Page 73 - Akaksha (8th edition)_Final pdf
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णसकक े की आतमक्ा
सोहहनवी द,
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पुत्वी: शवी दबाशवीष द, व.ल.प.अ.
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मैं एक पाि का नसकका,
सुिाता हूँ अपि िीवि का दकससा,
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पढ कर इसको, िखो हसिा मत,
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मि मरा ह मोम र्रीर सखत।
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य ह मरी कहािी,
तनहाई की िुबािी,
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सि ् 2000 म हुआ मरा िनम,
ियालु होगा जिसका मि।
िब सोिा मैंि यह,
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ल गया मुझ कोई बैंक स, े
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राला उसि मुझ अपिी िब म, ें
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कया बताऊ कस वह िििाक लमह ें
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िब म सौ-सौ की गडरी थी,
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थ बलर, कलम और रूमाल भी,
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िगह ि िी उनहोंि मुझ बैठि की,
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कहा सबि, मैं हूं मोटा,
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ह मरा मूलय बहुत ही छोटा,
मारी लात,
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नगराया मुझ गटर म, ें
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ि िखी थी गिगी,
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मैंि इतिी िीविभर म। ें
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बोलता गया कड-करकट क साथ
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नगरोग तब ही तो िािोग।।
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