Page 45 - Akaksha (8th edition)_Final pdf
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अजान म्ुर
                                                  ं






                             कमला दासगुप्ा,
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                             पतनवी- शवी अमलश दासगुप्ा, व.ल.प.अ.
             मथुर अथा्षत ्  मथुरमोहि पबविास रािी रासमजण  इनतहास भी बडा है। िो भी हो, िेवी माँ के  पुिारी
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         क िादहि हाथ थ। वह रािी रासमजण क पप्रय िमाई  के  रूप में ठाकु र रामकृ षणिेव के  बडे भाई रामकु मार
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         भी थ िो उचिनर्जक्त एवं ब्हिम्ष क एक सचि  िटटोपाधयाय के  साथ ठाकु र रामकृ षण भी आए थें।
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                                                      े
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         अिरागी थ। दकसी भी पवरय की सतयता िाि दकए  उस समय वह गिािर िाम से प्रनसद्ध थे। कलकत्ता
                                                ं
         पबिा वह उस पर पबलकल भी पबविास िही करत  के  बगमापुकू र में अपिे भाई के  साथ ही रहते थें।
                                                      े
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                                  े
         थ।  वह  सवाभापवक  रूप  म  क्मतार्ाली,  अथ्षवाि  िजक्णेविर में ही मथुर के  साथ गिािर की मुलाकात
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                ं
         एवं अहकारी थ। रािी रासमजण क पनत राििंद्र की  हुई थी। मंदिर के  कता्ष-िता्ष, प्रनतपष्ठत िमींिार एवं
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         अकाल मृतयु क पचिात ्  िमीिारी की कमाि रािी  अथ्ष क्मता मथुर के  ही हाथों में थी। उिके  साथ
                                   ं
         क ही हाथों म आ गई थी। मथुर रािी रासमजण  लाठीिारक पहरेिार भी होते थे। वे मंदिर िर््षि हेतु
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         क  एक  अनयतम  सहायक  थ  परतु  िमीिारी  की  प्रायीः ही आते रहते थें। इतिे बडे िमींिार की ििरों
                                       ं
                                    ें
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                                                 ें
         कमाि  रािी  क  ही  हाथों  म  थी।  रािी  म  एक  में आिे की गिािर में कोई इचछा या लालि िहीं
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                                    ें
         प्रभावर्ाली वयपक्ततव, बौपद्धक कौर्ल, िमीिारी काय्ष  थी। िरअसल इसी उम्र में वे िीवि के  मूल उद्ेशयों
                                              ं
                               े
         की प्रर्ासनिक क्मता क साथ-साथ िया, करूणा,  से पररनित हो गए थें। इसी कारण िजक्णा सवरूप
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         ममता, सवाभाव एवं अधयातम की भाविा भी कट-        भट का लालि भी उिम पबलकल िही था। लोग
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                           ं
         कट कर भरी थी। परतु स्ती होि क िात उिक नलए  उनहें ऐसी प्रवृपत्त के  कारण मूख्ष कहा करते थें। दफर
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         िो सामाजिक बंिि थ, उसकी भरपाई मथुर एक  भी, इि सभी बातों का उि पर कोई प्रभाव िहीं
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                                                     े
         सहायक क रूप म कर दिया करत थ। िमीिारी क  पडता था। अपिे सवाथ्षहीि गुणों के  कारण ही वह
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         कायशों म मथुर रािी क बहि करीबी एवं वफािार  बडे लोगों की िी हुिूरी िहीं करेंगे यह सवाभापवक
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                ें
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         थ। समय-समय पर वह रािी को कायशों स संबंनित  था। परंतु उिके  टालिे से कया होता है? िहां सवंय
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                                    ं
         सलाह  भी  दिया  करत  थ  परतु  उनहोंि  कभी  भी  माँ  भवताररणी  िोिों  को  नमलािे  की  साजिर्  रि
                                             े
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         अपि आप को रािी स बडा समझि की कोनर्र्  रही थीं।
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                                                 ै
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         िही की िैसा दक आमतौर पर होता रहता ह। वह
                                                                                     े
                                                                                            े
                                                            बीि-बीि म गिािर गंगा क दकिार िमी हुई
                                                                      ें
                                                    ं
         एक िानम्षक वयपक्त थ तथा रािी क प्रतयक नसद्धातों
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                                                        नमटटी स भगवाि नर्व की प्रनतमा बिाकर उिकी
           ें
         म उिका िनतक समथ्षि रहता ही था। निजचित रूप
                   ै
                                                                       े
                                                                         ें
                                                        पूिा दकया करत थ। एक दिि गिािर भगवाि की
                                             ं
                                                     े
         स  उिका  सवभाव  सवाथ्षहीि  था।  इनही  गुणों  क
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                                                        अराििा म लीि थ। मथुर उिको ऐसी अवसथा म
                                                                                                     ें
                                                                  ें
                                                                         ें
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                                        ें
         कारण वह रािी क पप्रय सहायक थ। एक तरफ तो
                                                        िखकर अपवभूत हो गए थ। इसक बाि, ठाकर क
                                                                                ें
                                                         े
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                                                      ें
         िमीिारी की संपपत्त स वह बहुत समृद्ध बि गए थ
             ं
                                                          ं
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                                                        भाि हृिय राम को बुलाकर मथुर ि यह पूछा था
                  ं
                                      े
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         परतु िमीिारी क कायशों स उनहोंि कभी भी बईमािी
                                                        दक भगवाि नर्व की इस प्रनतमा को दकसि बिाया
                                                                                              े
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         िही की।
                                                                                         े
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                                                        ह। पिा क बाि मथुर ि हृिय राम स वह नर्व की
                                                                 े
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             रािी  रासमजण  क  विारा  िजक्णविर  मंदिर  क  प्रनतमा  मांगकर  ले  ली  थी।  प्रनतमा  जितिी  अपूव्ष
                      े
         निमा्षण एवं िवी भवताररणी की सथापिा इतयादि  थी उससे भी अपूव्ष गिािर की पूिा में लीिता थी
           ें
         म  मथुर  की  एक  अहम  भूनमका  रही  थी।  इसका  जिसिे मथुर को काफी मुगि दकया था। इस घटिा
                                                                                                 45
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