Page 45 - Akaksha (8th edition)_Final pdf
P. 45
अजान म्ुर
ं
कमला दासगुप्ा,
े
े
पतनवी- शवी अमलश दासगुप्ा, व.ल.प.अ.
मथुर अथा्षत ् मथुरमोहि पबविास रािी रासमजण इनतहास भी बडा है। िो भी हो, िेवी माँ के पुिारी
े
े
क िादहि हाथ थ। वह रािी रासमजण क पप्रय िमाई के रूप में ठाकु र रामकृ षणिेव के बडे भाई रामकु मार
े
ें
भी थ िो उचिनर्जक्त एवं ब्हिम्ष क एक सचि िटटोपाधयाय के साथ ठाकु र रामकृ षण भी आए थें।
े
े
े
े
ु
ँ
अिरागी थ। दकसी भी पवरय की सतयता िाि दकए उस समय वह गिािर िाम से प्रनसद्ध थे। कलकत्ता
ं
पबिा वह उस पर पबलकल भी पबविास िही करत के बगमापुकू र में अपिे भाई के साथ ही रहते थें।
े
ु
े
थ। वह सवाभापवक रूप म क्मतार्ाली, अथ्षवाि िजक्णेविर में ही मथुर के साथ गिािर की मुलाकात
ें
ं
एवं अहकारी थ। रािी रासमजण क पनत राििंद्र की हुई थी। मंदिर के कता्ष-िता्ष, प्रनतपष्ठत िमींिार एवं
ें
े
े
अकाल मृतयु क पचिात ् िमीिारी की कमाि रािी अथ्ष क्मता मथुर के ही हाथों में थी। उिके साथ
ं
क ही हाथों म आ गई थी। मथुर रािी रासमजण लाठीिारक पहरेिार भी होते थे। वे मंदिर िर््षि हेतु
ें
े
क एक अनयतम सहायक थ परतु िमीिारी की प्रायीः ही आते रहते थें। इतिे बडे िमींिार की ििरों
ं
ें
ं
े
ें
कमाि रािी क ही हाथों म थी। रािी म एक में आिे की गिािर में कोई इचछा या लालि िहीं
े
ें
प्रभावर्ाली वयपक्ततव, बौपद्धक कौर्ल, िमीिारी काय्ष थी। िरअसल इसी उम्र में वे िीवि के मूल उद्ेशयों
ं
े
की प्रर्ासनिक क्मता क साथ-साथ िया, करूणा, से पररनित हो गए थें। इसी कारण िजक्णा सवरूप
ू
ममता, सवाभाव एवं अधयातम की भाविा भी कट- भट का लालि भी उिम पबलकल िही था। लोग
ें
ें
ु
े
ं
ं
कट कर भरी थी। परतु स्ती होि क िात उिक नलए उनहें ऐसी प्रवृपत्त के कारण मूख्ष कहा करते थें। दफर
े
े
ू
े
े
िो सामाजिक बंिि थ, उसकी भरपाई मथुर एक भी, इि सभी बातों का उि पर कोई प्रभाव िहीं
े
े
सहायक क रूप म कर दिया करत थ। िमीिारी क पडता था। अपिे सवाथ्षहीि गुणों के कारण ही वह
े
ें
ें
े
ं
े
कायशों म मथुर रािी क बहि करीबी एवं वफािार बडे लोगों की िी हुिूरी िहीं करेंगे यह सवाभापवक
े
ें
े
थ। समय-समय पर वह रािी को कायशों स संबंनित था। परंतु उिके टालिे से कया होता है? िहां सवंय
े
ं
सलाह भी दिया करत थ परतु उनहोंि कभी भी माँ भवताररणी िोिों को नमलािे की साजिर् रि
े
े
ें
े
े
अपि आप को रािी स बडा समझि की कोनर्र् रही थीं।
े
ै
ं
िही की िैसा दक आमतौर पर होता रहता ह। वह
े
े
बीि-बीि म गिािर गंगा क दकिार िमी हुई
ें
ं
एक िानम्षक वयपक्त थ तथा रािी क प्रतयक नसद्धातों
े
ें
े
े
नमटटी स भगवाि नर्व की प्रनतमा बिाकर उिकी
ें
म उिका िनतक समथ्षि रहता ही था। निजचित रूप
ै
े
ें
पूिा दकया करत थ। एक दिि गिािर भगवाि की
ं
े
स उिका सवभाव सवाथ्षहीि था। इनही गुणों क
े
अराििा म लीि थ। मथुर उिको ऐसी अवसथा म
ें
ें
ें
े
ें
कारण वह रािी क पप्रय सहायक थ। एक तरफ तो
िखकर अपवभूत हो गए थ। इसक बाि, ठाकर क
ें
े
े
ु
े
े
ें
िमीिारी की संपपत्त स वह बहुत समृद्ध बि गए थ
ं
ं
े
े
भाि हृिय राम को बुलाकर मथुर ि यह पूछा था
ं
े
ं
े
े
े
परतु िमीिारी क कायशों स उनहोंि कभी भी बईमािी
दक भगवाि नर्व की इस प्रनतमा को दकसि बिाया
े
ं
िही की।
े
ू
ै
ह। पिा क बाि मथुर ि हृिय राम स वह नर्व की
े
े
े
े
े
रािी रासमजण क विारा िजक्णविर मंदिर क प्रनतमा मांगकर ले ली थी। प्रनतमा जितिी अपूव्ष
े
निमा्षण एवं िवी भवताररणी की सथापिा इतयादि थी उससे भी अपूव्ष गिािर की पूिा में लीिता थी
ें
म मथुर की एक अहम भूनमका रही थी। इसका जिसिे मथुर को काफी मुगि दकया था। इस घटिा
45