Page 33 - Prayas Magazine
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उम्मीद






                                     चकसी की आूँखों में मोहधबत का चसतारा होिा,
                                      एक चदन आएिा चक कोई शक्स हमारा होिा.


                                   कोई जहाूँ मेरे चलए मोती भरी सीचपयाूँ िुनता होिा,
                                        वो चकसी और दुचनया का चकनारा होिा .


                                   काम मुचश्कल है मिर जीत ही लूिाूँ चकसी चदल को,

                                         मेरे खुदा का अिर ज़रा भी सहारा होिा.

                                              चकसी क े  होने पर मेरी साूँसे िलेिीं,

                                        कोई तो होिा चजसक े  चबना ना मेरा िुज़ारा होिा.

                                           देखो ये अिानक ऊजाला हो िला,

                            चदल कहता है चक शायद चकसी ने धीमे से मेरा नाम पुकारा होिा.

                                    और यहाूँ देखो पानी में िलता एक अड़जान साया,

                                 शायद चकसी ने दूसरे चकनारे पर अपना पैर उतारा होिा.

                                            कौन रो रहा है रात क े  सड़नाटे में,

                                       शायद मेरे जैसा तड़हाई का कोई मारा होिा.

                                       अब तो बस उसी चकसी एक का इड़तज़ार है,

                                     चकसी और का यायाल ना चदल को ग़वारा होिा.

                                     ऐ चज़ड़दिी! अब क े  ना शाचमल करना मेरा नाम,

                                               ग़र ये खेल ही दोबारा होिा.


                                              जानता हूँ अक े ला हूँ चफलहाल,

                          पर उम्मीद है चक दूसरी और चज़ड़दिी का कोई ओर ही चकनारा होिा.


                                                   दीपक कोहली

                                                                    ं
                                                यूचनयन बैंक ऑफ इचिया








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