Page 69 - Akaksha (8th edition)_Final pdf
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निम्षल सर क पास टयूर्ि कलास म र्ानमल होिा था। कपवता के िािािी का बंगलािेर् में एक पलाईबोर्ष
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ह। समर ि निम्षल सर स अिरोि दकया तो व की फै कट्ी थी, जिसको उसके पपतािी संभालते थें।
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माि गए। अब समर को एक िोसत नमल गया िो मातािी भी वहीं बंगलािेर् से ही थी। वे लोग भी एक
साथ-साथ टयूर्ि पढि िाया करता था। सिमुि प्रवासी ही थे। वर्ष 1971 की युद्ध के िौराि अपिे
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निम्षल सर दहिी माधयम क छात्रों क नलए भगवाि पररवार को दहंसा से बिािे के खानतर बंगलािेर्
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क समाि थ। यह समर को एक महीि म ही पता में बसे काफी प्रवासी अपिे घर-बार, संपपत्त सब
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िल गया। उिकी अंग्रिी पढाि की कला वासतव म कु छ छोडकर भारत आ गए। बंगलािेर् में एक बडे
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िािुई थी। अंग्रिी क िो पपरों को पढाि क पहल वयवसाय का मानलक, आि भारत में ररफयूिी था।
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उनहोंि सव्षप्रथम अंग्रिी वयाकरण पढाि म 3 स यहीं रहकर उनहोंिे अपिे िीवि को दफर से बसािे
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4 महीि का समय नलया। समर भी यह सीखि का प्रयास र्ुरू दकया। संपपत्त, रसूख िािे की वेििा
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क नलए वयाकल था। बड ही मि स उिक पढाए तो होती है, परंतु यह िाि से बढकर िहीं हो सकती।
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गए एक-एक बातों पर धयाि ित हुए सीखिा र्ुरू
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रमर् बाब कपवता क पपता थ। िो एक पढ-
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दकया। उसक नलए अब अंग्रिी को समझिा और
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नलख िक वयपक्त थ। उिकी सात बदटया थी। कपवता
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पढिा आसाि बि गया था। इसस ररि क बिाए
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उिकी िौथी बटी थी। सातों बदटयों को रमर्बाबू ि
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वह बड ही उतसाह स एक-एक कर दहिी क वाकयों
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बड की कष्ट स बडा दकया और अपिी सभी बदटयों
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को अंग्रिी म रूपानतरण करिा सीख गया।
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म संघर्ष की भाविा को िगाया। समर िब उिस
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अिािक टयूर्ि की कक्ा म िो महीिों क बाि नमला था तब उिकी तीि बेदटयों की र्ािी हो िुकी
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िो लडदकयों ि भी जवाईि दकया। उिम स एक का थी, जििमें से िो प्राइमरी सकू ल की नर्जक्का भी
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िाम र्ारिा तथा िूसरी का िाम कपवता था। पहल थी। उनहोंिे सातों बेदटयों को एलआईसी में एक
क कछ दििों तक तो उिक िाम भी समर को एिेंट का काम करते हुए तथा टयूर्ि पढाते हुए
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पता िही था। िरअसल समर एक र्नम्षला दकसम लालि-पालि दकया था। वहीं बेदटयां भी टयूर्ि
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का लडका था। िीर-िीर कक्ा की िाि परीक्ा म पढाया करती थीं, जिससे घर में कु छ मिि हो सके ।
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समर को सबस अनिक अंक नमलि लग। यह उसक समय पबतता गया और समर अब कॉलि क
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अंग्रिी सीखि क प्रनत लगि और कडी महित की दवितीय वर्ष म पढ रहा था दक अिािक 2003 म
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विह स ही हो पाया था। र्ुरूआत म तो समर समर एवं र्मभू और समर का ही एक िोसत राि
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और र्मभू िोिों स ही उि िो लडदकयों स दकसी को कपवता क पववाह का आमंत्रण कार प्राप्त हुआ।
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मुद् पर बहस होि क कारण मिमुटाव हो गया। सभी िोसत िाहत थ दक कपवता अपिी ग्रिुएर्ि
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दफर िीर-िीर िोिों गहर िोसत बि गय। िोसती की पढाई क बाि मासटरस्ष क साथ बी.एर. कर
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का नसलनसला इतिा गहरा हो गया दक समर और तादक उस एक नर्जक्का की िौकरी नमल िाय।
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र्मभू िोिों उिक घर आि-िाि लग और उिक इसस उसक घर की भी माली हालत म सुिार हो
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माता-पपता, भाई-बहिों स भी अचछी तरह घुल-नमल पायगा। यहा यह कहा िा सकता ह दक रमर्बाबू
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गए। यह कहा िा सकता था दक ररशता एक पररवार की सभी बदटया दकसी भी मामलों म लडकों स कम
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की तरह बि गया था। िही थी।
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एक दिि कपवता क घर खाि पर निमंत्रण क
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कार पर छपा था दक वर पक् का घर िपाल क
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िौराि समर और र्मभू को उिक पररवार क बार म
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िुहबी म ह। अब व लोग और कया कर सकत थ,
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पवसतार स िािि का मौका नमला। िरअसल कपवता
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िब उसकी र्ािी की तारीख पककी हो िुकी थी। व
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क पूव्षि उत्तर प्रिर् स थ। परतु िो पीढी स व लोग
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तीिों रमर्बाबू क घर गए और काफी समझाि की
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अपि वयवसाय क नलए बंगलािर् म बस गए थ,
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कोनर्र् भी की। परतु एक गरीव बाप क नलए सात
दफर भी उिका उत्तर प्रिर् आिा-िािा लगा रहता
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बदटयों का बोझ कया होता ह, वही समझता ह। वो
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