Page 181 - Sanidhya 2025
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ही। माजिहीलंए अपुनांी पुसदे स गाँोदेनांं मा �ल, पुŸ�ंी, पुश-पुक्षेी भ�जि�यं रहीते ही। लगाँभगाँ पुचींस पुरिरवेंर कांं गाँॉवे थां। खंंलगाँढ़ प्रवेश
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बनांवेंतेी ही। कांन्यं कां प्रथामा र�ोस्लवें कां समाय एकां जिवेशर्ष प्रथां हीोतेी स पुहील स्कल डस मा संईजिकांल चीलंतें हुआ एकां लडक़ �ं उन्हे े
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ही जि�स इटे �ोलं कांहीं �ंतें ही। इस प्रथां मा � संते जिदेनां कांं एकां जिमालं। लडक़ �ं भजि�यं �नां�ंजिते स थां और 9वेी� कांक्षें कांं छेंत्र थां।
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जिवेशर्ष� �ं पु� �ं हींते �ं ही। इस पु�ं कां � अजितेमा जिदेनां कांन्यं एकां बंतेचीीते कां क्रमा मा उसकांी पुढ़ंई कां प्रजिते लगाँनांशीलतें जिदेखंी। वेहीं �
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हींडी लकांर तेंलंब �ंतेी ही और वेहीं हींडी मा � पुंनांी डंलकांर आगाँ एकां रंहीगाँीर नां उन्हे बतेंयं जिकां सरकांंर भजि�यं कां जिवेकांंस पुर इतेनांं
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लगाँंकांर पुंनांी गाँमा कांरतेी ही। पुंनांी गाँमा हीोनां पुर वेो अपुनां कांपुड़ उस ध्यांनां देतेी ही जिकां अगाँर कांंइ बंरहीवेी� कांक्षें भी उजितेरणी हीो �ंतें ही तेो
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हींडी मा डंलतेी ही और जि�र पुंनांी गाँमा जिकांयं �ंतें ही। उस गाँमा पुंनांी उसकां अनांसंर उसकांी नांौकांरी लगाँ �ंतेी ही। उस बच्चे कांो भजिवेष्य मा
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स � कांन्यं स्नांनां कांर हींडी कांो लकांर अजि� कां संते चीक्कोर लगाँंतेी ही ै अच्छं कांरनां कांं सदेश देकांर वे आगाँ बढ़। खंंलगाँढ गाँंवे आते हीी
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और जिबनांं पुीछे माड़ माटेकांं �ोड़ देतेी ही। कांन्यं कां � घार वेंपुसी पुर उकांनांं मानां खंश हीो गाँयं। बोगाँनांवेजिलयं कांी लतेंए मांनांो उनांकांं
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कांसमा तेल और हील्दीी कांं लपु लगाँंयं �ंतें ही। इसकां बंदे पुŸ�ं � स्वंगाँते कांर रहीी हीो। खंपुरल कां कांछे हीी घार जिदेखं। अजिधीकांतेर घार
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कां देंनांे स � पुंनांी मांगाँनां कांं रिरवें� हीोतें ही। इतेनांं सबकांछे हींनां � पुक्को था। घार कां बंहीर जिमाट्टोी कांी जिचीकांनांी जिलपुंई थाी �ो पुलंस्टेर ऑ�
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कां बंदे हीी उस लंल बगाँल मा प्रवेश जिदेयं �ंतें ही। भजि�यं �नां�ंजिते पुरिरस स कांमातेर नांहीी थाी। सभी घार कां माख्य देरवें� कां पुंस देंलंनां
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कां लोगाँो कांं रहीनां-सहीनां संमांन्य �नां�ंजितेयं� स अलगाँ ही। भजि�यं थां �ो बठौनां इत्युंजिदे कां कांंय मा� आतें ही। लंलं बगाँलं अथांते रसोई
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�नां�ंजिते कां लोगाँ रोगाँं� कांं ईलं� गाँमा लंही � कांो देंगाँ कांर कांरते ही। घार देखंं। उसकांी माहीकां आ� भी बरकांरंर ही। उसकां प्रजिते सवेदे े
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पुरूर्ष धीोतेी, पुछे, बडी, कांर आजिदे पुहीनांते ही और स्थिस्त्यं लगाँर पुोलखंं नांशीलतें देखंनां कांो जिमाली। एकां बढी स्त्ी उन्हे जिमाली, पुरो� मा सोटेी
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इत्युंजिदे पुहीनांतेी ही। भजि�यं माजिहीलंए अपुनां पुरो� मा संटेी, हींथा मा पुटें, आर गाँल मा चींदेी कां जिसक्कोो� स गाँथाी हींर पुहीनांी थाी। इनां जिसक्कोो� पुर
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एठौी, चीजिड़यं, गाँल मा जिसक्कों स बनांं हींर तेथां कांंनां मा स्थिखंनांवें पुहीनांतेी देवेी-देवेतेंओ� कां जिचीत्र अजिकांते था। एकां यवें स्त्ी जिमाली और बंतेो� स
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ही। आभर्षणी अजिधीकांतेर जिगाँलटे आर नांकांली चींदेी कां हीोते ही। य लोगाँ पुतें लगाँं जिकां वेो जिमातेंनांीनां ही �ो �रूरतेमादेो कांो अग्रु�ी देवें देतेी ही।
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अपुनां � आवेंस कांी स�ंई और स्वच्छतें पुर जिवेशर्ष घ्यांनां देते ही। इन्हेोनां जिमातेंनांीनां कांं प्रजिशक्षेणी भी प्रंप्त जिकांयं ही। गाँमा लोही कांो देंगाँ
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भ�जि�यं लोगाँ ज्यंदेंतेर कांजिर्ष कांंय कांरते ही जि�समा � � धींनां, कांर ईलं� कांरनां वेंल आ� जिमातेंनांीनां स देवें लकांर बीमांरी देर कांर
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�ं�घारं, कांंदे �ो, उड़दे वे जितेल आजिदे कांी खंतेी कांरते ही। माहुआ, रही ही देखंकांर अच्छं लगाँं। हीर घार कां बच्चे स्कल �ंनां वेंल था। घार
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गाँोदे तेथां तेदे इत्युंजिदे वेन्योपु� कांं सकांलनां कांरते ही। माछेजिलयं भी कांी स�ंई उच्चे दे� कांी थाी। एकां भजि�यं ग्रुंमाीणी कां आग्रुही पुर उन्हे े
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मांरते ही। इनांकांं माख्य भो�नां चींवेल, कांोदेो, हीजिड़यं एवेमा सस्थि�यं � एकां घार देखंनां कांं सअवेसर जिमालं। जि�तेनांं भजि�यं कांो मानां �ंनांं थां
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ही। भजि�यं �नां�ंजिते जिपुतेवेशीय हींते � ही और सयक्त पुरिरवेंर मा े उस सनांकांर आ� आधीजिनांकां स्वरूपु मा देखं रहीी थाी। घार मा तेीनां
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जिनांवेंस कांरते ही। भजि�यं �नां�ंजिते कां लोगाँं� कांी मात्यु हीो �ंनां पुर कांमार जिदेखंंई जिदेय। एकां आगाँनां और एकां बरंमादें। आगाँनां कांी जिवेजिभन्न
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मातेकां कांो दे�नांंते ही। इनांकांं मांनांनांं ही जिकां मातेकां कांं � �लंनां स े रगाँो स रगाँंई आकांजिर्षते कांर रहीी थाी। अनांकां प्रकांंर कां जिचीत्र देीवेंरो�
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उसकांी आत्मां कांं � कांष्ट् हीोतें ही। इसजिलए इस जिमाट्टोी रूपुी शरीर कांो पुर उकांर गाँय था पुंची सीन्तो� वेंलं सो�ं सटे लगाँं थां जि�सपुर उनांकांं
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जिमाट्टोी मा� दे�नां कांर देते ही। भजि�यं �नां�ंजिते मा� पुरपुरंगाँते वे आजितेथ्य जिकांयं गाँयं। घार कांो स�ंयं गाँयं थां। कांमार कां देरवें�ो� कांी
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वेशंनांगाँते पुची �ंयते हीोतेी ही जि�समा � पु�री, पुंतेी, देीवेंनां कां पुदे ऊचींई कां था जि�समा झाुकांकांर हीी �ंयं �ं सकांतें थां।
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हीोते ही। इसमा� �ंनांीय जिवेवेंदे, अनांजितेकां सबधी तेथां अन्त�ंतेीय
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जिवेवेंही कां मांमाल समाझांकांर यं देण्डे देकांर सलझांयं �ंतें ही। भजि�यं आ� प्रशंसनां कां सहीयोगाँ स अधीजिवेश्वंस, भते-प्रते, �ंदे-टेोनांं
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संमांजि�कां बजिहीष्कंर इनांकांं माख्य देण्डे हीोतें ही। इनांकां � प्रमाखं और कांई एकां संमांजि�कां वे�नांंओ स उपुर उठौकांर आधीजिनांकांतें कांी
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देवेी-देवेतें मा� बढं�देवे, ठौंकांरदेवे, भसंसर, बढ़ीमांई, कांंनांं भरं, ओर कांदेमा बढ़ं रहीी ही। कांद्रीीय रिर�ब पुजिलस बल छेत्तीसगाँढ़ मा ं
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कांंलंकां�वेर, डमांदेवे आजिदे प्रमाखं ही। इसकां अजितेरिरक्त सर�, नांदेी, नांक्सजिलयो स लड़ते हुए भी �ंनांीय �नां�ंजिते कां प्रजिते संही �ंदेपुणी व
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पुहींड़, वेक्षे इत्युंजिदे कांं � भी अरंध्या मांनांकांर पु� ते ही। त्युौहींर मा� े भंवे रखंते हुए जिवेकांंस कां कांंय मा सहीयंगाँ कांर रहीी ही। अपुनां
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य नांवेंखंंई, हीरली, पुोलं, तेी�ं, जिपुतेर, देशहीरं और जिदेवेंली मानांंते े पुरिरचींलनां अजिभयंनां कां देौरंनां मार पुजिते कांो कांछे समाय जिचीदें भजि�यं
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ही। इस �नां�ंजिते मा� जिबहींवे(जिवेवेंही)नांत्यु, पुडक़ �ी(जिदेवेंली), कांो �ंनांनां-समाझानां कांं अवेसर जिमालं। मार पुजिते नां अपुनां उच्चे
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रहीस(हीोली), रंमा सप्तंही(भंदेो मांही मा पुरूर्ष द्वांरं) आजिदे लोकांनांत्यु अजिधीकांंरी कां सहीयोगाँ स उस गाँॉवे मा �रूरते कांी वेस्तए बटेवेंई।
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और लोकांगाँीते प्रचीजिलते ही। भजि�यं �नां�ंजिते मा पुदें प्रथां कांमा ही पुरते ु उनां आजिदेवेंजिसयो कां मांसमा चीहीर पुर खंशी देखंकांर हीमा सजिनांकां पुत्नीी
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ससर-बहु तेथां �ठौ-बहु मा� अप्रत्युक्षे रूपु स बंते हींते ही। छेोटे भंई हीोनां कांं गाँवे माहीसस हीो रहीं थां। अपुनां आजिदेवेंसी पुरपुरं कांं सवेहीनां
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कांी पुत्नीी कांं स्पश जिनांर्षधी ही। लोगाँ �ंदे-टेोनांं और भतेप्रते पुर जिवेश्वंस कांरते हुए प्रगाँजिते कांी ओर अग्रुसर हीोनांं भ�जि�यं �नां�ंजिते कां जिलए
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रखंते ही। कांछेए कांो वेो ईश्वर कांं चीरणी पुंदेकांं मांनांकांर जिवेशर्ष माहीत्व शभ सकां �ते ही। ै
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देते ही। भजि�यं �नां�ंजिते कां लोगाँ देसरी �ंजिते कां संथा बठौकांर
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खंंनां-पुंनां नांहीी कांरते ही। संमांजि�कां उत्सावेो� पुर य अलगाँ �ंजिते कां
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जिलए अलगाँ स कांच्चेी रसोई मा� खंंनांं बनांवेंते ही। लडक़ कां जिवेवेंही
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कांी संमांन्य आय 16-18 वेर्ष और लजिड़कांयो� कांी 14-16 वेर्ष ही। इनांमा ं सीदिवंता जायसीवंाल ं
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पीत्नीी श्रीी नोंीरजी कमेंार, उपी.कमेंांड्टी
जिवेधीवें और त्युंगाँŸ�ंं कांं पुनांजिवेवेंही हीोतें ही जि�स य ’चीड़ी पुहीनांंनांं’ गपी कन्द् जीमेंशेदपीुर
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कांहीते ही। मार पुजिते नां नांक्सल जिवेरूद्वा अजिभयंनां कां देौरंनां कांछे समाय
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जिचीदें भजि�यो� कां संथा जिबतेंयं। धीमातेरी जि�ल कां खंंलगाँढ़ मा जिचीदें
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