ, सुििे में गव्ष का अिुभव होता है और हो
         था। अपिी र्त-प्रनतर्त लगि एवं क्मता क बल  भी कयों ि? एक समय तो वह कारखािे में एक
                                                 े
         पर उसि अपि भागय-िक्र को 360 दरग्री घुमा  सैकयोररटी गार्ष की िौकरी करता था और सभी को
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         दिया  था।  उस  अब  सभी  सममाि  की  दृपष्ट  स  सलामी और सममाि िेता था। दृढ इचछार्पक्त, हार ि
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         िखत ह, इसका एकमात्र कारण कदठि पररश्रम एव  माििे की प्रबलता, अपिे काय्ष के  प्रनत अटूट निष्ठा
         िीवि म कछ अलग हानसल करि का िुझारूपूण्ष  और पयार िे ही उसे इस िुल्षभ सफलता से रूबरू
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         रवया  ही  तो  ह।  इनही  गुणों  की  विह  स  आि  कराया है। र्ाबार्! आकार्, र्ाबार्!
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                          दश क ववसभनन भागों क तनवासस्यों क व्यवहाि क सलए सव्षसुगम औि
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                          व्यापक ््था एक्ा स्थावप् किन क सािन क रूप में हहंदी का ज्ान
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                          आवश्यक ह।
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