Page 65 - Akaksha (8th edition)_Final pdf
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खपती ह, सपष्ट नित्र उभार िती ह। उसका िकार में रहती आई हैं। राििीनत, पूँिीवाि, भूमणरलीकरण
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करती ह- और बाजारवाि ि उिक िीवि को पति की ओर
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उनमुख दकया ह। एक तरफ औद्योनगक क्रानत क
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"िूलह त्बस्ि की परिधि में
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हाथों हररत क्रानत की भूण हतया की िा रही ह।
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मुझे नहीं ह िहना
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िूसरी ओर पवकास क िाम पर आदिवानसयों का
गऊ िाल में िलकि नहीं ह ्थकना
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िीवि पवसथापपत होता िा रहा ह। पवकास क
मन में भिी ह कवव्ा
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िाम पर िंगलों को काटा िा रहा ह, िो िंगल
मंज़ूि नहीं ह ्थमना
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की रक्ा करत थ उिको पवसथापपत दकया िा रहा
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ह वप्र्यवि......”
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ह। आदिवासी अपिी आँखों क सामि पडों को
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सररता िी की कपवताओं क संबि म रमजणका
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कटि िही िता। वह उसका पवरोि करता ह जिसस
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गुप्ता कहती है- “सरि्ा की मोि पंखवी भाषा इ्नवी
आदिवासी कलम म आि पवविास भर गया ह।
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बहिगवी ह कक झाड़खंड क हि ्ेवि को पकड़ ल्वी इसनलए महािि टोपपो कहत ह-
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ह। व न कवल झाड़खंड क गाँवों की िड़कनों को
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सवि द्वी ह, बजलक झाड़खंड क हि तनवासवी की, “वह िनुष उ्ठाएगा
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िाह वह ककसवी आ्यु, स्ि, वग्ष का ््यों न हो, प्रत्यंिा पि कलम िढ़ाएगा
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उनक त्बंब सिल- सहज शबदों में खड़ा कि द्वी सा्थ में बाँसुिी औि माँदि भवी जरूि उ्ठाएगा
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है।” जंगल में हिपन को बिान की खात्ि
जंगल का कवव
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आदिवासी सादहतय अंिर और हानर्ए पर
माँदि बजाएगा
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िीवि यापि करि वाली जस्तयों को रोर्िी दिखाकर
िढ़ा कि प्रत्यंिा पि कलम।”
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मुखयिारा म लािा िाहती ह। मुखयिारा की संसकनत
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अपिा हक और अपि अनिकारों की रक्ा क
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क िायर स बाहर रहकर आदिवानसयों क िीवि को
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नलए आदिवानसयों विारा दकए गए आंिोलिों की
वयक्त करि वाला, उिकी संसकनत, परपराए, संघर्ष,
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महत्वपूण्ष भूनमका ह। पूवमोत्तर क आदिवानसयों
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इनतहास को एक सतर स ऊपर उठाि वाला सादहतय
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का आंिोलि अपिी पहिाि का आंिोलि ह। रढ
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ह। इि सादहतयकारों ि आदिवानसयों क उि प्रश्नों
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सौ साल पहल स वहा आदिवासी सादहतय रिा
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की तरफ धयाि िि वाल सादहतय का निमा्षण दकया
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िाि लगा ह। िो लोकगीत, गीत, लोककथाओं
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ह, िो आदिवानसयों म प्ररणा, िागरूकता, अपि हक
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क मौजखक रूप म नमलता ह। असम, नमजोरम,
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क नलए लडि की र्पक्त ि सक। स्ती िीवि क संघर्ष
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िागालैंर, मजणपुर का आंिोलि अपिी अजसमता क
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को लकर रमजणका गुप्ता, महाविता िवी, निम्षला
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साथ सादहतय को ढूँढि की कोनर्र् कर रहा ह।
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पुतुल, सररता बडाइक, ग्रस क्रिुर, मीरा रामनिवास,
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वहा पर आि बोडो सादहतय लोकगीतों, लोककथाओं,
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रॉ. मंिु जयोतसिा आदि सादहतयकारों ि आवाि िी
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गीतों और गाथाओं म िखि को नमलता ह। कपव,
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ह। िख सकत ह दक दकस प्रकार अपिी कपवताओ
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कहािीकार, उपनयासकारों ि बोडो सादहतय की
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क माधयम स आदिवासी स्ती क मि क िरवाि
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समृद्ध परपरा को िलाया ह। अपिी संसकनत को
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खोलकर उिकी निंतिर्ीलता, संवििर्ीलता, अपि
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बिाि म एक होकर आंिोलि को सर्क्त बिाया।
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संबंिों, ितृतवगुणों, अंतीःप्ररणाओं को बाहर निकाला
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लदकि आि पविर्ी आक्रमणों और िम्ष प्रिारकों
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ह। आदिवासी स्ती को अपिी अंिश्रद्धाओं, परपराओं,
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ि अपिी िड िमाि की कोनर्र् की ह। जिसका
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रूदढयों, िूलहा और बचि क िाल स मुक्त करि की
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पूरा पवरोि कपवमि करता ह। उसक पवरोि म
कोनर्र् की ह।
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पवद्रोह भी करता ह। भारत का पूवमोत्तर भाग आि
आदिवानसयों क नलए िंगल-िमीि उिकी िाि
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भी अपि मूलभूत हकों क नलए लड रहा ह। उिक
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और अजसततव ह। य िििानतया सदियों स िंगलों
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प्रिर् म िर्ी और पविर्ी घुसपैठ क कारण वह
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