Page 76 - Akaksha (8th edition)_Final pdf
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सीखना है तो यह सीखो वन की भोर
इद्रानवी द, िाइमा कम्षकाि
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पतनवी: शवी दबाशवीष द, े पुत्वी: शवी असवीम िंद्र कम्षकाि,
व.ल.प.अ. व.ल.प.
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बोल सको तो मीठा बोलो, उठा दिवाकर पव्ष दिर्ा स, े
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कटु बोलिा मत सीखो। आलोदकत हुआ सारा वि िाम।
बिा सको तो राह बिाओ, बिल िी छपव कािि की,
पथ भटकािा मत सीखो।।
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पजक्यों क मृिुल कलख ि।।
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झुक गई फलों की राली,
िला सको तो िीप िलाओ,
सुगंनित हुए वाय मतवाल।
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दिल िलािा मत सीखो।
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कमा सको तो पुणय कमाओ, उडी नततनलया सुिहर पंख फलाए,
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पाप कमािा मत सीखो।। मंरराए फलों पर और मुगि हो िाए।।
लगा सको तो बाग लगाओ,
आग लगािा मत सीखो।
छोड सको तो पाप छोडो,
िररत्र छोडिा मत सीखो।।
पा सको तो पयार पाओ,
नतरसकार पािा मत सीखो।
रख सको तो पवद्या रखो,
बुराई रखिा मत सीखो।।
पोंछ सको तो आँसू पोंछो,
दिल िुखािा मत सीखो।
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हसा सको तो सबको हसाओ,
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दकसी पर हसिा मत सीखो।।
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