Page 178 - Sanidhya 2025
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छोत्तीीसगढ़ का अ�छो ु ए औरं अ�ोखे दाशष�ीय पुयषटा� स्��
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छेत्तीसगाँढ़ कांी रं�धींनांी रंयपुर मा पुदे�तें कां देौरंनां छेत्तीसगाँढ़ कां
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अनांछेए और अनांोखं देशनांीय पुयटेनां �लो� कांं भ्रमाणी जिकांयं, उसी
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यंदेो� मा स कांछे अश इस लखं कां मांध्यामा स प्रस्तते कांर रहीी ही ू �। श्रीीमती पी�म दिसीही
पीत्नीी श्रीी सीजीया कमेंार किसींह
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ग्रपी कन्द्, सींबलापीुर
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छेत्तीसगाँढ़ देश कांं हृदेय प्रदेश ही एवे �वे जिवेजिवेधीतें वे समा�
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नांसजिगाँकांतें स भरपुर ही। छेत्तीसगाँढ़ “जि�स धींनां कांं कांटेोरं” भी कांहीं
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�ंतें ही। ऐजितेहींजिसकां और पुरंतेंस्थित्वकां दृजिष्ट् स रंयपुर शहीर अत्युते
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माहीत्वपुणी ही। रंयपुर माध्या भंरते छेत्तीसगाँढ़ रंज्य मा स्थि�ते एकां कांरवेंयं थां। यही माठौ और माजिदेर अपुनां सदेर जिभजित्तजिचीत्रो� कां जिलए
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खंबसरते शहीर ही। रंयपुर अपुनां स्टेील बं�ंरो� कां जिलए जिवेशर्ष रूपु स े प्रजिस� ही। माजिदेर एकां नांदेी कां जिकांनांंर स्थि�ते हीोनां कां कांंरणी पुरं �ंनां
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माहीत्वपुणी और प्रजिस� ही तेथां भंरते कां सबस बड़ स्टेील बं�ंरो� मा स े
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एकां ही। रंयपुर मा 200 स ज्यंदें स्टेील जिमाल और छेही स्टेील प्लांटे ही।
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इसकां अलंवें इस शहीर मा एल्यामाीजिनांयमा, जिब�ली और कांोयलं उद्योोगाँ
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भी ही। यहीं जिकां आमा धींरणीं यही ही जिकां इस शहीर मा देखंनां और कांरनां े
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कां जिलए ज्यंदें कांछे भी नांहीी� ही लजिकांनां सच्चेंई यही ही जिकां स्टेील उद्योोगाँ
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और कांोयलं कांंरखंंनांो� कां अलंवें रंयपुर मा कांई पुयटेनां �ल भी
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जिवेद्योमांनां ही। रंयपुर मा झाीलो� स लकांर माजिदेरो� तेकां देखंनां लंयकां बहुते
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कांछे ही, �स:-
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महीत घाासीीदोंासी स्माारक सीग्रुहीालय : यही सग्रुहींलय रं�नांंदे गाँंवे
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कां रं�ं माहीते घांसीदेंस द्वांरं वेर्ष 1875 मा जिनांमांणी कांरंयं गाँयं थां।
एकां मानांोरमा दृश्य प्रस्तते कांरतें ही। ै
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महीामाया मदिदोंर : रंयपुर कां पुरंनां जिकांल मा स्थि�ते माहींमांयं माजिदेर,
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मां देगाँं कां रूपु, माहींमांयं कांो समाजिपुते ही। माहींमांयं माजिदेर खंंरूनां
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नांदेी कां तेटे पुर स्थि�ते ही। नांवेरंजित्र कां देौरंनां इस माजिदेर कांं अदेभते
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नां�ंरं देखंनां कांो जिमालतें ही। इस क्षेत्र कां आस-पुंस ऐसं बतेंयं �ंतें
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ही जिकां इस माजिदेर मा �ंजिपुते देगाँं कांी माजिते मा जिशवे और जिवेष्णु देोनांो� कां
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यही जिनांमांणी इस उद्देश्य कां संथा जिकांयं गाँयं थां जिकां पुरंतेंस्थित्वकां
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धीरोहीरो� कांो भजिवेष्य कांी पुीजिढ़यो� कां देखंनां और अनांभवे कांरनां कां जिलए
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सरजिक्षेते रखंं गाँयं। यही सग्रुहींलय देश कां 10 सबस पुरंनां सग्रुहींलयो�
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मा स एकां ही। इस सग्रुहींलय कां अदेर एकां अनांोखंं पुस्तकांंलय भी ही।
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इस सग्रुहींलय मा पुंरपुरिरकां कांलचीरी माजितेयो�, प्रंचीीनां जिसक्कोो�,
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नांक्कोंशी जिशलंलखंो� और छेत्तीसगाँढ़ कांी �नां�ंजितेयो� द्वांरं उपुयोगाँ
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जिकांय �ंनां वेंल कांई आभर्षणीो� एवे कांपुड़ो� कांं सग्रुही प्रदेजिशते ही।
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गाँणी समांजिहीते ही, �ो उन्हे एकां अत्युते शस्थिक्तशंली देवेी बनांंते ही। इस
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दों ू �ा�ारी मठ और मदिदोंर : यही माठौ और माजिदेर, भगाँवेंनां रंमा कांो माजिदेर कां आस-पुंस खंो-खंो झाील और बढ़ंपुरं झाील स्थि�ते ही वेही भी
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समाजिपुते ही। इसकांं जिनांमांणी 17वेी� शतेंब्दोी मा रं�ं �तेजिसही नां े आकांर्षणी कांं कांन्द् ही। ै
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