Page 180 - Sanidhya 2025
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भादिजया ज�जादित: दिवंकासी की राही पीर...
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भजि�यं एकां �नां�ंजिते ही �ो छेत्तीसगाँढ़ मा जिवेशर्ष जिपुछेड़ी �नां�ंजिते लोगाँ रसंइ कांमारं घार कां अदेर नां बनांंकांर बंहीर बनांंते ही जि�स ’लंल
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कां श्रीणीी मा आतें ही। इनांकांी अजिधीकांतेर सख्यं गाँरिरयंबदे, धीमातेरी और बगाँ लं’ कांहीं �ंतें ही। देरअसल रसोई घार कां बंहीरी देीवेंर कांो लंल
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माहींसमादे जि�ल मा ही। यही मालरूपु स द्रीजिवेड़यनां �नां�ंजिते ही ै रगाँ स और अदेर कांी ओर गाँरू स पुतेंई कांरते ही। लंल बग्ले मा एकां
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जि�नांकांं मालजिनांवेंस सोनांबड़ं पुठौंर (उड़ीसं) ही। यही �नां�ंजिते देो भी स्थिखंड़कांी नांहीी हीोतेी ही कांवेल एकां प्रवेश द्वांर हीोतें ही। लंल भजि�यं
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खंडो मा जिवेभंजि�ते ही-पुहीलं ’जिचीदें भजि�यं’ अथांते मादेंनांी क्षेत्र मा ं �नां�ंजिते कां �ीवेनां मा लंल बगाँ लं कांं जिवेशर्ष माहीत्व ही। इसकां प्रजिते
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रहीनां वेंल और देसरं ’चीखंौजितेयं भजि�यं’ अथांते पुहींड़ी क्षेत्रो मा रहीनां े उनांकांी बहुते आ�ं ही और सवे दे नांशीलतें ही। लंल बगाँ लं कांो देवे
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वेंल। जिचीदें भजि�यं अपुनां वेश� बगाँं कांो मांनांते ही और चीौखंजिटेयं �ंनां कांी तेरही मांन्यतें देते ही। र�ंस� लवें स्त्ी उसमा नांहीी� �ं
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भजि�यं अपुनांी उत्पŸजि�ं गाँोड और हीलवें स मांनांते ही। चीौखंजिटेयं ऊची े सकांतेी ही। माजिहीलं �न्म देनां कां पु�ंते ढ़ंई माहीीनां तेकां लंल बगाँल े
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मांनां गाँय ही। इस �नां�ंजिते कांी सखं यं कांमा हीोतेी �ं रहीी ही इसजिलए मा�नांहीी �ंतेी ही। लंल बगाँल कां प्रजिते भजि�यं लोगाँ इतेनां सवेदेनांशील
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सरकांंर इनांकांं जिवेशर्ष सरक्षेणी कांर रहीी ही। छेŸ�ंीसगाँढ रंज्य सरकांंर हीोते ही जिकां अगाँर प्रजितेबजि�धीते लोगाँ गाँलतेी स भी प्रवेश यं स्पश कांर
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नां इस �नां�ंजिते कांो गाँोदे जिलयं ही और इनांकां जिवेकांंस हीते ’’भजि�यं लते ही तेो लंल बगाँ ल कांो तेोड़ जिदेयं �ंतें ही और जि�र नांय �ंनां पुर
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जिवेकांंस अजिधीकांरणी’’ कांं सचींलनां कांर रहीी ही जि�सकांं माख्यंलय उसकांं जिनांमांणी हीोतें ही। लंल बगाँल कांो गाँोबर स लीपुं �ंतें ही। खंंनांं
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गाँरिरयंबदे मा ही। 2011 कांी �नांगाँणीनांं कां अनांसंर इनांकांी सख्यं बनांनां कां पु�ंते पुहील देवेी-देवेतेंओ कां नांंमा स थाोड़ं खंंनांं पुŸ�ंं
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10600 कां पुंस ही। पुर जिनांकांंल जिदेयं �ंतें ही।
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संक्षेरतें देर 60 प्रजितेशते इसकां पु�ंते हीी लोगाँ
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ही। जिलगाँंनांपुंते मा� 1000 भो�नां ग्रुहीणी कांरते ही।
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पुरूर्षो कां संपुक्ष् 1029 लंल बगाँल स बंहीर
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माजिहीलंए ही। भजि�यं कांं जिनांकांंल हुए खंंनांं कांो
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शंस्थिब्दोकां अथा हीोतें ही भजिमा वेंपुस लंल बगाँ लं मा नांहीी�
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स उत्पन्न। य �नां�ंजिते ल �ंयं �ं सकांतें ही।
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अपुनां कांो भजिमा स उत्पन्न लंल बगाँ ल मा नांगाँ पुर हीी
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मांनांतेी ही।भजि�यं �नां�ंजिते प्रवेश कांरनांं ही। इनांकांं
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कां लोगाँ अपुनांी उत्पŸजि�ं मांनांनांं ही जिकां भगाँवेंनां रंमा,
भगाँवेंनां जिशवे और पुंवेतेी सीतें और लक्ष्णी वेनांवेंस
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स भी मांनांते ही। इनांकांी कां देौरंनां देण्डेकांंरण्य मा ं
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मांन्यतें ही जिकां जिशवे और रही �हीं सीतें मां कांं
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पुंवेतेी इनांकां क्षेत्र मा आय े अपुहीरणी हुआ। अपुहीरणी
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था और एकां झांपु ड़ी मा कां पु�ंते भगाँवेंनां रंमा
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रही। भगाँवेंनां जिशवे कां जिचीलमा कांी आगाँ स उस झाोपुड़ी मा आगाँ लगाँ और लक्ष्णी, सीतें मां कांो खंो�नां कां क्रमा मा भजि�यं �नां�ंजिते कां
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गाँई और उसमा रखं पुतेलं-पुतेली �ल गाँय। इस �लनां कांी जिक्रयं कांो पुंस भी आते ही। भजि�यं �नां�ंजिते कांो �ब पुरी कांहींनांी पुतें चीलतें ही ै
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�ंनांीय भंर्षं मा भजि�यं कांहीं �ंतें ही। इनांकांं जिवेश्वंस ही जिकां उसी तेो वेो लोगाँ भी अपुनांी माजिहीलंओ कांी सरक्षें कां जिलए भयभीते हीं � े
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�ल हुए पुतेलं-पुतेली स इनांकांं �न्म हुआ। इसजिलए उस समाय स �ंते ही। भजि�यं माजिहीलंए लक्ष्णी �ी स लक्ष्णी रखंं खंीचीनां कांं
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इस �नां�ंजिते कांं नांंमा भ�जि�यं हीो गाँयं हीोगाँं। इस अवेधींरणीं स य े प्रंथानांं कांरतेी ही जि�स वेो स्वीकांंर कांरते ही। उस समाय स यही प्रथां
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अपुनां कांो पुजिवेत्र मांनांते ही क्योो�नेजि�कां इनांकांी उत्पŸजि�ं आगाँ मा भ�नां कां इनांमा चीली आ रहीी ही। लंल बगाँ लं घार स बंहीर हीोनां कां बंवे�दे भी
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बंदे हुई ही। एकां अवेधींरणीं यही भी ही जिकां य लोगाँ �गाँल मा भ� कांर इस सरजिक्षेते मांनांते ही। भजि�यं माजिहीलंए लकांड़ी कांं इतेनांं सम्मांनां
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खंंयं कांरते था जि�सस इनांकांं नांंमा भ�जि�यं पुडं हीोगाँं। इस �नां�ंजिते कांरतेी ही जिकां वेो इस लंघा नांहीी सकांतेी, इसजिलए घार कां देरवें� कांो
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कां लोगाँ छेोटे-छेोटे समाही मा रहीते ही। लगाँभगाँ 30-40 लोगाँो� कांं एकां चीौखंटे कांो नांीची �माीनां मा देबं जिदेयं �ंतें ही। य माजिहीलंए जिसदेर
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समाही रहीतें ही। इनांकां घार घांस-�स और लकांड़ी कांं बनांं हीोतें ही। माहीदेी और जिबदेी कांं प्रयोगाँ नांहीी कांरतेी ही। माजिहीलंए संड़ी पुहीनांतेी ही ै
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लकांड़ी मा� जिवेशर्षकांर माहुआ कां लकांड़ी कांं ज्यंदें प्रयोगाँ कांरते ही। पुर पुटेीकांोटे और ब्लांउ� कांं प्रयोगाँ नांहीी कांरतेी ही। इस �नां�ंजिते कां
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लकांड़ी कांंटेनां स पुहील वेो उपुवेंस रखंते ही तेथां चींवेल कां देंनां अपुणी स्त्ी वे पुरूर्ष देोनांो कांंनां जिछेदेवेंते ही पुर नांंकां जिछेदेवेंनांं प्रजितेबजि�धीते
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कांर और क्षेमां यंचीनांं मांगाँकांर हीी पुड़ कांंटेते ही। ही। इनांकांी माजिहीलंए गाँोदेनांं बनांवेंतेी ही। जिवेवेंही कां पुहील गाँोदेनांं हीोनांं
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भजि�यं �नां�ंजिते कां घार मा �एकां स तेीनां कांमार हीोते ही। माख्य कांमारं आवेश्यकां ही। इनांकांं मांनांनांं ही जिकां गाँोदेनांं मात्यु कां बंदे भी उनांकां
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कांो ’मांई कांजिटेयं’ कांहीं �ंतें ही �हीं वेो अपुनां जिपुतेर कांो रखंते ही। य े संथा रहीगाँं। गाँोदेनांं 13-14 वेर्ष कांी उम्र मा शीते ऋते मा हीी बनांंय �ंते े
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